×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

जोश मलिहाबादी का वो गीत, मोरे जुबना (यौवन) का देखो उभार पापी...

जोश मलिहाबादी का आज जन्मदिन या यौमे वेलादत है। आप सोच भी नहीं सकते कि इस शायर ने 1944 में फिल्म मनमौजी के लिए एक ऐसा गीत लिख दिया था जिसे तत्कालीन समाज स्वीकार नहीं कर सका था और इस गीत को अश्लील मानकर हंगामा खड़ा हो गया था।

Newstrack
Published on: 5 Dec 2020 11:59 AM IST
जोश मलिहाबादी का वो गीत, मोरे जुबना (यौवन) का देखो उभार पापी...
X
जोश मलिहाबादी का वो गीत, मोरे जुबना (यौवन) का देखो उभार पापी...

रामकृष्ण वाजपेयी

जोश मलिहाबादी का आज जन्मदिन या यौमे वेलादत है। आप सोच भी नहीं सकते कि इस शायर ने 1944 में फिल्म मनमौजी के लिए एक ऐसा गीत लिख दिया था जिसे तत्कालीन समाज स्वीकार नहीं कर सका था और इस गीत को अश्लील मानकर हंगामा खड़ा हो गया था।

1944 में बनी फ़िल्म मनमौजी के इस गीत के बोल थे। ‘मोरे जुबना (यौवन) का देखो उभार पापी, जैसे नद्दी की मौज जैसे तुर्कों की फ़ौज, जैसे सुलगे से बम, जैसे बालक उधम, जैसे गेंदवा खिले जैसे लट्टू हिले, जैसे गद्दार अनार, मोरे जुबना का देखो उभार’.

ये भी पढ़ें: पांच सालों में गैरभाजपाई दलों के लिए परेशानी का सबब बनी ये पार्टी

...एक ऐसे शायर जिन्हें इंकलाबी और रुमानी माना जाता है

जोश एक ऐसे शायर हुए जिन्हें इंकलाबी और रुमानी माना जाता है। कुछ लोग उन्हें इंकलाबी कम और रूमानी ज्यादा मानते हैं। हिन्दुस्तान ने उन्हें चाहा सम्मान दिया लेकिन इस शायर को बंटवारे के बाद पाकिस्तान रास आया और अपने जिगरी दोस्त पं. जवाहरलाल नेहरू की अनसुनी कर वह पाकिस्तान चले गए जहां उनके सपनों का महल चकनाचूर हुआ। और वह गुमनामी की जिंदगी जीते हुए अपने फैसले पर अफसोस के साथ रुखसत हो गए।

File Photo

लखनऊ के मलिहाबाद में जन्मे शब्बीर हसन खां जोश उपनाम के साथ नज्में लिखा करते थे बाद में नाम पीछे छूट गया और जोश और मलिहाबादी रह गया। हालांकि ये शायर 1958 तक ही भारत में रहा इसके बाद पाकिस्तान चला गया। क्योंकि उन्हें वहां अपने सपनों की इमारत दिखाई दे रही थी।

जोश मलीहाबादी सेंट पीटर्स कॉलेज आगरा में पढ़े थे। सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा 1914 में उत्तीर्ण की थी। साथ में अरबी और फ़ारसी का अध्ययन किया। लगभग छह माह रविंद्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में भी रहे। लेकिन 1916 में पिता बशीर अहमद खान का निधन होने के बाद पढ़ाई रुक गई। हालांकि कहा ये जाता है कि जोश खानदारी रईस थे जमींदारी थी और पैसा बरसता था।

एक और खास बात इनके पिता नहीं चाहते थे कि ये शायर बनें हालांकि वह खुद भी शायर थे। और पिता पुत्र में बहुत प्रेम था लेकिन इनके शायर बनने के वह सख्त खिलाफ थे। लेकिन किस्मत में शायर बनना लिखा था।

ये भी पढ़ें: 220 करोड़ लोग अंधेपन का शिकारः कोरोना बढ़ा रहा बीमारी

File Photo

यहां से की थी काम की शुरुआत

जोश ने काम की शुरुआत 1925 में 'उस्मानिया विश्वविद्यालय' हैदराबाद में अनुवाद की निगरानी के कार्य से की। लेकिन वहां ज्यादा दिन नहीं रह सके। दरअसल जोश ने एक नज़्म हैदराबाद के निजाम के ख़िलाफ़ लिख दी जिस कारण से इन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया गया।

इसके बाद जोश ने पत्रिका, कलीम (उर्दू में "वार्ताकार") की स्थापना की, जिसमें उन्होंने खुले तौर पर भारत में ब्रिटिश शासन से आज़ादी के पक्ष में लेख लिखा इस साहस के लिए उन्हें शायर-ए-इन्कलाब कहा जाने लगा। इसी कारण इनके रिश्ते कांग्रेस विशेषकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मजबूत हुए। भारत में ब्रिटिश शासन के समाप्त होने के बाद जोश आज-कल प्रकाशन के संपादक बन गए।

देश के बंटवारे के बाद ये शायर भारत में खुद को बेगाना महसूस करने लगा सबके मना करने के बावजूद पाकिस्तान की ओर से दिखाए गए सब्जबाग से भ्रमित हो गया और पाकिस्तान चला गया। जहां बहुत जल्द जोश के सपनों का महल दरकने लगा। और पाकिस्तान इन्हें कभी स्वीकार नहीं कर पाया। अंत में ये अपनी तनहाइयों में कैद हो गए। और 22 फरवरी 1982 को दुनिया से रुखसत हो गए।



\
Newstrack

Newstrack

Next Story