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बलिदान दिवस: इतिहास में गुम हुआ आज़ादी का ये नायक, हंसते-हंसते चूमा फंदे को

काकोरी कांड में दोषसिद्धि के बाद फांसी के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख तय की गई थी। लेकिन इस महान क्रांतिकारी को जेल से जबरन छुड़ाकर ले जाने के लिए चन्द्रशेखर आजाद के गोंडा में आकर कहीं छिप जाने की खुफिया सूचना पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नियत तिथि से दो दिन पूर्व 17 दिसम्बर 1927 को ही फांसी पर लटका दिया।

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Published on: 16 Dec 2020 1:49 PM IST
बलिदान दिवस: इतिहास में गुम हुआ आज़ादी का ये नायक, हंसते-हंसते चूमा फंदे को
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बलिदान दिवस: इतिहास में गुम हुआ आज़ादी का ये नायक, हंसते-हंसते चूमा फंदे को

तेज प्रताप सिंह

गोंडा: 'मैं मरने नही, अपितु स्वत्रंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूं' यह अमर वाक्य अल्पायु से आजादी के दीवाने राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी के हैं, जिन्होंने 26 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था। पिता और भाई की देशभक्ति से प्रेरित लाहिड़ी दिल में राष्ट्र प्रेम की चिंगारी लेकर मात्र नौ वर्ष की आयु में ही बंगाल से अपने मामा के घर वाराणसी आए और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद गये।

इतिहास में गुम आज़ादी की क्रांति का एक नायक

काकोरी कांड में दोषसिद्धि के बाद फांसी के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख तय की गई थी। लेकिन इस महान क्रांतिकारी को जेल से जबरन छुड़ाकर ले जाने के लिए चन्द्रशेखर आजाद के गोंडा में आकर कहीं छिप जाने की खुफिया सूचना पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नियत तिथि से दो दिन पूर्व 17 दिसम्बर 1927 को ही फांसी पर लटका दिया। लेकिन आजादी के बाद लाहिड़ी के बलिदान को भुला दिया गया। अब उनकी शहादत पर सिर्फ रस्म अदायगी होती है।

नौ साल की उम्र में हो गए थे आजादी के दीवाने

राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी का जन्म 29 जून 1901 को बंगाल के पावना जिले के अर्न्तगत मड़या मोहनपुर गांव में हुआ था। उनके पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी और माता का नाम बसंत कुमारी था। 1905 में हुए बंग-भंग यानी बंगाल को मज़हब के आधार पर हिन्दू-बहुल पश्चिम बंगाल और मुस्लिम-बहुल पूर्वी बंगाल में बांट देने का अंग्रेज़ी शासकों का निर्णय के विरोध में उनके पिता क्षितिज मोहन और अग्रज जीतेन्द्र नाथ लाहिड़ी जेल चले गए। लिहाजा मां बसंत कुमारी ने उन्हें मात्र 09 साल की उम्र में ही पढ़ाई के लिए मामा के पास वाराण्सी भेज दिया। यहां उनकी मुलाक़ात अपने दूर के रिश्तेदार शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुई। वाराणसी में ही उनकी शिक्षा सम्पन्न हुई काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी काशी हिन्दू विश्वविद्याालय से इतिहास विषय में परास्नातक के छात्र थे। उनकी कार्य कुशलता को देखते हुऐ उन्हें हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की गुप्त शाखा की बैठक में आंमत्रित किया गया।

shadeed rajendra lahidi

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अघ्ययन प्रेमी थे लाहिड़ी

राजेन्द्र लाहिड़ी की दृढता, देश प्रेम और आजादी के प्रति दीवानगी के गुणों को पहचान कर शचीन्द्र नाथ सान्याल ने उन्हें अपने साथ रखकर वाराणसी से निकलने वाली पत्रिका बंगवाणी के सम्पादन का दायित्व सौंपा था। सान्याल ने उन्हें क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति की वाराणसी शाखा का संयोजक ही नहीं बनाया, बल्कि उसके हथियारों के जख़ीरे का भी जिम्मा सौंप दिया।

पठन पाठन में अत्यधिक रुचि रखने वाले लाहिड़ी लेखन को भी प्राथमिकता देते थे। बांग्ला साहित्य के प्रति स्वाभाविक प्रेम के कारण लाहिडी ने अपने भाईयों के साथ मिलकर माता बसंत कुमारी की स्मृति में बंसन्त कुमारी नाम का एक पुस्तकालय स्थापित कर लिया था। काकोरी काण्ड में गिरफ्तारी के समय ये काशी हिन्दू विश्वविद्याालय की बांग्ला साहित्य परिषद के मंन्त्री थे। इनके लेख बांग्ला के बंग वाणी और शंख आदि पत्रों में छपा करते थे। क्रान्तिकारियों के हस्त लिखित पत्र अग्रदूत के प्रर्वतक थे।

