काकोरी कांड के बाद भगत सिंह ने लिखी थी ये किताब, इसे पढ़कर खौल उठेगा खून

आज काकोरी कांड की बरसी है। 9 अगस्त 1925 को आज ही के दिन काकोरी कांड को अंजाम दिया गया था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐतिहासिक आंदोलन हुए। लेकिन आज़ादी की पृष्ठभूमि में काकोरी कांड की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

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Published on: 9 Aug 2020 7:42 AM GMT
काकोरी कांड के बाद भगत सिंह ने लिखी थी ये किताब, इसे पढ़कर खौल उठेगा खून
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काकोरी कांड के नायक राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और रोशन सिंह की फ़ाइल फोटो

लखनऊ: आज काकोरी कांड की बरसी है। 9 अगस्त 1925 को आज ही के दिन काकोरी कांड को अंजाम दिया गया था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐतिहासिक आंदोलन हुए। लेकिन आज़ादी की पृष्ठभूमि में काकोरी कांड की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

विडंबना है कि इसके बारे में बहुत ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिलता। इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी।

लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि काकोरी कांड वह घटना थी जिसके बाद देश में क्रांतिकारियों की नई तस्वीर भारतीय जनता के सामने आई। क्रांति के प्रति लोगों का नजरिया बदल गया।

आजादी के इतिहास में असहयोग आंदोलन के बाद काकोरी कांड को एक बहुत महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा सकता है।

काकोरी कांड के लिए हमेशा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह समेत कुल दस क्रांतिकारियों को याद किया जाता है। इन्होंने काकोरी कांड के दौरान जर्मनी के माउज़र का इस्तेमाल किया था और, करीब चार हजार रुपये लूटे थे।

9 अगस्त 1925 को हुई इस घटना के ऊपर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने पंजाबी पत्रिका ‘किरती’ में काफी विस्तार से लिखा है। साथ ही इस पूरी घटना से जुड़ी कई अहम बातों का उल्लेख भी किया है।

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शहीद भगत सिंह की फ़ाइल फोटो

अपनी किताब में इन दस खास दोस्तों का किया है जिक्र

भगत सिंह ने अपनी किताब में दस मुख्य और अन्य साथियों का जिक्र किया है, साथ ही उनका पूरा परिचय भी लिखा है।

इनमें,राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, शचींद्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी, गोविंद चरणकार, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य, राजकुमार, विष्णु शरण दुब्लिस, रामदुलारे, अशफाक उल्ला खां के नाम को शामिल किया गया है। उन्होंने अपने साथियों को काकोरी कांड के नायक के तौर पर पेश किया है।

किताब में अध्याय की शुरूआत कुछ इस तरह से की है, ‘’9 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन से एक ट्रेन रवाना हुई। गाड़ी चलने के कुछ ही देर बाद उसमें बैठे 3 युवाओं ने गाड़ी रोक दी। ये वाकया लखनऊ से करीब 8 मील की दूरी पर हुआ था।

उन्होंने ने बड़ी चालाकी से ट्रेन में बैठे अन्य यात्रियों को धमका दिया था और समझाया था कि उन्हें कुछ नहीं होगा बस चुप रहें।

दोनों तरफ से चली थी कई राउंड गोलियां

उनके ही अन्य दोस्तों ने गाड़ी में मौजूद सरकारी खजाने को लूट लिया। इसी दौरान दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी और इसी बीच एक यात्री ट्रेन से उतर गया और उसकी गोली लगने से मौत हो गई’’।

इस घटना ने अंग्रेजों को अंदर से हिलाकर रख दिया। उन्होंने मामले की जांच शुरू कर दी। सीआईडी के अफसर हार्टन को जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। हार्टन इस बात को भलीभांति जानता था ये सब क्रांतिकारी जत्थे द्वारा ही किया गया है।

जैसे ही जांच शुरू हुई तो उसके कुछ दिनों के बाद ही क्रांतिकारियों की मेरठ में होने की सूचना मिल गई। वे वहां पर एक बैठक करने वाले थे। इस बैठक का अफसर को पता लग गया और उसने जांच और तेज कर दी।

