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अस्पताल के दौरे ने किया प्रभावित, अब 700 लोगों को मुफ्त भोजन करा रहा ये शख्स
अस्पतालों में मरीजों की तो देखभाल होती ही रहती है पर तीमारदारों की सेवा कौन करता है भला। बैंगलुरू के समाजसेवी सय्यद गुलाब की नजर उन तीमारदारों पर गई
अस्पतालों में मरीजों की तो देखभाल होती ही रहती है पर तीमारदारों की सेवा कौन करता है भला। बैंगलुरू के समाजसेवी सय्यद गुलाब की नजर उन तीमारदारों पर गई, जो अपने किसी प्रिय के ठीक हो जाने तक फुटपाथ पर रहकर समय काटते हैं। सय्यद गुलाब का दिल पसीजा और उन्होंने तीमारदारों को भोजन कराने का बीड़ा उठा लिया।
नहीं देखी गई तीमारदारों की हालत
बीमा एजेंट के रूप में काम करने वाले सय्यद गुलाब बताते हैं कि एक बार मैं अपने दोस्त की बेटी को देखने अस्पताल गया था तो वहां तीमारदारों की ऐसी दशा देखी। फिर मैंने तभी ठान लिया कि अब जितना हो सकेगा तीमारदारों को भूखा नहीं रहने दूंगा। मैंने राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ टीबी एंड चेस्ट डिजीज के अंदर फ्री खाना बांटना शुरू किया। उसके पास में ही बच्चों का भी अस्पताल है। इसके अलावा कैंसर व सड़क दुर्घटना के इलाज के लिए दो और अस्पताल उसी के साथ जुड़े हुए हैं। इस तरह से मेरे पास मदद करने के लिए ऐसी जगह थी, जहां एक बार में कई जरूरतमंदों की मदद की जा सकती थी।
पहले तो घर के लोग ही अचंभित हो गए
असली समस्या तो तब हुई जब मैंने पहले दिन घर वालों को बोला कि अजनबियों के लिए खाना बना दीजिए। इस पर परिवार वालों को यह नहीं समझ आ रहा था कि आखिर मैं उन लोगों को फ्री में खाना क्यों खिलाना चाहता हूं। मैं किसी तरह उन्हें मनाने में कामयाब रहा और खाना लेकर अस्पताल पहुंचा। वहां कुछ लोगों ने मुझे संदेह भरी नजरों से देखकर खाने के लिए मना कर दिया। लेकिन मैंने जब खाने का बर्तन खोला तो वहां लोग जुटते गए और मेरे खाना परोसने का सिलसिला तेज हो गया।
पहले रविवार पर अब हर दिन यही काम
पहले छह महीने तक मैं केवल रविवार को ही खाना बांट पाता था। अब मैंने रोटी चैरिटी ट्रस्ट का पंजीकरण करा लिया और हर दिन खाना बांट रहा हूं। मैंने अस्पताल में तीमारदारों को खाना खिलाने के लिए अस्पताल प्रशासन से मंजूरी भी ली। बाद में कई और भी संगठन व लोग मेरी मदद के लिए आगे आ गए।
रोज 700 लोगों को खिला रहा खाना
जब खाना खिलाने की शुरुआत की तो उस समय केवल 100 लोगों तक ही मेरी मदद पहुंच पाती थी। अब यह आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़कर 700 लोगों तक पहुंच गया है। रोज के खाने का हर महीने करीब तीन लाख रुपये खर्च आता है। इसमें करीब 75 हजार रुपये मैं खुद से खर्च करता हूं और बाकी का लोगों के दान से आता है।
लॉकडाउन में इस तरह बदला रूटीन
लॉकडाउन के दौरान मैं सुबह पांच बजे ही जगकर नाश्ता लेकर अस्पताल पहुंच जाता हूं। उसके बाद दोपहर में खाना भी ले जाता हूं। पहली बार जहां लोग पास आने से हिचक रहे थे, वहीं अब लोग उस समय तो खाते ही हैं और अपने बर्तन में बाद के लिए भी थोड़ा-बहुत खाना रख लेते हैं। लॉकडाउन में तो खाने के साथ राशन का थैला भी बांट रहा हूं।
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