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लॉक डाउन में टूटी साढ़े नौ सौ वर्ष पुरानी परंपरा, नहीं आईं बाले मियां की बारातें
देवी पाटन मंडल के बहराइच जिले में शहर के नानपारा रोड पर विश्व प्रसिद्ध सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह है। मान्यता है कि गाजी मियां से मुहब्बत करने वालों की झोली खाली नहीं जाती। यही विश्वास पिछले 950 वर्षों से हिंदू व मुस्लिमों में एकता की डोर को मजबूत किए हुए हैं।
तेज प्रताप सिंह
गोंडा: विश्व प्रसिद्ध सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह में तमाम वर्षों से जेठ मेले का आयोजन होता है। इसमें देश-विदेश से बाले मियां की बरातें आती हैं। गाजे-बाजे के साथ दरगाह में एक माह रुक कर जायरीन पूरी शिद्दत के साथ जियारत करते हैं। लेकिन इस बार लाकडाउन के चलते 950 साल पुरानी यह परंपरा टूट रही है। इस बार देश-विदेश के जायरीनों के नामौजूदगी में ही इस बार सैयद सालार मसऊद गाजी के जेठ मेले में सिर्फ बारात की रस्म निभाई जा रही है।
सदियों बाद भी कायम है गाजी मियां का जलवा
देवी पाटन मंडल के बहराइच जिले में शहर के नानपारा रोड पर विश्व प्रसिद्ध सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह है। मान्यता है कि गाजी मियां से मुहब्बत करने वालों की झोली खाली नहीं जाती। यही विश्वास पिछले 950 वर्षों से हिंदू व मुस्लिमों में एकता की डोर को मजबूत किए हुए हैं। यहां हर साल आयोजित होेने वाले जेठ मेले में कलकत्ता, बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पूर्वी व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के अलावा नेपाल व अन्य मुस्लिम बाहुल्य देशों से बड़ी संख्या में जायरीन बाले मियां की बारात लेकर आते हैं। इस बारात में एक अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसमें सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिंदू भी डालियां, पलंग पीढ़ी, चादर चढ़ाते हैं। इस साल 14 मई से शुरू होने वाले जेठ मेले के आयोजन पर रोक लगने से 17 मई को मुख्य बारात का कार्यक्रम भी स्थगित हो गया।
17 मई को थी मुख्य बारात
दरगाह प्रबंध समिति के अध्यक्ष शमशाद अहमद बताते हैं कि देश में लाकडाउन की घोषणा होने से बहुत पहले ही दरगाह हज़रत सय्यद सालार मसऊद ग़ाज़ी की कदीमी रिवायत के अनुसार बसन्त में ही जेठ मेले की तारीख का एलान हो गया था। इस साल 17 मई 2020 को जेठ मेले की मुख्य बारात की तारीख तय हुई थी। मगर वैश्विक महामारी का रूप ले चुकी इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए भारत सरकार की तरफ से लाकडाउन की घोषणा के बाद से ही दरगाह शरीफ के दरवाजे ज़ायरीनों के लिए बन्द कर दिए गए।
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ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती थी मुल्क के कोने कोने से लाखो की तादाद में आने वाले ज़ायरीनों को रोकने की जो कि पैदल ही बहराइच पहुंचने का मन बना लेते तो उन्हें रोकना असंभव हो जाता। कमेटी ने अपील जारी कर मेले की तारीख लाकडाउन के मद्देनजर आगे बढ़ाने की योजना बनाई, जिससे तय तारीख पर आने वाले लोगों को तस्सली हुई और वे स्थिति सामान्य होने पर ज़ियारत की आस लिए अपने घरों से नहीं निकले।
दरगाह में स्थित है कदम रसूल भवन
इस्लामी तारीख 14 रजब 424 हिजरी मुताबिक 10 जून 1034 ईसवीं के जेठ माह में अल्पायु में सैयद सालार मसऊद गाजी का देहावसान हुआ। तभी से उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह पर हर साल जेठ माह में बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। दरगाह परिसर में 750 वर्ष पूर्व निर्मित कदम रसूल भवन है, जो तुगलक शासन काल के स्थापत्य कला का नायाब नमूना है। दरगाह आने वाले जायरीन कदम रसूल भवन में महफूज हजरत मोहम्मद के पदचिन्हों को चूमकर ही आगे बढ़ते हैं। इस भवन में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के शिला पर अंकित हाथ व पैरों के निशान हैं।
गाजी मियां के सालाना उर्स के दौरान लगने वाले मेले में सिर्फ मुसलमान ही नहीं भाग लेते बल्कि बड़ी संख्या में हिंदू भी शिरकत करते हैं। मेले के मौके पर दूर दराज से पहुंचने वाले अकीदतमंदों में हर वर्ग के लोग होते हैं, जो न सिर्फ मन्नतें मांगते हैं बल्कि चादर चढ़ाकर अपनी आस्था का परिचय देते हैं। कहा जाता है कि बहराइच में पहली बार गाजी मियां की मजार जासी यादव नाम के एक भक्त ने मिंट्टी को दूध में सान कर बनवाया था। यही कारण है कि गाजी मियां को हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
