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दिलचस्प है इस जगह की कहानी, कभी गूंजती थी घुंघरुओं की खनक, आज है खंडहर

शेर-ए-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह के बहादुरी के किस्‍से जग जाहिर हैं। महाराजा रणजीत सिंह जितने बड़े योद्धा उतने ही बड़े हुस्‍न के पुजारी भी।

Aradhya Tripathi
Published on: 16 March 2020 3:46 PM GMT
दिलचस्प है इस जगह की कहानी, कभी गूंजती थी घुंघरुओं की खनक, आज है खंडहर
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दुर्गेश पार्थ सारथी, अमृतसर

शेर-ए-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह के बहादुरी के किस्‍से जग जाहिर हैं। इसके साथ ही महाराजा रणजीत सिंह जितने बड़े योद्धा, उतने ही बड़े धर्म व न्‍याय प्रीय होने के साथ-साथ हुस्‍न के पुजारी भी थे।

इन्‍हीं महाराजा रणजीत सिंह और उनके शासनकाल से जुड़े इतिहास के पन्‍ने अमृतसर में इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। जिन्‍हें समेटने की जरूरत हैं। इन्‍हीं ऐतिहासिक दस्‍तावेजों में से एक है 'पुल कंजरी'।

यह वही जगह है जहां एक नाचने वाली की चांदी की जूती नहर में गिर गई तो महाराजा रणजीत सिंह ने नहर पर पुल बनवा दिया था। अटारी बार्डर के पास स्थित है 'पुल कंजरी'

एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र

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यह ऐतिहासिक स्‍थल पंजाब के अमृतसर जिला मुख्‍यालय से करीब 35 किमी दूर स्थित अटारी-वाघा बार्डर पर दाका और औड़ा गांवों के पास अमृतसर-लाहौर रोड पर स्थित है।पुल कंजरी महाराजा रणजीत सिंह द्वारा निर्मित ऐतिहासिक स्थलों में से एक है।

इस स्‍थान पर कभी महाराजा राणजीत सिंह लाहौर से अमृतसर आते समय अपने सैनिकों के साथ आराम करते थे। कहा जाता है कि उनके शासनकाल के दौरान, पुल कंजरी एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।

ऐसे पड़ा गांव नाम

लोक मान्‍यता है कि 'पुल कंजरी' गांव का नाम एक पुल के नाम पर रखा गया था। जिसे राजा ने एक नर्तकी मोरन के लिए बनाया था जो कंजरी जाति की थी। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन नहर पार करते समय उसके एक पैर की जूती पानी में गिर गई।

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इससे मोरन को बहुत चोट लगी। इसी नाचने वाली मोरन की जिद पर महाराजा रणजीत सिंह ने एक पुल और एक छोटे किले का निर्माण करवाया। इस किले में एक स्नान कुंड, एक मंदिर, एक गुरुद्वारा और एक मस्जिद भी है जो महाराजा की धर्म निरपेक्षता का प्रतीक है।

इसी गांव में पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में भारत सरकार ने एक स्मारक का निर्माण करवाया है।

लोग खरीदारी के लिए अमृतसर और लाहौर सहित दूर-दराज के इलाकों से पुल कंजरी आते थे।

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इस शहर में अरोड़ा सिखों, मुसलमानों और हिंदुओं का निवास था। जो भारत के विभाजन तक खुशी से रहते थे। भारत विभाजन के बाद ये ऐतिहासिक शहर अब एक छोटे से गांव में सिमट गया है।

कौन थी मोरां

"मोरन" या मोरां के बारे मे कहा जाता है कि वह पास के गांव माखनपुरा की एक नाचने वाली थी। जो महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में नाचती थी। कहा जाता है कि मोरां इतनी सुंदर थी कि यह नर्तकी के साथ-साथ रणजीत सिंह की प्रेयसी भी थी।

गर्मियों में जब महाराजा रणजीत सिंह का दरबार लाहौर से अमृतसर आता था तो रास्ते में रावी नदी से जुड़ी एक छोटी सी नहर को पार करना पड़ा था। जिसे मुगल सम्राट शाहजहाँ ने लाहौर के शालीमार बाग को सींचने के लिए बनवाया था।

उस समय इस नहर में पुल नहीं था। एक दिन नहर पार करते समय मोरां की चांदी की जूती नहर के पानी में गिर गई। यह जूती महाराजा रणजीत सिंह ने उसे भेंट की थी।

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जूती पानी में बह जाने से नाराज होकर मोरां ने महाराजा के दरबार में नाचने से मना कर दिया। जब इस घटना की जानकारी महाराजा को मिली तो उन्होंने तुरंत नहर पर एक पुल के निर्माण का आदेश दिया।

पर्यटन विभाग ने दिया नया रूप

समय बदला, देश आजाद हुआ और रियासतें खत्‍म हो गईं। बदलते समय के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरें भी वक्‍त के चादर में ढंकने लगीं। इससे पुल कंजरी भी अछूता नहीं रहा। लंबे समय तक उपेक्षा की मार झेते पुल कंजरी को पर्यटन विभाग ने जीवन दान दिया। यहां महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनवाया गया तालाब, मंदिर, मस्जिद और बारादरी है, जिसे पर्यटन विभाग ने आकर्षक रूप दिया।

मौजूद है प्राचीन शिव मंदिर

स्मारक के दाहिनी ओर नानक शाही ईंटों से बना एक शिव मंदिर है। मंदिर की छत पर आकर्षक नक्‍काशी है। जो समय की मार झेलते-झेलते मिट चुका था। लेकिन अब यह अपने पुराने लुक में लौट आया है। मंदिर के साथ ही एक सरोवर भी है। उस जमाने में इस सरोवर में नहर से पानी की आपूर्ति होती थी। महिलाओं और पुरुषों के स्‍नान के लिए अलग-अलग घाट बने हुए हैं। साथ ही जानवरों को पानी पीने के लिए अलग व्‍यवस्‍था है।

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कभी घिरी रहती थी सैनिकों से आज वीरान है बारादरी

यहीं पर महाराजा रणजीत सिंह के ठहरने के लिए 12 दरवाजों वाली एक बारादरी बनी है। इसे 12 दरवाजों वाला घर भी कहा जाता है। इन्‍हीं 12 दरवाजों वाले घर में दरबार-ए-मुव के समय महफिल सजती थी। तबले की थाप और घुंघरुओं की खनक से रातें गुलजार होतीं थीं। सैनिकों से घिरी रहने वाली यह बारादरी आज खंडहर में बदल चुकी है।

Aradhya Tripathi

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