काकोरी ट्रेन लूटकाण्ड के नायक थे लाहिड़ी

क्रान्तिकारियों द्वारा चलाये जा रहे स्वत्रंन्त्रता आन्दोलन को गति देने के लिए धन की तत्काल व्यवस्था को देखते हुऐ शाहजहांपुर में दल के सामरिक विभाग के प्रमुख पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के निवास पर हुई। बैठक में लाहिड़ी जी भी सम्मिलित हुए, जिसमें सभी क्रान्तिकारियो ने एक मत से अग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना को अन्तिम रूप दिया अशफाक उल्ला खां के ट्रेन को न लूटने के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था।

इस योजना को अन्जाम देने के लिए लाहिड़ी ने काकोरी से टेृन छूटते ही जंजीर खीच कर उसे रोक लिया ओर 9 अगस्त 1925 की शाम सहारनपुर से चलकर लखनऊ पहुंचने वाली आठ डाउन ट्रेन पर क्रान्तिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने अशफाक उल्ला खां और चन्द्र शेखर आजाद व 6 अन्य सहयोगियों की मदद से धावा बोल दिया।

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काकोरी काण्ड के बाद बिस्मिल ने लाहिड़ी को कलकत्ता भेज दिया

कुल 10 नवयुवकों ने ट्रेन में जा रही सरकारी खजाना लूट लिया। मजे की बात उसी ट्रेन में अग्रेजी सैनिकों तक की हिम्मत नही हुई कि वह मुकाबला कर सकें। काकोरी काण्ड के बाद बिस्मिल ने लाहिडी को कलकत्ता भेज दिया। जहां बम बनाने के दौरान एक बम फट गया। बम का धमाका सुनकर पुलिस आ गयी और 9 साथियों के साथ राजेन्द्र गिरफ्तार हो गये।

उन पर मुकदमा चला और उन्हे 10 वर्ष की सजा हुई अपील करने पर सजा 5 वर्ष की हो गयी। बाद में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा प्रमुख क्रान्तिकारियों पर काकोरी काण्ड का मुकदमा दायर कर सभी पर सरकार के विरूद्व युद्व छेडने तथा खजाना लूटने का न केवल आरोप लगाया गया, बल्कि झूठी गवाहियां व मनगढन्त प्रमाण प्रस्तुत कर साबित भी कर दिया। तमाम अपीलों और दलीलों के बावूजूद सरकार टस से मस न हुई और अंततः राजेन्द्र लाहिडी, पंडिण्त बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, ठाकुर रौशन सिंह को एक साथ फांसी की सजा सुना दी गयी।

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दक्षिणेश्वर से खुला लाहिड़ी की मौत का दरवाजा

1923 में क्रांतिकारी अरबिन्दो घोष के भाई और ‘अग्नियुग’ किताब के लेखक बारीन्द्र घोष इस आंदोलन के ध्वजवाहक बनकर उभरे। इसके बाद अरबिन्दो और बारीन्द्र व अन्य द्वारा बनाए गए दूसरे क्रांतिकारी दल ‘युगान्तर’ नामक संगठन ने अंग्रेजी हुकूमत पर दबाव बरकरार रखते हुए डकैतियों से लेकर के कलकत्ता के आततायी कमिश्नर चार्ल्स टेगार्ट की हत्या के दो प्रयासों तक कारनामे किए।

इस दौरान उन्हें टैगोर, बंगाल कान्ग्रेस आदि का भी नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ। इन सब से घबरा कर बंगाल सरकार ने अपने लिए विशेष दमनकारी शक्तियां केंद्रीय ब्रिटिश शासन से ले लीं और क्रांतिकारियों को ‘आतंकवादी’ बताने का अभियान तेज़ कर दिया। 25 अक्टूबर 1924 को पास हुए बंगाल आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश ने अगले 6 महीने तक बिना अपील या ज्यूरी के ‘आतंकवादियों’ पर मुकदमा चलाने की छूट दे दी। इस कदम की ‘सफलता’ से उत्साहित बंगाल के गवर्नर ने 1925 में इसे 6 महीने के लिए और आगे बढ़ा दिया।

इसी दौरान पश्चिम बंगाल के वर्तमान 24 परगना जिले में दक्षिणेश्वर के बाचस्पतिपाड़ा स्थित एक घर में इकठ्ठा हुए कुछ उत्साही क्रांतिकारियों ने ‘दक्षिणेश्वर समूह’ बनाया। इसमें हावड़ा, हुगली, नादिया और चिट्टागोंग (चटगांव) के क्रांतिकारी शामिल थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम पर बने दक्षिणेश्वर समूह संगठन का गौरवशाली इतिहास है। राजेन्द्र लाहिड़ी संयुक्त प्रांत की पुलिस से बचे रहें, क्योंकि किसी प्रकार से पुलिस को काकोरी में शामिल क्रांतिकारियों के नाम पता चल गए थे और सरगर्मी से तलाश जारी थी।

