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डे-नाइट टेस्ट: सफेद बॉल दिखती है बेहतर, फिर पिंक बॉल से क्यों खेला जाता है मैच
क्रिकेट खेलने में एक बात का विशेष ख्याल किया जाता है कि गेंद का रंग ऐसा होना चाहिए जो खिलाड़ियों को अच्छी तरह दिख सके। क्रिकेट में जब से फर्स्ट क्लास मैचों की शुरुआत हुई तब से मैच रेड बॉल से ही खेले जा रहा हैं।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली: टीम इंडिया और इंग्लैंड के बीच बुधवार से अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में खेला जाने वाला टेस्ट मैच डे-नाइट होगा। डे-नाइट टेस्ट मैच की शुरुआत नवंबर 2015 में हुई थी और यह 16वां डे-नाइट टेस्ट होगा। भारत में खेला जाने वाला है यह दूसरा डे-नाइट टेस्ट मैच होगा। डे-नाइट टेस्ट मैच में एक बड़ी खासियत गेंद की होती है क्योंकि डे-नाइट टेस्ट मैच हमेशा पिंक बॉल से ही खेला जाता है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि डे-नाइट टेस्ट मैच में पिंक बॉल का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है।
पहले हमेशा रेड बॉल का इस्तेमाल
क्रिकेट खेलने में एक बात का विशेष ख्याल किया जाता है कि गेंद का रंग ऐसा होना चाहिए जो खिलाड़ियों को अच्छी तरह दिख सके। क्रिकेट में जब से फर्स्ट क्लास मैचों की शुरुआत हुई तब से मैच रेड बॉल से ही खेले जा रहा हैं। क्रिकेट में विश्व कप की शुरुआत 1975 में हुई थी और उसके बाद चार विश्वकप रेड बॉल से ही खेले गए। डे-नाइट क्रिकेट शुरू होने के बाद सफेद बॉल का इस्तेमाल शुरू हुआ। 2015 में डे-नाइट क्रिकेट टेस्ट मैच की शुरुआत होने के बाद पिंक बॉल से ही ये मुकाबले खेले जा रहे हैं।
सफेद बॉल की विजिबिलिटी अच्छी
जानकारों का कहना है कि क्रिकेट खेलने के दौरान दिन के समय लाल और रात के समय सफेद बॉल खिलाड़ियों को अच्छी तरह से दिखाई देती है। यही कारण है कि दिन में खेले जाने वाले क्रिकेट के लिए रेड बॉल और डे-नाइट क्रिकेट के लिए सफेद बॉल को अच्छा माना जाता है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि डे नाइट टेस्ट मैच सफेद गेंद से क्यों नहीं होते।
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जल्द उतरने लगता है सफेद रंग
यह सच्चाई है कि फ्लड लाइट की रोशनी में खिलाड़ियों को सफेद गेंद ज्यादा बेहतर तरीके से दिखती है मगर इस गेंद की सफेदी बहुत जल्दी उतरने लगती है और इस कारण सफेद गेंद का इस्तेमाल टेस्ट मैच में नहीं किया जाता। सफेद बॉल पर सफेद रंग कोटिंग के जरिए चढ़ाया जाता है और करीब 30 ओवर के खेल के बाद यह कोटिंग उतरने लगती है। 30 ओवर के खेल के बाद गेंद की विजिबिलिटी काफी कम हो जाती है। टी 20 मुकाबला 20 ओवरों का ही होता है। इस कारण उस मुकाबले में सफेद गेंद से कोई दिक्कत नहीं आती मगर टेस्ट मैच में सफेद गेंद समस्या का कारण बन जाती है।
इस कारण मिली पिंक बॉल को तरजीह
टेस्ट मैच के दौरान 80 ओवर का खेल होने के बाद ही गेंद को बदला जा सकता है। इसलिए सफेद गेंद से टेस्ट मैच खेलना संभव नहीं होता। यही कारण है कि सफेद गेंद की विजिबिलिटी पिंक बॉल से ज्यादा अच्छी होने के बावजूद टेस्ट मैचों में सफेद बॉल की जगह पिंक बॉल का इस्तेमाल किया जाता है।
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पिंक बॉल चुनने का यह भी बड़ा कारण
यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि डे-नाइट मुकाबलों के दौरान फ्लड लाइट की रोशनी में ऑरेंज बॉल पिंक बॉल की अपेक्षा ज्यादा अच्छे तरीके से दिखती है मगर ऑरेंज बॉल को न चुनने का भी एक बहुत बड़ा कारण है। टीवी पर मैच के प्रसारण के लिहाज से ऑरेंज बॉल को अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि प्रसारण के दौरान यह टीवी दर्शकों को धुंधली नजर आती है। यही कारण है कि पिंक बॉल को ऑरेंज बॉल पर तरजीह देते हुए इसे ही डे-नाइट टेस्ट मैच के लिए चुना गया।
कोटिंग के जरिए चढ़ाया जाता है पिंक कलर
जानकारों का कहना है कि पिंक बॉल में भी कलर को लेदर पर डाई नहीं किया जा सकता है और इसे भी सफेद बाल की तरह कोटिंग के जरिए ही चढ़ाया जाता है। इस बॉल पर डबल कोटिंग की जाती है। जानकारों का यह भी कहना है कि पिंक बॉल से तेज गेंदबाजों को मदद मिलती है। डबल कोटिंग के कारण इसकी चमक ज्यादा देर तक बरकरार रहती है। इस कारण तेज गेंदबाजों को इस बॉल को स्विंग कराने में मदद मिलती है।
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शुरुआत में मिलेगी पेसरों को मदद
अहमदाबाद में खेले जाने वाले डे-नाइट मैच के शुरुआती तीन दिनों के दौरान तेज गेंदबाजों को ज्यादा मदद मिलने की संभावना है। इस दौरान पिच पर घास रहेगी और इससे तेज गेंदबाजों को सीम मूवमेंट में मदद मिलेगी। यही कारण है कि शुरुआती ओवर में तेज गेंदबाज विपक्षी बल्लेबाजों के लिए बड़ी मुसीबत साबित होंगे।
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