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स्वार्थ से बचना मुश्किल है , कोई उपाय नहीं आता है काम...

आप स्वार्थ से चाह कर भी बच नहीं सकते। ‘मैं स्वार्थी नहीं होना चाहता, मैं स्वार्थी नहीं होना चाहता...’-ऐसी सोच रखना भी तो स्वार्थ है। ख़ुद को गंभीरता से देखें और बताएँ, क्या आप वास्तव में स्वार्थी न बनने के काबिल हैं? चाहे आप जैसे भी देखें, आप केवल अपने ही नज़रिए से जीवन को समझ सकते हैं।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 10 July 2020 2:01 PM GMT
स्वार्थ से बचना मुश्किल है , कोई उपाय नहीं आता है काम...
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सद्‌गुरु जग्गी वासुदेव

आप स्वार्थ से चाह कर भी बच नहीं सकते। ‘मैं स्वार्थी नहीं होना चाहता, मैं स्वार्थी नहीं होना चाहता...’-ऐसी सोच रखना भी तो स्वार्थ है। ख़ुद को गंभीरता से देखें और बताएँ, क्या आप वास्तव में स्वार्थी न बनने के काबिल हैं? चाहे आप जैसे भी देखें, आप केवल अपने ही नज़रिए से जीवन को समझ सकते हैं। तो किसी को भी निःस्वार्थी कहा ही नहीं जा सकता। नैतिकता से ख़ुद को भटकाएँ मत। स्वार्थी न होकर देखें, आप केवल ख़ुद को छल रहे होंगे। निःस्वार्थता एक ऐसा झूठ है जिसे नैतिकता ने संसार में रचा है, जिससे अनेक व्यक्ति छले जाते रहे हैं।

लोग सोचते हैं मैं निःस्वार्थ भाव से कोई काम कर रहा हूँ। लेकिन वे उस काम को इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें ऐसा करने से ख़ुशी मिलती है। तो निःस्वार्थी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। स्वार्थी बनें, पूरी तरह से स्वार्थी बनें। इस समय समस्या यह है कि आप अपने स्वार्थ के साथ भी कंजूसी कर रहे हैं।

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इस समय आपका स्वार्थ केवल इतने तक सीमित है, ‘मैं ख़ुश रहना चाहता हूँ।’ आप पूरी तरह स्वार्थी हो जाइए और कहिए, ‘मैं पूरे ब्रह्माण्ड को ख़ुश देखना चाहता हूँ। मैं अस्तित्व के कण-कण को ख़ुश देखना चाहता हूँ।’ तो पूरी तरह से स्वार्थी हो जाइए, तब कोई परेशानी नहीं रहेगी। आप अपनी सेल्फ़िशनेस में भी कंजूसी करते हैं, यही सबसे बड़ी समस्या है।

असीम स्वार्थ जगाना होगा

तो चलिए स्वार्थी बनते हैं, इसमें परेशानी क्या है? पर हमें असीमित भाव से स्वार्थी होना होगा। कम से कम स्वार्थ में तो पूरे हो सकें। हम जीवन के कई पहलुओं में पूरा होना ही नहीं चाहते। कम से कम पूरी तरह से स्वार्थी तो बनें। अगर आप सबसे ऊँचे मुकाम तक जाना चाहते हैं या अनंत को पाना चाहते हैं तो इसके दो उपाय हो सकते हैं - आप या तो शून्य हो जाएँ या फिर अनंत हो जाएँ। ये दोनों अलग नहीं है। निःस्वार्थी होने की कोशिश में आप खुद को नीचे ले आते हैं - आप खुद को दस से पाँच पर ले आते हैं पर आप ख़ुद को पूरी तरह से विलीन नहीं कर सकते।

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या तो आपको शून्य बनना होगा, या फिर अनंत बनना होगा। भक्ति का रास्ता ख़ुद को घुला देने का है। आप समर्पण करके शून्य हो जाते हैं - तब कोई समस्या नहीं रहती। या आप हर चीज को अपने एक अंश की तरह संजो लेते हैं और सब कुछ बन जाते हैं - तब भी कोई समस्या नहीं रहती। पर जब आप अपने बारे में बात करते हैं, तो एक सत्ता सामने आ जाती है, इस तरह शून्य होने का सवाल ही नहीं पैदा होता। आपके लिए अनंत होना ही बेहतर होगा। यह आपके लिए एक सरल रास्ता होगा।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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