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दंगों के दोषियों के लिए क्या है देश का कानून, यहां जानें सजा और नियमों के बारें में
राजधानी दिल्ली में CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू से ही हिंसक हो गए थे। हम आपको बताएंगे कि दोषियों के खिलाफ क्या-क्या कार्यवाई हो सकती है।
नई दिल्ली: पिछले काफी समय से हिंसा की आग में जल रही है दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू से ही हिंसक हो गए थे। जामिया मिलिया इस्लामिया में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन ने हिंसा का रूप ले लिया। जिसके बाद इस हिंसक आग में घी डालने का काम अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं ने किया। राजनीतिक पार्टियों के नेताओं और शरजील इमाम जैसे छात्र नेताओं ने बयानबाजी कर लोगों को भड़काने का काम किया।
जिसके बाद ये काम बढ़ता गया। और फिर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के नेता वारिस पठान ने लोगों को उकसाने वाला बयान दिया। आखिर में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने रही-बची कसर पूरी कर दी। इसी दिन शाम को दिल्ली में सीएए के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई।
हम आपको बताएंगे कि दोषियों के खिलाफ क्या-क्या कार्यवाई हो सकती है।
हिंसा में अब तक 46 की मौत
दिल्ली की हिंसा में अब तक 46 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 200 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। दिल्ली में हिंसा का ताडंव जब रुका तो सभी ने एक सुर में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने दिल्ली में हुए उपद्रव के सिलसिले में 150 से ज्यादा मुकदमे दर्ज किए हैं। वहीं, अब तक 600 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। कानून के जानकारों का कहना है कि दंगों के दोषियों को 6 महीने से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।
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हत्या का चल सकता है केस
दंगों में शामिल लोगों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-147, 148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरूद्ध इकट्ठे होना) लगाई जाती है। इसमें दोषी पाए जाने पर 2 साल की कैद और जुर्माना लगता है। इसके अलावा आईपीसी की धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जानबूझकर घायल करना) भी लगाई जाती है। आईपीसी की धारा-147 के तहत दर्ज मामलों में पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार कर सकती है।
दंगों में लोगों की मौत होने या गंभीर रूप से जख्मी होने पर हत्या (धारा-302) और हत्या के प्रयास (धारा-307) की धाराएं जोड़ी जाती हैं। इसके साथ दोषी पाए जाने वाले आरोपी को आजीवन कारावास की भी सजा हो सकती है।
किसी अपराध में आरोपियों की संख्या एक से ज्यादा होने पर पुलिस आपराधिक साजिश की धारा-120ए और 120बी भी जोड़ती है। दंगों के ज्यादातर मामलों में अन्य धाराओं के साथ ही इन धाराओं को जोड़ा ही जाता है। यह जरूरी नहीं है कि आरोपी खुद अपराध को अंजाम दे। किसी साजिश में शामिल होना भी कानून की निगाह में गुनाह है। ऐसे में अगर किसी अपराध में शामिल आरोपी को उम्रकैद, दो वर्ष या उससे अधिक के कठिन कारावास की सजा होती है तो साजिश में शामिल आरोपी को भी धारा-120बी के तहत अपराध करने वाले के बराबर सजा मिलेगी।
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भड़काऊ भाषण और सांप्रदायिकता फैलाने का भी चल सकता है केस
आम लोगों को हिंसा के लिए उकसाने वाले भाषण (Hate Speech) देने वाले व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा-153ए, 505ए, 505(1), 505(2) के तहत मामला दर्ज किया जाता है। धारा-153 के अनुसार, अगर कोई शख्स भाषण के दौरान समाज में घृणा फैलाने या लोगों को उकसाने वाले ऐसे बयान देता है, जिससे हिंसा भड़क जाती है तो दोषी को 1 साल तक कैद की सजा और जुर्माना का प्रावधान है। आपत्तिजनक भाषण या बयान से उपद्रव नहीं होता है तो भी दोषी को 6 माह तक कैद की सजा दी जा सकती है। हालांकि, यह जमानती और संज्ञेय अपराध है।
आईपीसी की धारा-505 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी समुदाय को किसी दूसरे संप्रदाय के खिलाफ अपराध के लिए उकसाए या ऐसे बयानों को प्रकाशित कराए तो दोषी पाए जाने पर उस शख्स को 3 साल तक की कैद हो सकती है। विभिन्न वर्गों में दुश्मनी या नफरत पैदा करना, वैमनस्य पैदा करना, आपत्तिजनक भाषण या बयान देना, जिससे विभिन्न धार्मिक, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा हों तो आरोपी के खिलाफ धारा 505 की उपधारा 1 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इसमें भी दोषी को 3 साल तक की कैद हो सकती है।
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सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर 10 साल की सजा
हिंसक प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान को लेकर अलग कानून है। इसके लिए 1984 में लोक संपत्ति नुकसान निवारक अधिनियम बनाया गया। जिसके तहत 7 धाराएं हैं। कानून के तहत सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के दोषी व्यक्ति पर 5 साल तक का कारावास तथा जुर्माना दोनों लगाए जा सकते हैं। इसके अलावा आगजनी कर या विस्फोटक का इस्तेमाल कर अगर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है तो दोषी को 10 वर्ष तक के कठोर कारावास की सजा हो सकती है।
इसमें अदालत जुर्माना भी लगा सकती है। कानून के मुताबिक सार्वजनिक और सरकारी संपत्ति का नुकसान पहुंचाने के दोषी को तब तक जमानत नहीं मिल सकती, जब तक कि वह नुकसान की 100 फीसदी भरपाई नहीं कर देता है।