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बजरंग पूनिया को मिलेगा राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड, यहां जानें उनके बारें में सबकुछ
भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया को इस साल राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। यह अवॉर्ड खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च सम्मान है।
लखनऊ: भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया को इस साल राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। यह अवॉर्ड खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च सम्मान है।
25 साल के पूनिया को कुश्ती के क्षेत्र में लगातार अच्छे प्रदर्शन के लिए यह अवॉर्ड दिया जाएगा।
सूत्रों के माध्यम से ये जानकारी मिली है। बजरंग पुनिया के लिए यहां तक सफर आसान नहीं रहा है।
उन्हें सफलता के इस शिखर तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है। तो आइये जानते हैं उनके शून्य से शिखर तक पहुंचने की पूरी कहानी के बारें में:-
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कौन है बजरंग पुनिया
बजरंग का जन्म 26 फरवरी 1994 को झज्जर, हरियाणा में हुआ था। गरीबी में पले बढ़े बजरंग ने कई चुनौतियों को पार कर एशियन गेम्स में अपना पहला गोल्ड मेडल जीता।
पूनिया ने सबसे पहले साल 2006 में महाराष्ट्र के लातूर में हुई स्कूल नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था।
इसके बाद इस पहलवान ने लगातार 7 साल तक गोल्ड मेडल जीता।
बजरंग यही नहीं रूके और इसके बाद उन्होंने साल 2009 में दिल्ली में बाल केसरी खिताब अपने नाम किया।
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2010 से बदली किस्मत
साल 2010 में कुश्ती फेडरेशन ने उनकी काबिलियत को भांपते हुए उनका चयन जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप के लिए किया।
पहली बार विदेश में खेल रहे बजरंग का जादू यहां भी चला और उन्होंने गोल्ड मेडल पर कब्जा किया।
इसके बाद अगले साल यानी 2011 में भी बजरंग ने विश्व जूनियर में स्वर्ण जीता।
उसके बाद बजरंग चोट के कारण थोड़ा संघर्ष करते नजर आए।
2014 में उन्होंने शानदार वापसी करते हुए विश्व कप मुकाबलों में कांस्य पदक जीता।
भारत को दिलाया स्वर्ण पदक
फिर क्या था, एक बार सफलता के ट्रैक पर चलने के बाद बजरंग ने ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में बजरंग ने रजत पदक जीता।
इस पहलवान ने पिछले साल ही सीनियर एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में भारत को पहला स्वर्ण दिला दिया।
दो वक्त की डाइट के लिए करनी पड़ी थीं जद्दोजहद
बजरंग पूनिया को कुश्ती विरासत में मिली है।
दरअसल, उनके पिता बलवान पूनिया भी अपने समय के नामी पहलवान रहे हैं, लेकिन गरीबी के कारण उनका ख्वाब अधूरा रह गया।
हालात कुछ ऐसे थे कि जरूरी डाइट तक के लाले पड़ जाते थे।
यकीनन पिता का अधूरा ख्वाब बेटे बजरंग की जिद बन गया और उन्होंने अपना एकमात्र लक्ष्य देश के लिए मेडल जीतना बना लिया।
गरीबी अभी भी अड़चन पैदा कर रही थी और पिता के पास अपने पहलवान बेटे को घी पिलाने के लिए पैसे नहीं होते थे।
बेटे की रूचि देखकर बलवान ने बस के बजाए साइकिल से चलने का फैसला किया, ताकि बेटे की डाइट को बेहतर किया जा सके।
इस बदहाली के दौर से गुजरने के बावजूद बजरंग ने अपने हौसले को पस्त नहीं होने दिया और अब हर तरफ उनकी चर्चा हो रही है।
योगेश्वर ने दी है ट्रेनिंग
पहलवानी के शुरुआती दौर में बजरंग ने अपनी मेहनत में कोई कसर नहीं रखी तो भगवान ने उनकी मदद के लिए चार बार ओलंपिक के मैदान में उतरने वाले पहलवान योगेश्वर दत्त को दूत के रूप में भेज दिया।
यह युवा पहलवान पिछले काफी समय से योगेश्वर के अखाड़े में उन्हीं की देखरेख में ट्रेनिंग करता है।
जबकि योगेश्वर के बीच गुरु और चेले का नहीं बल्कि पिता और बेटे जैसा रिश्ता है।
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कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में दिलाया था गोल्ड
इस खिलाड़ी ने वर्ल्ड चैंपियनशिप 2013 में ब्रॉन्ज मेडल जीता था।
इसके अलावा 2014 में एशियन और कॉमनवेल्थ गेम्स 3 में सिल्वर मेडल अपने नाम किया।
जबकि 2016 और 2017 में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर देश का नाम रोशन किया।
24 साल के इस भारतीय पहलवान ने एशियाई खेलों से पहले लगातार तीन स्वर्ण पदक अपने नाम किये थे।
उन्होंने गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में, जार्जिया में तबलिसी ग्रां प्री और इस्तांबुल में यासर दोगु अंतरर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में खिताब जीता था।
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