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मन के बहुत चेहरे
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार-ये क्या अलग-अलग हैं? ये अलग-अलग नहीं हैं, ये मन के ही बहुत चेहरे हैं। जैसे कोई हमसे पूछे कि बाप अलग है, बेटा अलग है, पति अलग है? तो हम कहें कि नहीं, वह आदमी तो एक ही है। लेकिन किसी के सामने वह बाप है, और किसी के सामने वह बेटा है, और किसी के सामने वह पति है
ओशो
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार-ये क्या अलग-अलग हैं? ये अलग-अलग नहीं हैं, ये मन के ही बहुत चेहरे हैं। जैसे कोई हमसे पूछे कि बाप अलग है, बेटा अलग है, पति अलग है? तो हम कहें कि नहीं, वह आदमी तो एक ही है। लेकिन किसी के सामने वह बाप है, और किसी के सामने वह बेटा है, और किसी के सामने वह पति है; और किसी के सामने मित्र है और किसी के सामने शत्रु है और किसी के सामने सुंदर है और किसी के सामने असुंदर है।
और किसी के सामने मालिक है और किसी के सामने नौकर है। वह आदमी एक है। और अगर हम उस घर में न गए हों और हमें कभी कोई आकर खबर दे कि आज मालिक मिल गया था, और कभी कोई आकर खबर दे कि आज नौकर मिल गया था और कभी कोई आकर कहे कि आज पिता से मुलाकात हुई थी। और कभी कोई आकर कहे कि आज पति घर में बैठा हुआ था, तो हम शायद सोचें कि बहुत लोग इस घर में रहते हैं। हमारा मन बहुत तरह से व्यवहार करता है।
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हमारा मन जब अकड़ जाता है और कहता है: मैं ही सब कुछ हूं और कोई कुछ नहीं, तब वह अहंकार की तरह प्रतीत होता है। वह मन का एक ढंग है वह मन के व्यवहार का एक रूप है। तब वह अहंकार, जब वह कहता है मैं ही सब कुछ। जब मन घोषणा करता है कि मेरे सामने और कोई कुछ भी नहीं, तब मन अहंकार है। और जब मन विचार करता है, सोचता है, तब वह बुद्धि है। और जब मन न सोचता, न विचार करता, सिर्फ तरंगों में बहा चला जाता है।
जब मन डायरेक्शन लेकर सोचता है जैसे एक वैज्ञानिक बैठा है प्रयोगशाला में और सोच रहा है कि अणु का विस्फोट कैसे हो, एक डायरेक्टेड थिंकिंग, तब मन बुद्धि है। और जब मन निरुद्देश्य, निर्लक्ष्य, सिर्फ बहा जाता है। कभी सपना देखता है, कभी धन देखता है, कभी राष्ट्रपति हो जाता है। तब वह चित्त है। तब वह सिर्फ तरंगें मात्र है। और तरंगें असंगत, असंबद्ध, तब वह चित्त है। और जब वह सुनिश्चित एक मार्ग पर बहता है, तब वह बुद्धि है। ये मन के ढंग हैं बहुत, लेकिन मन ही है।
वे पूछते हैं कि ये मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त और आत्मा अलग हैं या एक हैं? सागर में तूफान आ जाए, तो तूफान और सागर एक होते हैं या अलग?