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बिना दूल्हा दूल्हन के आती हैं बारातें
मसूद गाजी की दरगाह पर लगने वाले जेठ मेले के पहले रविवार को परंपरागत विवाह की रस्म अदा की जाती है। इस रस्म अदायगी के लिए देश के विभिन्न अंचलों से बारातें आती हैं। इनमें रुदौली, टांडा, बस्ती, जौनपुर, नासिक की बारातें आकर्षण का केंद्र रहती हैं। पिछले साल करीब 600 बारातें दरगाह पर पहुंचीं। इस बारातों में न दूल्हा होता है और न दुल्हन फिर भी वैवाहिक समारोह की तरह ही परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। गाजे-बाजे के साथ आतिशबाजी भी होती हैं। मेले में शिरकत करने वाले जायरीन अपने घरों से निशान ए परचम के साथ ही जायरीन बारातें लेकर आते हैं।
दरगाह प्रबंध समिति के अध्यक्ष शमशाद अहमद ने बताया कि प्रति वर्ष बारातों को लाने का सिलसिला बढ़ता है। गत वर्ष लगभग छह सौ बारातें देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंची थीं। इस बारात में दूल्हा व दुल्हन नहीं होते हैं। लेकिन परंपरा निर्वहन में रस्म की अदायगी बिल्कुल उसी तरह होती है। जैसे वैवाहिक समारोह के समय होता है। इन बारातियों के हाथों में निशान, चादर, पलंग पीढ़ी व दहेज का पूरा सामान होता है। बारातें जंजीरी गेट से प्रवेश कर चमन ताड़, नाल दरवाजा होते हुए गाजी की दरगाह पर हाजिरी लगाती हैं। वहां पर पलंग पीढ़ी व दहेज का सामान रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि रुदौली बाराबंकी की रहने वाली जोहरा बीवी एक हजार 16 साल पूर्व दुल्हन बनी थीं। उन्हीं की याद में यह बारातें गाजी की दरगाह तक आती हैं। मुख्य बारात रुदौली (बाराबंकी), टांडा, बस्ती, जौनपुर, नासिक की होती है।
उपवास रखते हैं बाराती
दरगाह प्रबंध समिति के अध्यक्ष सैयद शमशाद ने बताया कि जिस तरह लोग कन्यादान के पूर्व अन्न जल का त्याग करते हैं, उसी तर्ज पर बारात लाने वाले परंपरा का निर्वहन करते हैं। बारात में शामिल होने वाले बाराती पूरे दिन उपवास रखते हैं। बारात की रस्म अदायगी के बाद ही सभी भोजन करते हैं।
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किन्नरों की बारात की अलग होती रौनक
सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर बारातें तो छह सौ के आसपास आती हैं। लेकिन मुंबई से आने वाले किन्नरों का समूह जो बारात लेकर आता है। उस बारात की रौनक काफी अलग होती है। बाराती किन्नर मंजीरे व ढोलक व की थाप पर थिरकते हुए गाजी की मजार पहुंचकर सलाम करते हुए परंपरा का निर्वहन करते हैं। प्रबंध समिति अध्यक्ष शमशाद ने बताया कि गाजी की दरगाह पर मुख्य मेले के दिन आने वाली बारातों में आतिशबाज भी आगे-आगे आतिशबाजी करते हुए चलते हैं। बाराबंकी व लखनऊ के आतिशबाजों से रौनक बढ़ जाती है।
लाक डाउन खत्म हुआ तो 28 मई से शुरु होगा दरगाह मेला
दरगाह शरीफ का सालाना जेठ मेला इस बार 14 मई से 14 जून तक चलना था, लेकिन कोविड -19 के संक्रमण की रोकथाम के लिए लाकडाउन के मद्देनजर कमेटी लगातार मंथन कर रही है। इसी क्रम में दरगाह के गोलघर में गत मंगलवार की शाम कमेटी सदर सैय्यद शमसाद अहमद की अध्यक्षता में एक बैठक हुई। कमेटी के सदस्य दिलशाद अहमद, गिरदावर अजमतउल्ला, अब्दुल रहमान बच्चे भारती, मोहम्मद वसीम मेकरानी, मकसूद अहमद रायनी, सैयद अली, नूर मोहम्मद, सैयद अली, खालिद नईम ने समीक्षा बैठक में सहभागिता कर तिथि बढ़ाने का प्रस्ताव रखा। जिसमें आम सहमति से लाकडाउन के चलते दरगाह पर सालाना जेठ मेले की निर्धारित तारीख बढ़ाई गई है।
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जिसके अनुसार अब जेठ मेले की शुरुआत 28 मई को होगी और 31 मई रविवार को बाले मियां की बारातों की परम्परा निभाई जाएगी। हालांकि केन्द्र व प्रदेश सरकार की गाइड लाइन के मद्देनजर ही हर कदम उठाने का निर्णय लिया गया है। कमेटी के सदर सैयद शमसाद अहमद ने बताया कि कमेटी मेम्बरान के प्रस्ताव के मुताबिक इस बार सालाना जेठ मेला की शुरुआत 28 मई से कई जाएगी। 31 मई रविवार को विशेष मेला यानि बाले मियां की बारातों की परम्परा का निर्वहन होना है। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम लाक डाउन खत्म होने और केन्द्र व प्रदेश सरकार की गाइड लाइन पर ही निर्भर है।