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विश्व सहनशीलता दिवसः क्या ये खतरा हमें खत्म कर देगा, बचने के लिए क्या करें

असहनशीलता सभी लोगों, परिवारों, समाज व देशों को पीड़ा दे रही है। केवल अंतरराष्ट्रीय सहनशीलता दिवस मनाने के लिए ही न रखें, बल्कि भविष्य में अपने प्रतिदिन के जीवन में भी अपनाएं।

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Published on: 16 Nov 2020 11:01 AM IST
विश्व सहनशीलता दिवसः क्या ये खतरा हमें खत्म कर देगा, बचने के लिए क्या करें
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विश्व सहनशीलता दिवसः क्या ये खतरा हमें खत्म कर देगा, बचने के लिए क्या करें

रामकृष्ण वाजपेयी

विश्व सहनशीलता दिवस पर मनोचिकित्सकों का यह मानना है कि अपने देश में सहनशीलता लगातार कम होती जा रही है। उनका आशय शायद बर्दाश्त करने की क्षमता से है। व्यापक अर्थों में देखें तो जीवन के हर स्तर पर सहनशीलता का ह्रास हुआ है। आज बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक कोई भी छोटी छोटी बातों की अनदेखी करने को तैयार नहीं है। यहां तक कि पति पत्नी भी एक दूसरे को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। मां बाप बच्चों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे और बच्चे मां बाप को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। जब घरों की यह स्थिति हो रही हो तो बाहर तो और बदतर स्थिति होगी सहज समझा जा सकता है। बाहर हलकी सी टक्कर लग जाने पर लोग एकदूसरे से मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं। छोटी बातों की अनदेखी नहीं कर पाते।

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टालरेंस घटने से एग्रेशन और इरिटेशन बढ़ गया

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. अजय तिवारी कहते हैं सहनशीलता यानी टालरेंस घटने से एग्रेशन और इरिटेशन बढ़ गया है। माल एडजेस्टमेन बढ़ गया है। नतीजतन कई बार ये आपराधिक कृत्य में तब्दील हो जाता है। उनका कहना है मानसिक स्वास्थ्य अत्यंत खराब होने के ये बुनियादी लक्षण हैं जिन पर फिलहाल कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसी का नतीजा है कि तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। बच्चों में विसंगतियां बढ़ रही हैं। अगर व्यक्ति की घर में सहनशीलता घट रही है तो बाहर उसका एग्रेशन और इरिटेशन चरम पर पहुंच जाना लाजिमी हो जाता है।

भारत दुनिया में चौथा सबसे सहिष्णु देश

लेकिन हालात बहुत अधिक बदतर नहीं हुए हैं कम से कम आंकड़े तो यही कहते हैं 2018 में हुए एक सर्वे के अनुसार भारत दुनिया में चौथा सबसे सहिष्णु देश है। नए सर्वेक्षण के अनुसार, भारत सबसे अधिक सहिष्णु देशों की सूची में चीन, मलेशिया के बाद है। इप्सोस मोरी द्वारा किए गए सर्वेक्षण को बीबीसी के लिए 2018 की शुरुआत में किया गया था। कुल मिलाकर, लगभग 20,000 लोगों का इसमें अध्ययन किया गया जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि नागरिक अपने समाज को किस हद तक विभाजित करते हैं।

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संतोषजनक बात यह है कि सर्वेक्षण के अनुसार, 63 प्रतिशत भारतीय सोचते हैं कि उनके देश में लोग एक-दूसरे के प्रति सहिष्णु हैं, जब यह अलग-अलग पृष्ठभूमि, संस्कृतियों या दृष्टिकोण वाले लोगों के संपर्क में आते हैं। दूसरी ओर, हंगेरियन ने अपने देश को दक्षिण कोरिया और ब्राजील के बाद सहिष्णु के रूप में दर्जा देते हैं जो कि अपने लोगों, अन्य संस्कृतियों, पृष्ठभूमि और दृष्टिकोण से कम सहिष्णु हैं।

क्या सोचते हैं भारतीय ??

सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में, 49 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि राजनीतिक विचारों में अंतर तनाव का कारण बनता है, इसके बाद विभिन्न धर्म (48 प्रतिशत) और सामाजिक-आर्थिक अंतर (37 प्रतिशत) सहनशीलता में कमी का बड़ा कारण होता है। यह भी कहा गया है कि 53 प्रतिशत भारतीय सोचते हैं कि अन्य पृष्ठभूमि, संस्कृतियों और दृष्टिकोणों के लोगों के साथ मिश्रण करने से आपसी समझ और सम्मान के साथ सहनशीलता बढ़ती है।

"76 प्रतिशत लोगों को लगता है कि दुनिया भर में लोगों के पास सामानों की तुलना में अधिक चीजें हैं जो उन्हें अलग बनाती हैं। समझौतावादी दृष्टिकोण रूस और सर्बिया (दोनों में 81 प्रतिशत) में सबसे अधिक है, लेकिन जापान में सबसे कम (35 प्रतिशत), हंगरी (48 प्रतिशत) प्रतिशत) और दक्षिण कोरिया (49 प्रतिशत), " पाया गया है।

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जबकि दुनिया में वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने वाला भारत आज ‘सहनशीलता है गुण महान क्यों भूला इन्सान’; ‘सबसे मिल कर रहना है, एक दूजे को सहना है’ जैसे गीत गाकर लोगों में सहनशीलता जगा रहा है।

संयुक्तराष्ट्र ने 16 नवंबर अंतरराष्ट्रीय सहनशीलता दिवस संसार का ध्यान मानव की सहनशीलता के गुण की ओर दिलाने के लिए घोषित किया है। जैसा कि सब जानते हैं आज मानव एक दूसरे को सहन करने को तैयार नहीं है। संसार में धर्म, जाति व अन्य नकारात्मक भावनाओं के आधार पर झगड़े हैं। असहनशीलता सभी लोगों, परिवारों, समाज व देशों को पीड़ा दे रही है। केवल अंतरराष्ट्रीय सहनशीलता दिवस मनाने के लिए ही न रखें, बल्कि भविष्य में अपने प्रतिदिन के जीवन में भी अपनाएं।

यूनेस्को ने सहिष्णुता और अहिंसा के प्रचार के लिए बनाया पुरस्कार

1995 में, यूनेस्को ने सहिष्णुता और अहिंसा के प्रचार के लिए एक पुरस्कार बनाया। यह सहिष्णुता के लिए संयुक्त राष्ट्र वर्ष और महात्मा गांधी के जन्म की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर बनाया गया। सहिष्णुता और अहिंसा के प्रचार के लिए यूनेस्को-मदनजीत सिंह पुरस्कार से पुरस्कृत करता है। जिसका उद्देश्य सहिष्णुता और अहिंसा की भावना को बढ़ावा देना है।

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यह पुरस्कार 16 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर सहिष्णुता के लिए हर दो साल में प्रदान किया जाता है। पुरस्कार संस्थानों, संगठनों या व्यक्तियों को दिया जा सकता है। जिन्होंने सहिष्णुता और अहिंसा के लिए विशेष रूप से सराहनीय और प्रभावी तरीके से योगदान दिया है।

अच्छे व्यक्तित्व के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता होती है, उनमें सहनशीलता भी एक है। सहनशीलता एक महान गुण है, जो हमें देवत्व की ओर ले जाता है।

बड़े-बुजुर्गों की वाणी, अबोध बालकों की बोली या मानसिक रूप से विकलांग लोगों के शब्द कर्णप्रिय न हों, तब भी सहने की प्रवृत्ति रखनी चाहिए। सहनशील रहकर हम शांत रहते हुए अपने को पहचान पाते है और सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते है। सहनशील व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण में शांति और सौहार्द्र कायम रखता है। यह हमारे जीवन के सकारात्मक पहलुओं को उजागर करता है। ऐसे लोग हर स्वभाव के लोगों के साथ तालमेल रखते हैं।

आधुनिक युग में रिश्तों में दरार उत्पन्न होने और हिंसा में वृद्धि होने के कारकों में सहनशीलता का अभाव ही है। आज की शिक्षा व्यावसायिक होने के साथ केवल किताबी अध्ययन बनकर रह गई है।

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