ऐसा दिलेर मंत्री: जिसने प्रधानमंत्री के बेटे का आदेश नहीं सुना, देश का बना प्रधानमंत्री

भारत के 13वें प्रधानमंत्री की शपथ लेने वाले इंद्र कुमार गुजराल ने सौ वर्ष का जीवन पूरा करने में महज सात साल की कमी की। अपना 94वां जन्मदिन मनाने से महज चार दिन पहले दुनिया को अलविदा कहने वाले आई के गुजराल ने देश की राजनीति में लोकतांत्रिक सिद्धांत,स्पष्टवादिता की अनोखी छाप छोड़ी है।

Newstrack
Published on: 30 Nov 2020 10:12 AM GMT
ऐसा दिलेर मंत्री: जिसने प्रधानमंत्री के बेटे का आदेश नहीं सुना, देश का बना प्रधानमंत्री
X
भारत के 13वें प्रधानमंत्री की शपथ लेने वाले इंद्र कुमार गुजराल ने सौ वर्ष का जीवन पूरा करने में महज सात साल की कमी की। अपना 94वां जन्मदिन मनाने से महज चार दिन पहले दुनिया को अलविदा कहने वाले आई के गुजराल ने देश की राजनीति में लोकतांत्रिक सिद्धांत,स्पष्टवादिता की अनोखी छाप छोड़ी है।

लखनऊ। नौकरशाह से राजनीतिज्ञ बने कुंवर नटवर सिंह ने अपनी पुस्तकों और लेखों में देश के ऐसे प्रधानमंत्री का जिक्र किया है जिसने इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री रहने के दौरान संजय गांधी को टका सा जवाब दे दिया था। संजय गांधी का आदेश मानने से इनकार करने वाले इस मंत्री ने अगले कुछ महीनों में अपना पद गवां दिया लेकिन संजय की तानाशाही नहीं चलने दी। संजय गांधी के सामने सिर उठाकर खड़े होने वाले इस मंत्री का नाम इंद्रकुमार गुजराल है जिसे देश की जनता ने बाद में प्रधानमंत्री का सर्वोच्च ओहदा देकर सम्मानित किया।

ये भी पढ़ें...अहमद पटेल: कांग्रेस के संकटमोचक, गांधी परिवार ने हमेशा आंख मूंदकर किया भरोसा

देश का अगला प्रधानमंत्री चुना गया

भारत के 13वें प्रधानमंत्री की शपथ लेने वाले इंद्र कुमार गुजराल ने सौ वर्ष का जीवन पूरा करने में महज सात साल की कमी की। अपना 94वां जन्मदिन मनाने से महज चार दिन पहले दुनिया को अलविदा कहने वाले आई के गुजराल ने देश की राजनीति में लोकतांत्रिक सिद्धांत,स्पष्टवादिता की ऐसी छाप छोड़ी कि जिसे कभी मंत्री पद से इसलिए हटाया गया कि उसने प्रधानमंत्री के स्वेच्छाचारी बेटे की बात नहीं मानी।

अपने मंत्रालय के काम-काज में संजय गांधी का दखल स्वीकार नहीं किया । उन्हीं आईके गुजराल को एक रात सोते समय देश के तत्कालीन वरिष्ठ राजनेताओं ने जगाकर बताया कि उन्हें देश का अगला प्रधानमंत्री चुना गया है। नटवर सिंह ने अपने एक लेख में गुजराल के बारे में बताया है कि इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही वह उनके साथ काम कर चुके थे।

यही वजह है कि जब इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं तो अपनी सरकार के अच्छे काम-काज के लिए उन्होंने आईके गुजराल का चयन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लिए किया। गुजराल ने अपना शुरुआती जीवन पत्रकार के तौर पर शुरू किया था और बीबीसी के लिए काम किया था। इंदिरा ने उनके इस अनुभव को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लिए उपयुक्त समझा।

