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सत्ता बंटवारे से बनी प्रचंड-ओली में दरार

दो साल पहले नेपाल की दो बड़ी पार्टियों ने हाथ मिला कर नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी और इसी के साथ सत्ता की शेयरिंग का प्लेटफार्म बना दिया था...

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Published on: 1 July 2020 2:20 PM GMT
सत्ता बंटवारे से बनी प्रचंड-ओली में दरार
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नीलमणि लाल

लखनऊ: दो साल पहले नेपाल की दो बड़ी पार्टियों ने हाथ मिला कर नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी और इसी के साथ सत्ता की शेयरिंग का प्लेटफार्म बना दिया था। सत्ता की शेयरिंग का यही प्लेटफार्म आज प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के बीच दरार बन गया है।

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ओली ये दर्शाते रहे हैं की प्रचंड उनको अपदस्थ करने की कोशिश कर रहे हैं। ओली का ये भी आरोप है कि उनको सत्ता से हटाने के लिए भारत प्रचंड को उकसा रहा है। भारत ने ही 2006 में नेपाल में शांति बहाली के लिए एक समझौते में मध्यस्थता की थी। इसके साथ नेपाल में माओवादी विद्रोह समाप्त हो गया था। इस शांति संधि में प्रचंड की अहम भूमिका रही थी।

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ओली का दिल्ली पर निशाना

ओली ने हाल ही में एक समारोह में कहा था कि सीमा विवाद में मेरे रुख के चलते दिल्ली की गतिविधियां, नेपाल में कुछ हल्कों की राजनीति और इनका गठजोड़ मुझे सत्ता से हटाने के उद्देश्य से है। ओली जिस सीमा विवाद की बात कर रहे थे वो भारत के साथ है। और ओली ने हाल ही में संविधान संशोधन बिल पास किया था जिसके तहत नेपाल के नए नक्शे को स्वीकृति दी गई जिसमें भारत के कुछ क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है।

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पीएम पद छोड़ कर गलती की

दूसरी ओर प्रचंड ने कहा है कि बारी बारी से प्रधानमंत्री बनने के समझौते के तहत पद छोडना मेरी गलती थी। दरअसल, 6 महीने पहले प्रचंड ने एक बयान दिया था जिसमें उन्होने कहा था कि वे ओली को पाँच साल के लिए प्रधानमंत्री बने रहने देने पर रज़ामंद हैं। समझा जाता है कि ओली ने प्रचंड को भरोसा दिया था कि वे समस्त कार्यकारी अधिकारों के साथ पार्टी प्रमुख बने रहेंगे। लेकिन असलियत में ऐसा नहीं हुआ और ओली सभी बड़े फैसले लेते रहे हैं। ओली ही पार्टी प्रमुख के दायित्वों को निभाते हैं और प्रचंड को हमेशा इन फैसलों की जानकारी भी नहीं दी जाती।

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फिलहाल अभी ओली और प्रचंड दोनों ही नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष हैं। क्योंकि एकीकरण के वक्त ओली कम्यूनिस्ट पटरी ऑफ नेपाल – यूनिफ़ाइड मार्कसिस्ट लेनिनिस्ट (यूएमएल) के प्रमुख थे जबकि प्रचंड कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल – माओइस्ट के अध्यक्ष थे।

ओली – प्रचंड

69 वर्षीय ओली प्रचंड से तीन साल बड़े हैं। स्कूल में ही पढ़ाई छोड़ देने वाले ओली को 22 साल की उम्र में पूर्वी नेपाल के एक किसान धर्म प्रसाद ढकल की हत्या के जुर्म में जेल की सजा हुई थी। ओली उस वक्त नक्सली आंदोलन के सदस्य थे। 14 साल जेल में बिताने के बाद उनको 80 के दशक में राजा के आदेश पर माफी मिली थी। ओली 1991 में संसद सदस्य चुने गए और इसी के साथ वे राजनीति की पायदान पर आगे बढ्ने लगे।

ओली की तरह प्रचंड 70 के दशक में अपने छात्र जीवन के दौरान भूमिगत नक्सली आंदोलन से जुड़ गए। 1990 में जब बहुदलीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था शुरू हुई तब प्रचंड ने इसमें हिस्सा न लेकर सशस्त्र विद्रोह छेड़ दिया। 1996 में प्रचंड ने माओवादी रास्ता अख़्तियार किया और उनका उद्देश्य था राजशाही, बहुदलीय लोकतान्त्रिक और संशोधनवादी वामपंथियों का खात्मा। जहां तक विचारधारा की बात है तो ओली माओवादियों के विरोधी थे और पूरे विद्रोह काल में उन्होने माओवादियों की आलोचना की।