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10 नवंबर 1925 को राजेन्द्र लाहिड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया

इसके अलावा बम बनाने का तरीका संगठन के सदस्य को पता रहने से अंतिम ध्येय कि अंग्रेज़ों के खिलाफ इतना बड़ा सशस्त्र आंदोलन खड़ा करना, जिससे उनके लिए भारत को कब्ज़े में रखना असम्भव हो जाए में भी सहायता मिलती। इन्हीं मंशाओं की पूर्ति के लिए सान्याल और बिस्मिल ने लाहिड़ी को दक्षिणेश्वर संगठन का हिस्सा बनने के लिए कलकत्ता भेजा था। जहां बम बनाने के दौरान असावधानीवश एक धमाका हुआ और पुलिस ने 10 नवंबर 1925 की सुबह राजेन्द्र लाहिड़ी समेत 09 क्रांतिकारियों को पिस्तौल, हथियारों आदि के साथ गिरफ़्तार कर लिया।

हालांकि दक्षिणेश्वर समूह के लिए काम करते समय इस घटना के लिए भले ही लाहिड़ी को केवल 10 साल की सजा हुई, लेकिन उनकी मौत का दरवाज़ा उसी धमाके से खुल गया। उन्हें कलकत्ते की अलीपुर जेल से लखनऊ सेंट्रल जेल शिफ़्ट किया गया, जिसमें उन पर अन्य साथियों के साथ काकोरी कांड का मुकदमा चला। हज़रतगंज स्थित रिंग थिएटर (वर्तमान जीपीओ) में अदालत लगी और तमाम जिरह बहस के बाद काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारियों राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रौशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान को फांसी की सजा सुनाई गई।

दो दिन पूर्व हुई फांसी

जनविद्रोह के डर से बिस्मिल को गोरखपुर, लाहिड़ी को गोंडा, अशफाक उल्ला खान को फैज़ाबाद और ठाकुर रौशन सिंह को इलाहाबाद जेल भेज दिया गया। इनकी फांसी की तारीख 19 दिसंबर 1927 तय हुई थी। उन्हें जेल से जबरन छुड़ाकर ले जाने के लिए चन्द्रशेखर आजाद के गोंडा में आकर कहीं छिप जाने की खुफिया सूचना पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नियत तिथि से दो दिन पूर्व 17 दिसम्बर 1927 को ही फांसी पर लटका दिया। राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे।

06 अप्रैल 1927 केा फांसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। 17 दिसम्बर को फांसी से पूर्व सुबह जब लाहिड़ी व्यायाम कर रहे थे तब जेलर ने पूछा कि प्रार्थना तो ठीक है, परन्तु अन्तिम समय इतनी कसरत क्यों? राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूं? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। मैं आजाद भारत में जन्म लेकर भारत मां की सेवा करना चाहता हूं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिले, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलिाफ़ युद्ध में काम आ सके।

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हर साल मनाया जाता है लाहिड़ी दिवस

अमर शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को गोंडा जनपद में एक महान क्रान्तिकारी का स्थान प्राप्त हैं। प्रति वर्ष 17 दिसम्बर को जिले के समस्त विद्यालयों एंव प्रशासनिक प्रतिष्ठानों में राजकीय कार्यक्रम होते हैं। सभी सम्बद्व प्रतिष्ठानों में शहीद लाहिडी के सम्मान में सास्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इन समस्त सांस्कृतिक आयोजन का केन्द्र बिन्दु जिला कारागार होता है। कारागार में फांसी घर में स्थापित लाहिड़ी प्रतिमा के समक्ष यज्ञ का आयोजन किया जाता है।

हवा हवाई साबित र्हुइं घोषणायें

वर्ष 2011 में 17 दिसम्बर को आयोजित कार्यक्रम के दौरान राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी के स्मृति में गोंडा की पहचान को बरकरार रखने के लिए कई घोषणायें र्हुइं। इसमें अम्बेडकर चौराहे से जेल रोड जिला कारागार तक के रोड का नाम राजेन्द्र नाथ लाहिडी मार्ग करने, समाधि स्थल से बूचड़ घाट के बजाय उसका नाम बदल कर राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी घाट या लाहिड़ी समाधि स्थल किये जाने, गोंडा कचेहरी रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर शहीद लाहिड़ी के नाम रेलवे स्टेशन किये जाने, रेलवे स्टेशन परिसर में दस लाख रुपये से स्टेशन परिसर में लाहिडी की एक प्रतिमा लगाने, शहीद लाहिड़ी के नाम प्रेरणा पार्क के सौन्दर्यीकरण तथा पीपल चौराहे का नाम बदल कर शहीद लाहिड़ी चौराहा करने एवं काकोरी भवन जैसी कई घोषणाएं सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गयीं।

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