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कोरोना टेस्टिंग की सबसे तेज तकनीक, 5 मिनट में जांचे जा सकते हैं एक साथ 22 सैंपल
शोधकर्ताओं ने कोरोना की जांच की ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके जरिए 5 से 7 मिनट में 22 सैंपल एक साथ जांचे जा सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरीके से की गई जांच का नतीजा भी बहुत जल्दी मिल जाता है।
अंशुमान तिवारी
मिशिगन। पूरी दुनिया में कोरोना का संक्रमण बढ़ने के बाद इस वायरस की सटीक और तेज जांच की तकनीक ढूंढने की कोशिशें भी काफी तेजी से चल रही है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस प्रयास में जुटे हुए हैं कि आखिर किस तरह इस वायरस के संक्रमण का तेजी से पता लगा कर संक्रमित व्यक्ति का इलाज किया जा सके। अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने इस मामले में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
शोधकर्ताओं ने कोरोना की जांच की ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके जरिए 5 से 7 मिनट में 22 सैंपल एक साथ जांचे जा सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरीके से की गई जांच का नतीजा भी बहुत जल्दी मिल जाता है।
जांच में नहीं होती मरीजों को दिक्कत
मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तरीका वर्तमान में अपनाई जा रही जांच की प्रक्रिया से अलग है। इस जांच में मरीजों को ज्यादा परेशानी भी नहीं होती। दूसरी जांचों में मरीजों को नाक से सैंपल देते वक्त परेशानी होती है जबकि इस जांच के लिए सैंपल मुंह से लिया जाता है।
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मात्र पांच मिनट में ही मिल जाती है रिपोर्ट
मिशिगन यूनिवर्सिटी का यह शोध लैंसिंग स्टेट जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक की बड़ी खासियत यह है कि इसके नतीजे बहुत कम समय में हासिल हो जाते हैं। मात्र पांच मिनट में ही किसी के कोरोना से संक्रमित होने का पता लगाया जा सकता है। शोध के मुताबिक जांच रिपोर्ट में कम समय लगने के कई कारण हैं।
इसका पहला कारण यह है कि सैंपल मरीज के नाक से लेकर मुंह से लिया जाता है। दूसरा प्रमुख कारण यह है अभी तक जो जांच प्रक्रिया अपनाई जा रही है उसमें सैंपल को गर्म करना पड़ता है और रंग बदलने वाली प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जबकि इस तकनीक में पीसीआर मशीन रियल टाइम में नतीजे बता देती है। यही कारण है कि कम समय में जांच का नतीजा हासिल हो जाता है।
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इस तरह की जाती है जांच
कोरोना की जांच की यह नई तकनीक मिशिगन यूनिवर्सिटी के इमरजेंसी मेडिसिन फिजीशियन ब्रेट इच्छेबेर्न ने खोजी है। प्रोफेसर ब्रेट ने जांच की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस प्रक्रिया में वायरस के आरएनए पर नजर रखी जाती है। जांच की प्रक्रिया के दौरान सेंटर्स फॉर डिजीज एंड कंट्रोल (सीडीसी) की गाइडलाइन को फॉलो किया जाता है। इस तरह जांच करना आसान हो जाता है।
मंजूरी के बाद आम लोगों की होगी जांच
प्रोफेसर ब्रेट का कहना है कि यह जांच तकनीक फिलहाल क्लीनिकल लेबोरेटरी अमेंडमेंट्स लैब की प्रक्रिया से गुजर रही है। यहां से मंजूरी मिलने के बाद एफडीए से अनुमति लेनी होगी। उन्होंने कहा कि इस तकनीक को अप्रूवल मिलने में कई हफ्ते का समय लग सकता है। उन्होंने कहा कि पूरी टीम ने शोध को करने में काफी मेहनत की है और हम इस जांच को लेकर काफी आशावान हैं। उन्होंने कहा कि इस तकनीक को विकसित करने के लिए काफी समय से काम किया जा रहा था और जांच की इस प्रक्रिया को अनुमति मिलने के बाद यह आम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकेगी।
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