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Sone ki Ayodhya: राजस्थान में सोने की अयोध्या , बना आकर्षण का केन्द्र
Sone ki Ayodhya: भारत में ऐसे कई स्थान है जो धार्मिक के साथ पर्यटन के क्षेत्र में काफी महत्पूर्ण है। ऐसा ही एक स्थान है राजस्थान का स्वर्णिम अयोध्या, यह भारत के उत्कृष्ट निर्माण कला का जीवंत उदाहरण है।
Sone ki Ayodhya: भारत की भूमि पर हर धर्म को मन सम्मान के साथ एक विशेष दर्जा दिया जाता है। इसके अनुसार हर धर्म का अपना विशेष धार्मिक स्थान है। उत्तर प्रदेश के अयोध्या की पावन रामजन्मभूमि का विख्यात उदाहरण है। ऐसी ही एक धार्मिक क्षेत्र है राजस्थान का स्वर्ण मंदिर....
भारतवर्ष में स्थापित अयोध्यानगरी के अद्भुत व स्वर्णिम दृश्य देखने है, तो धार्मिक शहर अजमेर ही ऐसी जगह है, जहां हम उस काल के स्वर्णयुग की सैर कर सकते हैं।
जहां जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ यानि भगवान ऋषभदेव के युग के स्वर्णिम दृश्य देखने को मिलते है। अजमेर स्थित सोनी जी नसियां स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में देश की एकमात्र स्वर्णिम अयोध्या नगरी का निर्माण रखा हुआ है। जैन धर्म के किसी भी मंदिर में इस तरह की अद्भुत अयोध्यानगरी की रचना नहीं है। इसलिए देश-दुनिया के लाखों लोग हर वर्ष अजमेर के सोनीजी की नसियां के जैन मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं और यहां स्वर्णिम अयोध्या नगरी का दर्शन कर सैलानी गौरवांवित व अभिभूत महसूस करते हैं।
कहां है यह मंदिर, क्या है इसकी प्रसिद्धि का कारण
अजमेर में पृथ्वीराज मार्ग पर स्थित दिगंबर जैन समाज की श्रद्धा का प्रतीक सोनी जी की नसियां में प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर है। इस मंदिर का नाम श्री सिद्ध कूट चैत्यालय है। करौली के लाल पत्थर से निर्मित होने के कारण इसे लाल मंदिर भी कहा जाता है। इसे बनाने में संगमरमर का प्रयोग भी किया गया है। इसके अतिरिक्त छत और दीवारों पर बेल्जियम ग्लास, ठीकरी कांच का उपयोग किया गया है। हाल में चित्रकारी, बेलबूटे, और पंचकल्याणक, अयोध्या नगरी, हस्तिनापुर समेत सभी कलाकृतियों में सोने का इस्तेमाल किया गया है।
निर्माण कब और कैसे हुई?
मंदिर के मुख्य ट्रस्टी प्रमोद सोनी ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण कार्य 10 अक्टूबर 1864 में शुरू हुआ था और 26 मई 1865 में भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा मंदिर के मध्य अवधि में स्थापित की। राय बहादुर सेठ मूलचंद सोनी के वंशज आज भी सोनी जी की नसियां मंदिर की देखरेख करते हैं। सोनी जी की नसियां के मुख्य ट्रस्टी प्रमोद सोनी बताया कि उनके पूर्वज राय बहादुर सेठ मूलचंद सोनी ने पंचकल्याणक की रचना करवाई। इनको मंदिर के पीछे बने दो मंजिला विशाल हॉल है। इनमें ऊपर के हॉल में तीन पंच कल्याणक के रूप में अद्भुत इन कलाकृतियों को स्थापित किया। उन्होंने बताया कि ही सोनी जी की नसियां की खासियत यह है कि यह अकेला स्थान है जहां पर पंचकल्याणक की स्थापना है। सामने की ओर मंदिर है पीछे की ओर संग्रहालय है। उस वक्त दो पंचकल्याणक की स्थापना नहीं हो पाई थी। ऐसे में 27 मार्च 2023 को आचार्य वसुनंदी जी महाराज के सानिध्य में अभी स्थापित किए गए हैं। दोनों पंचकल्याणक वर्षों से बने हुए थे, लेकिन उन्हें प्रदर्शित नहीं किया गया था।
