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'गाय' से होगा कोरोना वायरस का इलाज, नहीं है कोई दूसरा उपाय

अभी तक कोई भी देश कोरोना वायरस की कोई भी वैक्सीन या दवा नहीं बना पाया है। लेकिन क्या आपको पता है कि वैक्सीन शब्द आया कहा से है और इसका क्या मतलब होता है।

Aradhya Tripathi
Published on: 24 April 2020 9:12 PM IST
गाय से होगा कोरोना वायरस का इलाज, नहीं है कोई दूसरा उपाय
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पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रहा है। चीन के एक छोटे से शहर वुहान से शुरू हुआ ये वायरस अब दुनिया एके लगभग हर देश में अपने पैर पसार चुका है। इस वायरस ने पूरी दुनिया हाहाकार मचा रखा है। अब तक इस खतरनाक वायरस से पूरी दुनिया में 1,91,423 लोगों की जान जा चुकी है। जिसके चलते पूरी दुनिया हर देश के डॉक्टर और वैज्ञानिक इस वायरस की वैक्सीन बनाने में लगे हैं। कई देश वैक्सीन बनने का दावा भी कर चुके हैं। लेकिन अभी तक कोई भी देश इस वायरस की कोई भी वैक्सीन या दवा नहीं बना पाया है। लेकिन क्या आपको पता है कि वैक्सीन शब्द आया कहा से है और इसका क्या मतलब होता है। आज हम आपको बताएंगे वैक्सीन शब्द का अर्थ और कहा से हुई है इसकी उत्पत्ति।

लैटिन भाषा से हुई वैक्सीन शब्द की उत्पत्ति

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दुनिया भर के डॉक्टर्स और वैज्ञानिक कोरोना वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन का निर्माण कर रहे हैं। लेकिन अफ़सोस अभी तक किसी को कोई सफलता हाथ नहीं लगी है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं की वैक्सीन शब्द आया कहां से है और इस शब्द का मतलब क्या है। वैक्सीनेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द वैक्सीनम से हुई है। वर्ल्‍ड ऑफ डिक्‍शनरी में इस शब्द का अर्थ 'गाय या गाय से लिया गया' भी होता है। इसके अलावा इसे वैक्‍सीनी, वैक्सिना, वैक्सिनी, वैक्सिनिस, वैक्सिनो, वैक्सिनोरम भी कहा जाता है। वैक्‍सीनम का एक मतलब काऊबेरी (Cowberry) भी होता है।

1796 में हुआ शोध

पश्चिम में वैक्‍सीनोलॉजी के संस्‍थापक ब्रिटिश डॉक्‍टर एडवर्ड जेनर ने डेयरी उद्योग में काम करने वाली महिलाओं पर 1796 में एक शोध किया। इस शोध में उन्होंने पाया कि ये महिलाएं चेचक से संक्रमित न होकर वैक्‍सीनिया नामक वायरस से संक्रमित होती थीं। जिसके लक्षण लगभग चेचक जैसे ही होते थे। लेकिन वो उससे भिन्न था। इम्‍यूनाइजेशन एडवाइजरी सेंटर की एक रिपोर्ट में पता चलता है कि महिलाओं पर इस शोध के बाद उन्होंने 13 साल के एक लड़के पर काऊपॉक्‍स को लेकर शोध किया।

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उन्होंने उस लड़के के हाथ में एक कट लगाकर उसे काऊपॉक्स से संक्रमित कर दिया। जिसके बाद उन्होंने ये साबित कर दिया किये स्‍मॉलपॉक्‍स या चेचक नहीं है। जिसके बाद उन्होंने स्‍मॉलपॉक्‍स यानि चेचक के टीके का निर्माण किया। डेयरी उद्योग पर शोध से पहला टीका बनने के कारण बाद में किसी भी वायरस से प्रतिरक्षा प्रदान करने वाले इम्‍युनाइजेशन को वैक्‍सीनेशन कहा जाने लगा। तभी से ये वैक्सीन और वैक्सीनेशन शब्द लोगों की नजर में आए। और इनका उपयोग किया जाने लगा।