ये भी पढ़ें...खतरे में सोनिया गांधी: तत्काल दिल्ली छोड़ने की मिली सलाह, डॉक्टर ने दी जानकारी

sanjay gandhi फोटो-सोशल मीडिया

संजय को टका सा जवाब

लेकिन जब आपात काल लागू हुआ तो संजय गांधी ने प्रेस सेंसरशिप और मनमाफिक खबरों के प्रकाशन के लिए उन पर दबाव बनाया। कुंवर नटवर सिंह के अनुसार उत्तर प्रदेश से इंदिरा समर्थकों का बड़ा समूह दिल्ली पहुंच रहा था। संजय गांधी चाहते थे कि ट्रकों पर सवार होकर आ रहे इन इंदिरा समर्थकों की खबर का दूरदर्शन पर विशेष प्रसारण हो।

आईके गुजराल ने ऐसा करने से मना कर दिया तो संजय गांधी ने लगभग चीखते हुए उनसे कहा कि वह मंत्रालय के काम -काज से संबंधित जरूरी फाइलें तत्काल उनके पास भिजवाएं। इस पर गुजराल ने संजय को टका सा जवाब दे दिया। उन्होंने संजय से कहा कि वह अपनी आवाज को नीचा ही रखें। मंत्रालय से संबंधित कोई भी फाइल या कागज का पुर्जा भी उनके पास नहीं आएगा।

यह कहकर वह कमरे से बाहर चले गए। संजय गांधी अवाक से उन्हें देखते रहे। बाद में हालांकि आईके गुजराल को हटाकर संजय गांधी विद्याचरण शुक्ल को सूचना प्रसारण मंत्रालय में लाने में कामयाब रहे लेकिन गुजराल ने तब उनको साथ जो किया था वैसा करने का साहस इंदिरा गांधी की कैबिनेट में किसी मंत्री के पास नहीं था।

इंदिरा गांधी ने बाद में उन्हें मास्को में भारत का राजदूत बनाकर भेजा। उन्होंने मास्को में रहने के दौरान ही अफगानिस्तान में सोवियत संघ के हस्तक्षेप का विरोध किया। उनकी इस वैदेशिक नीति समझ का बाद में भारत ने अनुसरण किया और चेकोस्लोवाकिया और हंगरी में सोवियत संघ के राजनीतिक हस्तक्षेप का विरोध किया जो भारत की वैदेशिक नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा बना।

ये भी पढ़ें...जौनपुर में प्रियंका गांधी को लेकर उठी ये माँग, तो क्या सोनिया से खुश नहीं कार्यकर्ता

I K Gujral फोटो-सोशल मीडिया

निष्पक्ष व नि:स्वार्थ भाव से कार्य

इंदिरा गांधी का साथ आईके गुजराल ने 1980 में छोड़ दिया क्योंकि इंदिरा के सत्ता में दोबारा वापस आने के बाद संजय की मनमानियां बढऩे लगी थीं। बाद में वह विश्वनाथ प्रताप सिंह के जनता दल का हिस्सा बने और वीपी सिंह के मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभाला।

अपने काम-काज और निष्पक्षता के लिए मशहूर गुजराल को समूचे विपक्ष ने अप्रैल 1997 में देश का प्रधानमंत्री चुन लिया। वह अगले 11 महीने तक प्रधानमंत्री रहे और देश को दिखा दिया कि सत्ता की कुर्सी पर बैठकर भी निष्पक्ष व नि:स्वार्थ भाव से कार्य किया जा सकता है।

चार दिसंबर 1919 को मौजूदा पाकिस्तान में जन्मे गुजराल के पिता का नाम अवतार नारायण और माता का नाम पुष्पा गुजराल था। उनकी शिक्षा-दीक्षा लाहौर के डीएवी कॉलेज, हैली कॉलेज ऑफ कॉमर्स और फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज में हुई।

देश में जब अंग्रेजी दासता के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई तो गुजराल भी इसका हिस्सा बन गए और जेल भी गए। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही उनका परिचय शीला भसीन से हुआ और आगे चलकर दोनों ने विवाह कर लिया। उनके भाई सतीश गुजराल देश के जाने -माने चित्रकार व वास्तुकार हैं।

ये भी पढ़ें...गुपकार गैंग ग्लोबल हो रहा है, वे तिरंगे का अपमान करते हैं, क्या सोनिया गांधी इनका समर्थन करती हैं-अमित शाह

रिपोर्ट-अखिलेश तिवारी

Newstrack

Newstrack

Next Story