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महिला समानता दिवस आजः 26 अगस्त को ही क्यों मनाते हैं, क्या है खास
आज महिलाओं को हर मोर्चे पर पुरुषों को बराबरी का टक्कर देते हुए आसानी से देखा जा सकता है। अगर हम राजनैतिक धरातल पर देखते हैं तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल, स्व. शीला दीक्षित, स्व. सुषमा स्वराज, स्व. जयललिता और मायावती एक सशक्त उदाहरण के तौर पर नजर आती हैं।
रौशन मिश्रा
आज 26 अगस्त को महिलाओं के लिए एक सशक्त दृष्टिकोण और अधिकार के फैसले वाला दिन समझा जा सकता है। 26 अगस्त,1971, को ही संयुक्त राज्य अमेरिका में 19वें संविधान संशोधन के द्वारा महिलाओं को पुरुषों के भांति मत देने का अधिकार मिला। अमेरिका के इस ऐतिहासिक फैसले ने समस्त महिला समाज को समानता का एहसास कराया।
भारतीय परिस्थितियों में महिला समाज की स्थिति
आज महिलाओं को हर मोर्चे पर पुरुषों को बराबरी का टक्कर देते हुए आसानी से देखा जा सकता है। अगर हम राजनैतिक धरातल पर देखते हैं तो पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल, स्व. शीला दीक्षित, स्व. सुषमा स्वराज, स्व. जयललिता और मायावती एक सशक्त उदाहरण के तौर पर नजर आती हैं।
तो खेल, कॉर्पोरेट, फिल्म, नौकरशाही से लेकर मीडिया, टेक्नालाजी या वैज्ञानिक बन कर महिलाओं ने पुरुषों को न सिर्फ टक्कर दी है बल्कि अपनी सफलता और काबिलियत के बल पर रूढ़ीवादी विचारधारा को अंगूठा भी दिखाया है।
हम कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, सायना नेहवाल, पीवी सिंधु, फोगाट बहनों, इंदिरा नूई, चंदा कोचर, स्व. नीलम शर्मा इत्यादि सैकड़ों नामों को गिना सकता हैं. जिन्होंने न सिर्फ स्वयं को प्रस्तुत किया अपितु समाज में देखने के दृष्टिकोण में भी बदलाव किया।
ये तो वर्तमान की तस्वीर है लेकिन हम बीते दिनों में भी गौर करें तो मौका मिलने पर महान विदुषी गार्गी, मैत्रेयी, तो दूसरी ओर संघमित्रा, रानी लक्ष्मी बाई, मैडम कामा, सरोजनी नायडू इत्यादि नामचीन हस्तियां हैं।
महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को समानतावादी रखना पड़ेगा
अभी जहाँ केरल में महिलाओं की साक्षरता दर उच्च है तो वहीं कुछ राज्यों में सोचनीय। हमें अपने दृष्टिकोण में एक सम्यक बदलाव लाना होगा तथा महिलाओं को पुरुषों के समतुल्य स्थान देना होगा।
" यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरितकी "
अर्थात, हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है ।
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने से समानता को बल प्राप्त होगा
महिला सशक्तिकरण का स्पष्ट अर्थ है कि उनके आर्थिक स्थिति की सुदृढ़ीकरण करना ।
देश की आर्थिक स्थिति को ताकत प्रदान करने में महिलाओं के योगदान को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
अगर महिलाओं को श्रम में भरपूर मौका मिले तो देश की आर्थिक ढ़ांचें में एक नयी संजीवनी मिल जाएगा।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् । न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।
अर्थात जिस कुल में स्त्रियां अपने – अपने पुरूषों के वेश्यागमन, अत्याचार वा व्यभिचार आदि दोषों से शोकातुर रहती हैं वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल में स्त्रीजन पुरूषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है ।
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‘‘जिस घर वा कुल में स्त्री लोग शोकातुर होकर दुःख पाती हैं, वह कुल शीघ्र नष्ट – भ्रष्ट हो जाता है और जिस घर वा कुल में स्त्री लोग आनन्द से उत्साह और प्रसन्नता में भरी हुई रहती हैं, वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है ।’’
महिला समानता को बढ़ावा देने वाले दृष्टिकोण
वैश्विक स्तर पर देखते हैं तो नारीवादी विचारधारा एवं यूएनडीपी आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थान ने महिलाओं के सामाजिक सुरक्षा, उत्थान, स्वतंत्रता और न्याय संबंधित आवाज को ताकत दी है।
समाज को महिला समानता के हित में सहूलियत देते हुए याद रखना पड़ेगा कि एक पुरूष को मातृत्व अवकाश की आवश्यकता नहीं होता है क्योंकि इस अनुभव को एक महिला ही अकेले सहन करती है।
कॉर्पोरेट संस्थानों में समान वेतन अधिकार के तहत महिलाओं को बिना किसी लैंगिक भेदभाव के बढ़ावा देना होगा। किसी कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न के खिलाफ एकजुटता को बल देना।
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आज हम महसूस कर सकते हैं कि महिलाओं एवं पुरुषों के मध्य लैंगिक भेदभाव को खत्म करने की दिशा में महिला समानता दिवस एक महत्वपूर्ण भूमिका में रहा है।
ध्यान रखना होगा कि समाज की प्रगति महिलाओं की प्रगति के बिना अधूरी ही रहेगी। यदि हम वास्तव में एक मजबूत, समृद्ध, खुशहाल एवं संगठित समाज की चाहत रखते हैं तो हमें हर सूरत में महिला समानता को शिखर पर पहुंचाना ही होगा।