1890 से 1950 के बीच वैज्ञानिकों ने बनाईं सारी वैक्सीन

प्राचीन कॉल में देखने पर पता चलता है कि चीन में सांप के डसने होने वाले नुकसान या दिक्कत को रोकने के लिए बौद्ध भिक्षु सांप के ही जहर का अल्प मात्रा में विशेष विधि के जरिये सेवन करते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि 17 वीं शताब्दी में ये भिक्षु सांप के जहर के जरिये ही स्वयं को काऊपॉक्स और स्‍मॉलपॉक्‍स जैसी खतरनाक बीमारी से भी सुरक्षित रखते थे। एडवर्ड जेनर के उस लड़के पर सफल परिक्षण के बाद 1798 में चेचक की पहली वैक्‍सीन पूरी तरह से बनकर तैयार हो गई थी। इसके बाद 18वीं और 19वीं शताब्‍दी में अभियान चलाकर स्‍मॉलपॉक्‍स का टीकाकरण किया गया। जिसे बाद 1979 में स्‍मॉल पॉक्‍स का पूरी दुनिया से खात्मा करने के लिए टीकाकरण को व्‍यवस्थित तरीके से लागू किया गया। जिसके बाद फ्रांस के माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट लुई पाश्चर ने जर्म थ्‍योरी ऑफ डिजीज दी।

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लुई पाश्चर ने 1897 में हैजा और 1904 में एंथ्रेक्स वैक्‍सीन बना ली थी। इसके अलावा लुई पाश्चर चिकनपॉक्‍स और रैबीज की भी वैक्‍सीन बनाईं। इसके अलावा 19वीं शताब्‍दी के अंत तक वैज्ञानिकों ने प्‍लेग की वैक्‍सीन भी तैयार कर ली थी। जिसके बाद 1890 से 1950 के बीच वैज्ञानिकों ने बीसीजी समेत कई वक्‍सीन बना ली थीं, जिनका आज भी इस्‍तेमाल किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि आक्रामक टीकाकरण अभियान के जरिये दुनिया से खसरा बीमारी को पूरी तरह खत्‍म किया जा सकता है।

ऐसा रहा वैक्सीन का अभी तक का सफ़र

वैक्सीन के निर्माण के बाद कई रोगों के इलाज में तमाम फायदों के बाद भी कई लोगों द्वारा वैक्सीनेशन का विरोध किया जाता रहा। 1970 के आखिर से लेकर 1980 के दशक में वैक्‍सीन निर्माताओं के खिलाफ मुकदमों की तादाद लगातार बढती गई और उनका मुनाफा लगातार घटता गया। अंततः विरोअध और मुकदमों से परेशान आ कर बहुत सी कंपनियों ने वैक्‍सीन का उत्‍पादन बंद कर दिया। धीरे-धीरे वैक्‍सीन उत्‍पादन करने वाली कंपनियों की संख्‍या बहुत कम रह गई। वैक्‍सीन उत्‍पादन में तब एक साथ बड़ी गिरावट आई, जब 1986 में अमेरिका में नेशनल वैक्‍सीन इंजुरी कंपनसेशन प्रोग्राम लागू किया गया।

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जिसके बाद पिछले दो दशक की बात करें तो इन दो दशकों में मॉल्‍यूकुलर जेनेटिक्‍स का ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। इस दौरान हेपेटाइटिस बी की वैक्‍सीन बड़ी उपलब्धि के तौर पर मानी जाती है। इसी समय में वैज्ञानिकों ने सीजनल इंफ्लूएंजा वैक्‍सीन भी बनाई। इस बीच वैज्ञानिकों ने डीएन वैक्‍सीन, वायरल वेक्‍टर, प्‍लांट वैक्‍सीन और टॉपिकल फॉर्मूलेशन पर जमकर काम किया। पोलिया अप्रैल, 2014 तक करीब-करीब पूरी दुनिया से खत्‍म हो चुका था। इसके बाद के दौर में वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई सबसे प्रमुख व प्रभावी वैक्सीन टीबी की रही। इसके अलावा पेंडेमिक इंफ्लूएंजा और एचआईवी सहित कुछ और वैक्सीनों का भी सफल परिक्षण और उत्पादन वैफ्यानिकों द्वारा इस दौर में किया गया। वहीं, इस समय दुनियाभर के वैज्ञानिकों का पूरा ध्‍यान कोरोना वायरस की वैक्‍सीन बनाने पर लगा है। जिसमें जल्द ही सफलता मिलने की उम्मीद है।



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