आत्मा जब विक्षुब्ध हो जाती है तो हम कहते हैं, मन है और मन जब शांत हो जाता है तो हम कहते हैं, आत्मा है। मन जो है वह आत्मा की विक्षुब्ध अवस्था है; और आत्मा जो है वह मन की शांत अवस्था है। इसलिए जब तक आपको मन का पता चलता है तब तक आत्मा का पता न चलेगा। और इसलिए ध्यान में मन खो जाता है। खो जाता है इसका मतलब? इसका मतलब, वे जो लहरें उठ रही थीं आत्मा पर, सो जाती हैं, वापस शांति हो जाती है। तब आपको पता चलता है कि मैं आत्मा हूं। जब तक विक्षुब्ध हैं तब तक पता चलता है कि मन है। विक्षुब्ध मन बहुत रूपों में प्रकट होता है। कभी अहंकार की तरह, कभी बुद्धि की तरह, कभी चित्त की तरह. वे विक्षुब्ध मन के अनेक चेहरे हैं।
बुरे वक्त से बचाए फेंग्शुई गैजेट ऊंट
अगर आप बुरे वक्त के दौर से गुजर रहे हैं तो घर में फेंग्शुई गैजेट ऊंट की स्थापना करें। यह आपको परेशानियों से निजात दिलाएगा।
फेंग्शुई का ऊंट न सिर्फ बुरे समय में हमारे लिए सहायता का काम करता है, बल्कि उसकी स्थापना हमें आने वाली विपदा व दुर्भाग्य से भी बचाती है। जिस तरह यह जानवर विलक्षण क्षमताओं वाला है, उसी प्रकार फेंग्शुई गैजेट के रूप में भी इसके प्रभाव विलक्षण हैं। ऊंट एकमात्र ऐसा जानवर है, जो विपरीत परिस्थितियों में कई दिनों तक बिना खाए-पीए रहकर भी अपने सवार को उसकी मंजिल तक पहुंचाने का माद्दा रखता है।
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अगर आपके परिवार में आए दिन कोई न कोई बीमार रहता है या परिवार के किसी सदस्य को बीमारी, दुर्घटना आदि का खतरा बना रहता है, तो यह गैजेट निश्चित रूप से उसके लिए सहायक साबित हो सकता है।
हमारी आधी से अधिक चिंताओं और परेशानियों की वजह होती है आर्थिक समस्या। आपको अपने निवेश का उचित प्रतिफल मिले और आपके पास नगद की आवक बनी रहे, इसके लिए फेंग्शुई ऊंट को घर के उत्तर-पश्चिम में स्थापित करना चाहिए। निवेश को सुरक्षित बनाने और उससे अधिकतम लाभ पाने के लिए ऊंट का जोड़ा स्थापित करना चाहिए।
अगर आपका पैसा कहीं फंसा हुआ है और वह आपको सही समय पर प्राप्त नहीं हो रहा है या आप नगदी की समस्या से जूझ रहे हैं तो डबल यानी दो कूब वाले ऊंटों के जोडे़ को घर में स्थापित करें।
घर ही नहीं, आफिस में भी इसे स्थापित करना आर्थिक तरक्की दिलाता है। यह आपके व्यापार के रिस्क को कम करता है, आपके निवेश को सुरक्षित बनाता है तो चुनौतियों का सामना करने की क्षमता भी प्रदान करता है। घर की तरह ऑफिस में भी इसे उत्तर-पश्चिम दिशा में ही स्थापित करना चाहिए।
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भोजन का कभी न करें इसका तिरस्कार
प्रकृति ने मनुष्य को भोजन के रूप में जीवन के लिए जरूरी सबसे बड़ा उपहार दिया है, लेकिन आजकल की जिंदगी में हम अक्सर इस आवश्यकता की ही अनदेखी कर देते हैं। वास्तु में भोजन बनाने और भोजन करने को लेकर कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं।
हमेशा भोजन करने से पहले अन्न देवता और अन्नपूर्णा माता को धन्यवाद दें। ध्यान रखें कि कभी भी भोजन का तिरस्कार न होने पाए। पूर्व दिशा की ओर मुख कर भोजन करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, भगवान की कृपा भी प्राप्त होती है। मान्यता है कि पूर्व दिशा की ओर मुख कर भोजन करने से आयु बढ़ती है। सदैव भोजन करने से पहले हाथ, पैर और मुंह को धोएं। इसके पश्चात ही भोजन ग्रहण करें। जमीन पर बैठकर ही भोजन ग्रहण करें।
बिस्तर पर बैठकर भोजन न करें। ऐसा करने से घर में अशांति आती है। भोजन बनाते समय मन को शांत रखें और परिवार के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें। स्वस्थ जीवन जीने के लिए भोजन में सफेद खाद्य पदार्थों का सेवन कम से कम करें। भोजन में प्रयुक्त होने वाला नमक घर की नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करने में सहायक है। यदि घर में नकारात्मक ऊर्जा का आभास हो रहा हो तो शीशे के बर्तन में नमक डालकर घर के किसी भी कोने में रख दें। इसके अलावा डली वाला नमक लाल रंग के कपड़े में बांधकर घर के मुख्य द्वार पर लटका देने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है। बच्चों के स्नान के पानी में जरा सा नमक डाल दें तो बच्चे सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहेंगे।
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