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इंदिरा गांधी से जलता था ये नेता! ऐसे तय किया प्रधानमंत्री तक का सफर
जी हां आप समझ गए होंगे हम बात कर रहे हैं मोरारजी देसाई। इन्होंने कई बार प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की। लेकिन तकदीर ने साथ नहीं दिया। ऐसा नहीं है कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के काबिल नहीं थे लेकिन अफसोस उनकी तकदीर ऐन मौके पर उनका साथ छोड़ देती थी।
रामकृष्ण वाजपेयी
आज हम आपको एक ऐसे नेता के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी राजनीति का एक बड़ा हिस्सा देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी से जलन, ईर्ष्या, द्वेष, व हताशा में गुजर गया। सुनकर आप चौंक जाएंगे कि इस नेता ने अपने पिता के खुदकुशी कर मौत को गले लगाने के तीसरे दिन ही शादी कर ली थी।
जिस नेता के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं इस नेता का जन्म आज यानी 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था। इस नेता की महत्वाकांक्षा को पूरा होने में एक लंबा समय लगा और अंततः जब यह नेता देश का प्रधानमंत्री बना तो अपने साथी चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते इन्हें प्रधानमंत्री पद भी छोड़ना पड़ गया।
वैसे तो इस नेता में तमाम खूबियां रहीं भारत के स्वतंत्रता सेनानी, देश के छठे प्रधानमंत्री और गैर कांग्रेसी दल के पहले प्रधानमंत्री के अलावा वह एकमात्र ऐसी शख्सियत बना जिसे भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न व पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशाने पाकिस्तान दोनो से सम्मानित किया गया।
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जी हां आप समझ गए होंगे हम बात कर रहे हैं मोरारजी देसाई। इन्होंने कई बार प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की। लेकिन तकदीर ने साथ नहीं दिया। ऐसा नहीं है कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के काबिल नहीं थे लेकिन अफसोस उनकी तकदीर ऐन मौके पर उनका साथ छोड़ देती थी।
1977 में देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सके
वरिष्ठ नेता होने के बावजूद पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद भी उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मतभेदों के चलते ही अंततः उन्होंने कांग्रेस छोड़ी और इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष के साझा नेतृत्व का पद स्वीकार किया। 1977 में देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
मोरारजी भाई देसाई का संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था इनके पिता रणछोड़ जी देसाई भावनगर में एक स्कूल अध्यापक थे, लेकिन वह अवसाद से ग्रस्त रहते थे यानी कि मोरारजी को निराशा और चिंता की यह बीमारी विरासत में मिली। इनके पिता ने कुएं में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त की और पिता की मृत्यु के तीसरे दिन ही मोरारजी देसाई की शादी हो गई।
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मोरारजी देसाई पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे पढ़ने लिखने के वक्त उन्होंने महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेश के नेताओं के भाषणों को सुना था लेकिन यह मूलतः गांधी से प्रभावित रहे। शिक्षा खत्म होने के बाद मोरारजी देसाई ने मुंबई प्रोविंशियल सिविल सर्विस के लिए आवेदन किया और यह अफसर बन गए, लेकिन 11 साल तक इस सेवा में रहने के बावजूद मोरारजी देसाई कोई खास उन्नति नहीं कर सके और कलेक्टर के निजी सहायक पद तक ही पहुंच सके। इसके बाद मोरारजी देसाई ने सरकारी नौकरी छोड़ दी।
1952 में इन्हें मुंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया था
मोरारजी देसाई की कांग्रेस में वरिष्ठता का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि 1952 में इन्हें मुंबई का मुख्यमंत्री बनाया गया था 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तो मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया लेकिन मोरारजी देसाई इस बात को लेकर बहुत कुंठित थे कि वरिष्ठ नेता होने के बावजूद न तो उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के रहने पर प्रधानमंत्री बनाया गया, ना ही पंडित जवाहरलाल नेहरू के न रहने पर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया और अब इंदिरा के मंत्रिमंडल में दूसरा दर्जा उनको बर्दाश्त नहीं था।
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इसीलिए वह इंदिरा गांधी के कामों में लगातार बाधा डालते रहते। हालांकि इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद के लिए चयन चुनाव से हुआ था और उसमें मोरारजी देसाई के मुकाबले इंदिरा गांधी भारी मतों से जीती थीं। इसके बावजूद इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई के अहम को तुष्ट करने के लिए प्रधानमंत्री का पद दिया।
बावजूद इसके वह इंदिरा गांधी का लगातार विरोध करते रहे और 1977 में जब इंदिरा गांधी की नीतियों के खिलाफ विपक्ष का ताजा गठबंधन जनता पार्टी के रूप में सामने आया तो मोरारजी देसाई इसके नेता बन गए। हालांकि यहां पर भी चौधरी चरण सिंह व जगजीवन राम उनके प्रतिद्वंदी थे, लेकिन जयप्रकाश नारायण किंग मेकर की भूमिका में थे, इसका लाभ उठाकर मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।