सितंबर माह की शुरुआत में ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां होनी चालू हो गई और , बाद में एक-एक करके सभी की गिरफ्तारियां शुरू हो गई।

सबसे पहले राजेंद्र लाहिड़ी को बम कांड में दस साल की सज़ा सुनाई गई। बाद में अशफाक उल्ला, शचींद्र बख्शी भी बाद में धर लिए गए’।

काकोरी कांड के नायक राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और रोशन सिंह की फ़ाइल फोटो काकोरी कांड के नायक राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और रोशन सिंह की फ़ाइल फोटो

काकोरी कांड, मुकदमा और फांसी

काकोरी कांड का मकसद सिर्फ अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूटना था और उन्हें एक कड़ा संदेश पहुंचाना था। इसके बाद जब अधिकतर लोग पकड़े गए तो दस महीने तक मुकदमा अदालत में चला और फांसी तक की नौबत आ गई। जनवरी, 1928 में भगत सिंह ने फिर ‘किरती’ पत्रिका में लेख लिखा।

17 दिसंबर, 1927 को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा में, 19 दिसंबर को रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खां को फैज़ाबाद, रोशन सिंह को इलाहाबाद की जेल में फांसी दे दी गई।

सुनवाई कर रहे सेशन जज हेमिल्टन ने कहा था कि ये सभी नौजवान देशभक्त हैं, भले ही इन्होंने अपने फायदे के लिए कुछ ना किया हो लेकिन अगर ये जवान कहें कि वो अपने किए का पश्चाताप करेंगे तो सज़ा में कुछ रियायत दी जा सकती है। लेकिन अंग्रेज़ी हुकूमत के आदेश पर फांसी दे दी।

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काकोरी स्टेशन की फ़ाइल फोटो काकोरी स्टेशन की फ़ाइल फोटो

शहीद, फांसी का तख्ता और शायरी

अपनी किताब में फांसी और शायरी का जिक्र करते हुए लिखा है- ‘अशफाक फांसी से एक दिन पहले अपने बाल सही कर रहे थे, तब उन्होंने साथी से कहा कल मेरी शादी है और कैसी बातें कर रहे हैं। फांसी की ओर जाने से पहले अशफाक उल्ला खां ने शेर पढ़ा, ‘फ़नाह हैं हम सबके लिए, हम पै कुछ नहीं मौक़ूफ़।

वक़ा है एक फ़कत जाने की ब्रिया के लिए’। इसके अलावा उन्होंने कहा। ‘तंग आकर हम उनके ज़ुल्म से बेदाद से, चल दिए सूए अदम ज़िन्दाने फ़ैज़ाबाद से’।

अशफाक उल्ला खां से इतर जब रामप्रसाद बिस्मिल को 19 की शाम को फांसी दी गई, तब वो बड़े ज़ोर से वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाने लगे। उसी वक्त राम प्रसाद बिस्मिल ने कहा

‘मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे

बाक़ी न मैं रहूं, न मेरी आरज़ू रहे

जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे

तेरी ही जिक़्रेयार, तेरी जुस्तजू रहे’

जब राम प्रसाद बिस्मिल फांसी के तख्ते पर पहुंचे तो उन्होंने फिर शेर पढ़ा, ‘अब न अहले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है’।

इस पिस्तौल का किया गया था इस्तेमाल

बता दें कि 1927 से किरती पत्रिका में काकोरी के बारे में लिखने का काम करीब डेढ़ साल तक जरी रहा। जब भी कोई बात भगत सिंह को पता लगती या वीरों से जुड़ी कोई जानकारियां मिलतीं तो उनके बारे में और कुछ जानकारी जुटाकर पत्रिका में लेख लिखने के काम में जुट जाते थे। उन्होंने अपनी किताब में काकोरी कांड से जुड़े हर उस व्यक्ति के बारे में लिखा जो काकोरी कांड में किसी न किसी रूप में जुड़ा रहा।

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