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2006 में भारत की मध्यस्थता में शांति प्रक्रिया के साथ विद्रोह खतम हुआ और प्रचंड एक हीरो बन कर उबरे। लेकिन ओली को नेपाल के एक हिन्दू साम्राज्य से एक सेक्यूलर व फेडरल गणराज्य में परिवर्तित होने में संदेह था। ओली द्वारा उस समय दिया गया ये बयान काफी महत्वपूर्ण माना गया कि आप बैलगाड़ी पर सवर हो कर अमेरिका नहीं पहुँच सकते।

आए पास पास

मतभेदों के बावजूद ओली और प्रचंड नेपाल में शांति बहाली के बाद गठबंधन वाली सत्ता में एक जुट हुये। दोनों ने 2017 के चुनाव साथ साथ लड़ने और रिजल्ट के बाद विलय करने का फैसला किया। चुनाव में ओली को पीएम कैंडीडेट के तौर प्रदर्शित करने का भी पहले से तय था। दोनों ने 275 में से 174 सीटें जीतें। इसके बाद से हुये घटनाक्रम में ओली हीरो बन कर उभरे हैं। खास कर नाकाबंदी के खिलाफ़ भारत से आँख से आँख मिलाने और चीन के साथ व्यापार समझौता करने के मामले में ओली को एक मजबूत नेता माना जाने लगा है।

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बढ़ गईं दूरियाँ

ओली और प्रचंड भले ही सत्ता शेयरिंग में साथ साथ थे लेकिन उनके बीच मतभेद शुरू से ही दिखाई देने लगे थे। ओली को ऐसा प्रेसिडेंट चाहिए था जो किसी संकट के समय उनकी रक्षा कर सके सो उन्होने अपनी पुरानी सहयोगी बिदया देवी भण्डारी को इस पद के लिए चुना। दूसरी तरफ प्रचंड को ऐसा स्पीकर चाहिए था जो एकता टूटने की संभावना में उनके ग्रुप की सदस्यता छिनने से बचा सके। ऐसे में प्रचंड ने अग्नि सपकोटा को स्पीकर बनवा दिया। स्पीकर के पद पर पहले केबी महारा आसीन थे लेकिन सेक्स स्कैंडल में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

ओली पर लगे आरोप

पिछले महीने ओली एक अध्यादेश ले आए जिसमें कहा गया था कि पार्टी कार्यसमिति या संसदीय दल में 40 फीसदी समर्थन अलग होने को दो-फाड़ माना जाएगा। ऐसे में सदन की सदस्यता नहीं जाएगी। संभवतः ओली ने ऐसा करके प्रचंड को अलग हो जाने का एक रास्ता दिया था। ओली पर आरोप लगे कि वे दो तिहाई बहुमत हासिल करने के लिए दूसरे दलों में विघटन कराना चाहते हैं। विवाद के चलते ओली ने ये अध्यादेश वापस ले लिए।

प्रचंड को मिलेनियम चैलेंज कार्पोरेशन से मिलने वाली 500 मिलियन डालर की ग्रांट पर भी ऐतराज है। प्रचंड और दो अन्य पूर्व पीएम माधव नेपाल व झलनाथ का कहना है कि ये ग्रांट अमेरिका के सुरक्षा हितों के तहत दी जा रही है।

ओली कैंप के पूर्व संचार मंत्री गोकुल बसकोटा ने कहा था कि भ्रष्टाचार के मामले में प्रचंड का हाथ होने की जांच होनी चाहिए। प्रचंड पर 2008-13 के बीच शांति प्रक्रिया के दौरान माओवादी सदस्यों के लिए दी गई रकम हड़पने का आरोप है।

इसके अलावा ओली कैंप ने ये भी मांग उठाई है कि माओवादी विद्रोह के दौरान मानवअधिकारों के उल्लंघन के मामलों के लिए प्रचंड और उनके समर्थकों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

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अब क्या होगा...?

विश्लेषकों का मानना है कि ओली को स्पष्ट संदेश मिल चुका है और वे बहुत से बहुत तीन चार महीनों में पद छोड़ देंगे। अगर तत्काल ऐसा होता है तो पार्टी नेताओं पर आरोप लगेगा कि भारत के समर्थन से ओली को हटाया गया है।

दूसरी ओर प्रचंड का कहना है कि ओली ने उनसे कई बार कहा था कि अगर दोनों एक साथ काम नहीं कर सके तो उनको अलग अलग रास्ते अपना लेने चाहिए। स्टैंडिंग कमेटी के उद्घाटन सत्र में उन्होने कहा था कि वे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तर्ज पर नेपाल में तख़्ता पलट की संभावना की चर्चा सुन रहे हैं। इस बयान से ऐसा माना जा रहा है कि ओली पूर्ण नियंत्रण के लिए नेपाली सेना का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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