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जब शांत स्वभाव भगवान श्रीराम को भी आ गया था क्रोध
वनगमन के समय भी विचलित न होने वाले शांत स्वभाव भगवान श्री राम को भी गुस्सा आया होगा। सहसा यकीन कर पाना मुश्किल है। मनुज रूप में अवतरित भगवान विष्णु को यह कोध्र कब-कब और किन-किन परिस्थितियों में आया था। यह शायद ही प्रभु प्रेमियों को पता होगा।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर : वनगमन के समय भी विचलित न होने वाले शांत स्वभाव भगवान श्री राम को भी गुस्सा आया होगा। सहसा यकीन कर पाना मुश्किल है। मनुज रूप में अवतरित भगवान विष्णु को यह कोध्र कब-कब और किन-किन परिस्थितियों में आया था। यह शायद ही प्रभु प्रेमियों को पता होगा। श्री राम कथा का अध्ययन करने पर पता चलता है कि लांछन लगने पर प्राणप्रिये नारि गौरव माता सीता का परित्याग करने वाले मानव रूप भगवान श्री राम भी अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख सके थे। भले ही यह क्रोध क्षणिकमात्र ही क्यों न हो लेकिन, क्रोध से उनकी भी भौंहे तन गईं थीं।
जब भगवान परशुराम की धनुष पर चढ़ाए दिव्यास्त्र
श्री विश्वनाथ मंदिर के पं: आत्म प्रकाश शास्त्री कहते हैं - श्रीरामचरितमानस के बालकांड की कथा के अनुसार सीता स्वयंवर के दौरान महाराजा जनक की सभा में मौजूद कोई राजा शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर, धनुष को उठा भी नहीं पाया था। जब राजा जनक ने कहा कि क्या कोई क्षत्रिय ऐसा नहीं है, जो इस शिव धनुष को उठा कर मेरी प्रतिज्ञा पूरी कर सके। उस समय स्वयंवर में मौजूद श्रीराम ने विश्वामित्र की आज्ञा से धनुष उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ा ही रहे थे कि शिवधनुष टूट गया।
धनुष टूटने की आवाज सुनकर शिवभक्त परशुराम क्रोधित हो जनक की सभा में पहुंच जाते हैं। तब वहां लक्ष्मुण के साथ उनका वाद-विवाद होता है। उस दौरान भी मर्यादा पुरुषोत्तम शांत रहते हैं। लेकिन जब परशुराम आवेश में आकर श्री राम को अपनी धनुष पर दिव्यास्त्र चढ़ाने को देते हैं तो क्रोध में आकर श्री राम अपनी धनुष पर दिव्यास्त्र चढ़ाते हैं और पूछते हैं कि अब बताएं इस दिव्यास्त्र को किस दिशा में छोड़ू। तब परशुराम जी को श्री राम के विष्णु अवतार होने का भान होता है। और वे भगवान श्री राम से क्षमा मांगते हैं।
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जब जयंत ने माता सीता के पैर में मारा चोंच
भगवान श्री राम के क्रोध के संबंध में एक कथा और आती है। वह है इंद्र पुत्र जयंत द्वारा कौवा का रूप घर सीता के पैर में चोंच मारने की। उस समय भी प्रभु श्री राम को क्रोध आता है। इस कथा का उल्लेख आदि कवि भगवान वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण, गोस्वामी तुलसी दास कृत रामचरित मानस, आनंद रामायण सहित नरसिंह पुराण और पद्यमपुराण में भी मिलता है।
गोस्वामी तुलसी दासजी लिखते हैं -
सीता चरण चोंच हतिभागा। मूढ़ मंद मति कारन कागा॥
चला रुधिर रघुनायक जाना। सीक धनुष सायक संधाना॥
हलांकि रामायण और रामचरित मानस में माता सीता कें अंगों और कांड या सर्ग (अध्याय) को भी लेकर भिन्नता है। भगवान वाल्मीकि कृत रामायण और अध्यात्म रामायण में सुंदर कांड में और रामचरित मानस के अरण्यकांड में मिला है। वहीं आनन्द रामायण में भी यह प्रसंग है और यह सारकांड के सर्ग 6 में है जो मानस से मेल खाता है, लेकिन थोड़ी सी भिन्नता लिए हुए है। जहां रामचरितमानस का कौवा माता सीता के पैर में एक बार चोंच मारकर भाग जाता है वहीं आनन्द रामायण में अंगूठे पर बार-बार चोंच मारने का प्रसंग आता है।
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कथा के अनुसार जयंत कौवे का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारता है। तब श्री राम की भृकुटि तन जाती है और वह पास में पड़े तिनके को उठाकर कौवा बने जयंत तरफ फेंक देते हैं। तिनका ब्रह्मास्त्र बन कर कौवा का पीछा करने लगता है। और अंत में उसकी एक आंख फोड़ देता है।
जब सुग्रीव क्रोधित हुए श्री राम
किष्किंधा कांड के अनुसार बालि वध के पश्चात श्री राम ने सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य सौंप दिया। इसके बदले में सुग्रीव ने सीता जी के खोज अभियान में सहायता करने का वचन दिया। लेकिन, सुग्रीव राजसुख में अपना वचन भूल बैठे। तब क्रोधित श्रीराम ने लक्ष्मण को अपना दूत बना कर सुग्रीव के पास भेजा, ताकि उन्हें उनके वचन की याद दिलाई जा सके। लक्ष्मण सुग्रीव के पास पहुंचते हैं और उन्हें भोग विलास में लिप्त देखकर क्रोधित हो जाते हैं। तत्पश्चात सुग्रीव अपने श्रेष्ठतम सेनानायक हनुमान को श्री राम की सहायता के लिए नियुक्त करते हैं।
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समुद्र की ढीठाई पर भी आया था क्रोध
रामचरित मानस के अनुसार लंका पर चढ़ाई के लिए सेतु निर्माण आवश्यक था। इसके लिए भगवान श्री राम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ तीन दिन तक समुद्र से रास्ता देने की प्रार्थना करते रहे। लेकिन समुद्र नहीं मानाया।
इस संबंध में गोस्वामी जी ने लिखा है-
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥
तब भगवान श्री रामजी ने क्रोध में लक्ष्मण से कहा- धनुष-बाण लाओ, मैं अग्निबाण से समुद्र को सुखा डालूं। मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति और कंजूस से सुंदर नीति की बात अच्छी नहीं लगती है। उनके ऐसा निश्चय करते ही समुद्र देवता थर-थर कांपने लगते हैं तथा प्रभु श्री राम से शांत होने की प्रार्थना करते हैं।
यदि देखा जाय तो वितरागी स्वभाव के भगवान श्री राम अपने जीवन काल में मात्र चार बार क्रोधित हुए हैं। फिर भी उन्होंने अपनी मार्यादा को कायम रखा। तभी तो उन्हें मार्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।
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