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मेजर शैतान सिंहः लगा दिये लाशों के ढेर, 1800 चीनी सैनिकों को दी मौत
18 नवंबर 1962 को चीन ने भारत पर जब इस मोर्चे पर हमला किया, तो भारत के पास 120 सैनिक थे। वहीं चीन के पास करीब 2000 हजार सैनिक थे। चूंकि शैतान सिंह अपनी टुकड़ी को लीड कर रहे थे, इसलिए उन्होंने अधिकारियों को रेडियो संदेश भेजा और सहायता के लिए मदद मांगी, लेकिन उन्हें कहा गया कि अभी मदद नहीं मिल पाएगी।
लखनऊ: मेजर शैतान सिंह भाटी भारतीय सेना के एक ऐसे अधिकारी थे, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र सम्मान दिया गया। जिनके नाम से चीनी सेना थर-थर कांपती है। ये 1962 के भारत-चीन युद्ध के हीरो थे। मेजर सिंह पढ़ाई करने के बाद पहले जोधपुर राज्य बलों में शामिल हुए थे, लेकिन जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया था। उन्होंने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय आपरेशन में भी हिस्सा लिया था।
13वीं कुमाऊंनी बटालियन के थे मेजर शैतान सिंह
मेजर शैतान सिंह का आज जन्म हुआ था। 1962 में चीन हमले के समय 13वीं कुमाऊंनी बटालियन की C कंपनी लद्दाख में तैनात थी। इस टुकड़ी में 120 जवान थे। मेजर शैतान सिंह इसकी अगुवाई कर रहे थे। कह सकते हैं कि यह वह समय था जब भारतीय सेना के पास न तो बढ़िया हथियार थे, न ही भीषण ठंड से बचने के लिए कपड़े। कल्पना करना कठिन है कि उस समय सैनिक किस तरह ठिठुरते हुए माइनस टेंपरेचर में युद्ध लड़ते होंगे। या उन्होंने युद्ध लड़ा।
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1962 की युद्ध में शैतान सिंह ने दिखायी बहादुरी
18 नवंबर 1962 को चीन ने भारत पर जब इस मोर्चे पर हमला किया, तो भारत के पास 120 सैनिक थे। वहीं चीन के पास करीब 2000 हजार सैनिक थे। चूंकि शैतान सिंह अपनी टुकड़ी को लीड कर रहे थे, इसलिए उन्होंने अधिकारियों को रेडियो संदेश भेजा और सहायता के लिए मदद मांगी, लेकिन उन्हें कहा गया कि अभी मदद नहीं मिल पाएगी। सभी सैनिकों को लेकर पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाओ। पोस्ट छोड़ने का मतलब हार मानना।
120 सैनिकों के बल पर चीन से लड़े शैतान सिंह
मेजर शैतान सिंह इस फैसले पर हैरान रह गए। उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाया और कहा कि हम 120 है, दुश्मनों की संख्या हमसे ज्यादा हो सकती हैं। हमें कोई मदद नहीं मिल रही है। हो सकता है हमारे पास मौजूद हथियार कम पड़ जाएं। हो सकता है हम से कोई न बचे और हम सब शहीद हो जाए। इसलिए जो भी अपनी जान बचाना चाहते हैं, वह पीछे हटने के लिए आजाद हैं। लेकिन मैं मरते दम तक मुकाबला करूंगा।मेजर की इस बात पर कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ। सबने साथ देने का फैसला किया।
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कम संसाधन होने के बावजूद लड़े शैतान सिंह
शैतान सिंह ने कहा कि हमारे पास संसाधन कम हैं और दुश्मनों की संख्या ज्यादा है। ऐसे में कोशिश करें कि एक भी गोली बर्बाद न जाए। हर गोली निशाने पर लगे। इसी के साथ दुश्मनों के मारे जाने पर उनसे बंदूक छीन ली जाए। चीनी सेना ये मान चुकी थी कि भारतीय सेना ने चौकी छोड़ दी है, क्योंकि वह रेडियो संदेश की फ्रिक्वेंसी को कैच कर रही थी। लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उसका सामना शैतान सिंह और उनके वीरों से है।