सोनी जी की नसियां के नाम से विख्यात मंदिर का पिछला भाग पर्यटन की दृष्ठि से अद्धभुत स्थल है। मंदिर के ठीक पीछे दो मंजिला विशाल हॉल है। इन हॉल की दीवारों और छतों पर अनुपम चित्रकारी और कांच की कला से सज्जित है। इन हॉल में रखी अद्भुत और अमूल्य कलाकृतियां पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र
स्वर्णिम अयोध्या नगरी की रचना इतनी सुन्दर व कलात्मक तरीके से की गई हैं कि घंटों तक इसको देखने की इच्छा रहती है। लकड़ी व कांच पर सोने की अनूठी कारीगिरी हर किसी को आकर्षित करती है। नसिया में एक बड़े हिस्से में बनी इस अयोध्यानगरी को संत-महात्मा ही अंदर जाकर देख सकते हैं। शेष दर्शक व पर्यटक इस अयोध्या नगरी का दर्शन पारदर्शी कांच की दीवारों व खिड़कियों से ही कर सकते हैं।
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क्या कहता है स्वर्णिम अयोध्या का इतिहास
सेठ मूलचंद नेमीचंद सोनी ने इसका निर्माण 1864 में शुरू कराया था। सेठ भागचंद सोनी ने इसका निर्माण पूर्ण किया था। नसियां में स्वर्णिम अयोध्या नगरी सर्वाधिक दर्शनीय है। भगवान ऋषभदेव के पंच कल्याणक का दृश्यांकन किया गया है। अयोध्या नगरी में सुमेरू पर्वत का निर्माण जयपुर में कराया गया था। आचार्य जिनसेन द्वारा रचित आदिपुराण पर आधारित है। मूर्तियों में स्वर्ण की परत का प्रयोग किया गया है।
स्वर्णिम अयोध्या के पंच कल्याणक के बारे में कुछ जानकारियां -
गर्भ कल्याणक:
माता मरुदेवी ने रात्रि में 16 स्वप्न देखे थे तब तीर्थंकर की आत्मा अपने मां के गर्भ में प्रवेश की, जिसके फलानुसार भावी तीर्थंकर का अवतरण अयोध्या में हुआ। इसमें देवविमान और माता के स्वप्न दर्शाए गए हैं।
जन्म कल्याणक:
ऋषभदेव के जन्म पर इंद्र के आसन कंपायमान होने, ऐरावत हाथी पर बालक ऋषभवदेव को सुमेरू पर्वत ले जाने, पांडुकशिला पर अभिषेक और देवों की शोभायात्रा को सुंदरता के साथ दिखाया गया है।
तप कल्याणक:
महाराज ऋषभदेव के दरबार में अप्सरा नीलांजना का नृत्य, ऋषभदेव के संसार त्याग कर दिगंबर मुनि बनने सब कुछ त्याग देने का चित्र दर्शाया गया है।
केवलज्ञान कल्याणक:
हजार वर्ष की तपस्या में लीन ऋषभदेव, कैलाश पर्वत पर केवल ज्ञान प्राप्ति, राजा श्रेयांस द्वारा मुनि ऋषभवदेव को प्रथम आहार को दर्शाया गया है।
मोक्ष कल्याणक :
भगवान ऋषभदेव का कैलाश पर्वत से निर्वाण का स्वर्ण कमल दृश्य, पुत्र भरत द्वारा 72 स्वर्णिम मंदिर को दर्शाया गया है।
स्वर्णिम अयोध्या का कई वर्षों में किया गया है भव्य निर्माण-1864 में 10 अक्टूबर को शुरू हुआ था नसियां का निर्माण
-1865 में पूरा हुआ नसियां का निर्माण
-1895 में सोनीजी की नसियां में स्वर्णिम अयोध्या नगरी का निर्माण हुआ था
- 25 वर्ष का समय लगा स्वर्णिम अयोध्या नगरी के निर्माण मेें
-1953 में नसियां में 82 फीट ऊंचे मान स्तंभ का निर्माण किया गया।
संग्रहालय के दोनों हॉल सभी तरफ से कांच से बंद है। बाहर से पर्यटक इन खूबसूरत कलाकृतियों को निहारते है। अजमेर आने वाले पर्यटकों के लिए सोनी जी की नसियां विशेष आकर्षण रहता है। यहां हर जाति समाज के लोग इस अद्भुत स्वर्ण मय कलाकारी को देखने के लिए आते हैं। राय बहादुर सेठ मूलचंद सोनी के वंशज बताया कि पर्यटकों के लिए संग्रहालय 1895 से यह खुला है तब जयपुर में दस दिन तक विशाल मेला लगा। तत्कालीन जयपुर महाराजा माधोसिंह भी इसमें शामिल हुए। इसे कुछ दिन जयपुर के अलबर्ट हॉल में रखा गया। इसके बाद सोने की अयोध्या को अजमेर में बनी सोनी जी की नसियां में रखा गया।