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Mathura Janmashtami History: कृष्ण की नगरी मथुरा में होता है जन्माष्टमी का अलग ही रंग, जानें उसका इतिहास
Mathura Krishna Janmashtami History: मथुरा कृष्ण की जन्मभूमि है। इसीलिए जन्माष्टमी का त्यौहार मथुरा और उसके पड़ोसी शहर वृन्दावन, जहाँ भगवान कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था, में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
Mathura Janmashtami History: जन्माष्टमी करीब आ रही है। इस वर्ष 7 सितम्बर को जन्माष्टमी मनाया जायेगा। कृष्ण की नगरी में तो ना सिर्फ जन्माष्टमी के दिन बल्कि एक हफ्ते पहले से छटा देखने लायक होती है। पूरा गोकुल ही आनंदमय हो जाता है। मथुरा में जन्माष्टमी एक ऐसी खुशी का अवसर है, जो पूरे भारत और दुनिया भर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करती है। भगवान कृष्ण के दिव्य जन्म के दिन यह शहर आध्यात्मिक ऊर्जा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और उत्सवों से जीवंत हो उठता है।
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मथुरा में जन्माष्टमी उत्सव का इतिहास
मथुरा कृष्ण की जन्मभूमि है। इसीलिए जन्माष्टमी का त्यौहार मथुरा और उसके पड़ोसी शहर वृन्दावन, जहाँ भगवान कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था, में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन उत्सव के अवसर को चिह्नित करने के लिए मथुरा के मंदिरों और सड़कों को रंग-बिरंगे फूलों, रोशनी से सजाया जाता है।
ऐसे मनाया जाता है मथुरा में जन्माष्टमी
रास लीला: रास लीला, भगवान कृष्ण और गोपियों (चरवाहे लड़कियों) के बीच चंचल और रोमांटिक बातचीत को दर्शाने वाला एक पारंपरिक नृत्य है, जो स्थानीय कलाकारों और नृत्य मंडलियों द्वारा किया जाता है। ये प्रदर्शन जन्माष्टमी के दौरान आगंतुकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण हैं।
झाँकियाँ: भगवान कृष्ण के जीवन के दृश्यों को दर्शाने वाली विस्तृत झाँकियाँ मंदिरों और सड़कों पर प्रदर्शित की जाती हैं। भक्त इन प्रदर्शनियों पर प्रार्थना करने और आशीर्वाद मांगने आते हैं।
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भक्ति गायन और भजन: भक्त मंदिरों में भक्ति भजन गाने के लिए इकट्ठा होते हैं और भगवान कृष्ण की स्तुति में प्रार्थना करते हैं। माहौल आध्यात्मिक उत्साह और भक्ति से भरा हुआ है।
आधी रात का उत्सव: माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था। मुख्य उत्सव आधी रात के दौरान होता है, जिसमें प्रार्थनाएं की जाती हैं और देवता को औपचारिक स्नान कराया जाता है।
जन्माष्टमी जुलूस: मथुरा और वृन्दावन में रंग-बिरंगे और जीवंत जुलूस निकाले जाते हैं, जिन्हें "शोभा यात्रा" के नाम से जाना जाता है। भक्त भगवान कृष्ण और उनके साथियों की पोशाक पहनकर उनकी बचपन की कहानियों को दोहराते हैं।
दही हांडी: दही हांडी की परंपरा में दही और छाछ से भरे बर्तन तक पहुंचने और तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाना शामिल है, जो युवा कृष्ण की शरारती प्रकृति का प्रतीक है, जो मक्खन चुराने के लिए जाने जाते थे। यह आयोजन प्रतियोगिताओं और उत्सवों के साथ भी होता है।
मथुरा में जन्माष्टमी का इतिहास
मथुरा में जन्माष्टमी का इतिहास भगवान कृष्ण के जीवन और किंवदंतियों से निकटता से जुड़ा हुआ है, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका जन्म मथुरा में हुआ था। भगवान कृष्ण का जन्म हिंदू पौराणिक कथाओं में एक केंद्रीय घटना है, और जन्माष्टमी इस शुभ अवसर की याद दिलाती है। यहां मथुरा में जन्माष्टमी के इतिहास और महत्व का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
भगवान कृष्ण का जन्म: भगवद गीता और पुराणों जैसे हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने के अंधेरे पखवाड़े के आठवें दिन (अष्टमी) को मथुरा में हुआ था। उनके जन्मस्थान की पहचान मथुरा के कंस महल में जेल की कोठरी के रूप में की जाती है, जहां उनके माता-पिता, वासुदेव और देवकी को देवकी के भाई, राजा कंस ने कैद किया था।
कृष्ण के जन्म के बाद की घटनाएं: भगवान कृष्ण के माता-पिता, वासुदेव और देवकी को कंस ने इस भविष्यवाणी के कारण कैद कर लिया था कि देवकी की आठवीं संतान कंस के पतन का कारण होगी। जब कृष्ण का जन्म हुआ, तो कई चमत्कारी घटनाएँ घटीं, जिनमें जेल के दरवाज़ों का खुलना, यमुना नदी को पार करना और कृष्ण का एक बच्ची, योगमाया के साथ आदान-प्रदान शामिल था।
जन्माष्टमी का उत्सव: मथुरा में जन्माष्टमी के उत्सव की गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं, जो प्राचीन काल से चली आ रही हैं। इस त्यौहार को भगवान कृष्ण के दिव्य जन्म और पृथ्वी पर उनकी दिव्य उपस्थिति की स्थापना के उत्सव के रूप में प्रसिद्धि मिली।
वृन्दावन कनेक्शन: जहाँ मथुरा को भगवान कृष्ण की जन्मस्थली के रूप में जाना जाता है, वहीं पास का वृन्दावन भी उनके बचपन और प्रारंभिक वर्षों से निकटता से जुड़ा हुआ है। वृन्दावन वह स्थान था जहाँ भगवान कृष्ण ने अपने प्रारंभिक वर्ष बिताए, शरारतें कीं, दिव्य गतिविधियों में संलग्न रहे, और अपने भक्तों, विशेषकर गोपियों और ग्वालों के साथ गहरे संबंध बनाए।
सांस्कृतिक महत्व: मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी उत्सव में जुलूस, नृत्य प्रदर्शन, भक्ति गायन और पूजा अनुष्ठान सहित कई सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं। यह उत्सव भगवान कृष्ण के प्रति लोगों के गहरे प्रेम और श्रद्धा को दर्शाता है।