रेजांग ला की कहानी
18 नवंबर 1962 की सुबह बर्फीला धुंधलका पसरा था। सूरज 17,000 फीट की ऊंचाई तक अभी नहीं चढ़ सका था। सीमा पर भारत के पहरुए मौजूद थे। 13 कुमायूं बटालियन की ‘सी’ कम्पनी चुशूल सेक्टर में तैनात थी। बटालियन में 120 जवान थे, जिनके पास इस पिघला देने वाली ठंड से बचने के लिए कुछ भी नहीं था। तभी सुबह के धुंधलके में रेजांग ला (रेजांग पास) पर चीन की तरफ से कुछ हलचल शुरू हुई।
चीन ने भारत के खिलाफ चली थी एक चाल
बटालियन के जवानों ने देखा कि उनकी तरफ रोशनी के कुछ गोले चले आ रहे हैं। बटालियन के अगुआ मेजर शैतान सिंह ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। थोड़ी देर बाद उन्हें पता चला कि ये रोशनी के गोले असल में लालटेन हैं। इन्हें कई सारे यॉक के गले में लटकाकर चीन की सेना ने भारत की तरफ भेजा था। ये एक चाल थी।
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10 चीनी सैनिकों एक भारतीय जवान ने लिया था लोहा
दूसरी तरफ से तोपों और मोर्टारों का हमला शुरू हो गया। चीनी सैनिकों से ये 120 जवान लड़ते रहे। दस-दस चीनी सैनिकों से एक-एक जवान ने लोहा लिया। ज्यादातर जवान शहीद हो गए और बहुत से जवान बुरी तरह घायल हो गए। मेजर खून से सने हुए थे। दो सैनिक घायल मेजर शैतान सिंह को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए।
शैतान सिंह ने पैर से चलाया था मशीन गन
उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया कि एक मशीन गन लेकर आओ। उन्होंने कहा कि गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे एक पैर से बांध दो, क्योंकि उनके दोनों हाथ खून से लथपथ थे। उन्होंने रस्सी की मदद से अपने एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी। उन्होंने दोनों जवानों से कहा कि सीनियर अफसरों से फिर से संपर्क करो। दोनों सैनिक वहां से चले गए। मेजर लड़ते रहे। बाद में उनके बारे में कुछ नहीं पता चला।
बर्फ के नीचे दबा मिला था शैतान सिंह का शव
तीन महीने बाद जब बर्फ पिघली और रेड क्रॉस सोसायटी और सेना के जवानों ने उन्हें खोजना शुरू किया, तब एक गड़रिये ने बताया कि एक चट्टान के नीचे कोई दिख रहा है। लोग उसी चट्टान के नीचे पहुंचे, जहां मेजर ने मशीन-गन से चीनी सैनिकों का मुकाबला किया था। उस जगह उनका शव मशीन-गन के साथ मिला। पैरों में अब भी रस्सी बंधी हुई थी। बर्फ की वजह से उनका शरीर जम गया था।
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शैतान सिंह के साथ मिले 114 जवानों के शव
पता नहीं कितनी देर तक वो चीनी सैनिकों से लड़ते रहे और कब बर्फ ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। उनके साथ उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के शव भी मिले। बाकी लोगों को चीन ने बंदी बना लिया था। हालांकि भारत युद्ध हार गया था, लेकिन बाद में पता चला कि चीन की सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला पर ही हुआ था। चीन के करीब 1800 सैनिक इस जगह मारे गए थे। ये एकमात्र जगह थी, जहां भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसने नहीं दिया था।
परमवीर चक्र से नवाजे गए थे मेजर शैतान सिंह
बाद में मेजर शैतान सिंह का उनके होमटाउन जोधपुर में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इसके बाद उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला।
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