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गणेश जन्मोत्सव आज सेः गणाधिपति गणेश हैं प्रथम पूज्य देव
गणाधिपति गणेश को गणों का ईश अर्थात गणों के भगवान के रूप में पूजा जाता है। वे प्रथम पूज्य देव हैं। हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य भगवान गणेश की पूजा से ही शुरू होता है।
गणाधिपति गणेश को गणों का ईश अर्थात गणों के भगवान के रूप में पूजा जाता है। वे प्रथम पूज्य देव हैं। हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य भगवान गणेश की पूजा से ही शुरू होता है। शिव पुराण और गणेश पुराण के अनुसार भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था। हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेश चतुर्थी महापर्व मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी 22 अगस्त को है और चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक भगवान गणेश की विशेष पूजा और आराधना की जायेगी।
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कब और क्यों
देश में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों में एकजुटता पैदा करने के उद्देश्य से लोकमान्य तिलक ने देश में गणेशोत्सव की शुरुआत की। इसके बाद से शुरु हुए इस पर्व पर घर-घर दस दिनों तक गणेशजी की स्थापना होने लगी। हिंदू धर्म के अनुसार भाद्रपद महीने की शुल्क चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। शिव पुराण के चतुर्थ खंड में बताया गया है कि माता पार्वती ने अपने अंग रक्षक के तौर पर भगवान गणेश को अपने शरीर पर लगे उबटन के लेप से तैयार किया और फिर उनमें प्राण फूंके। तभी से भाद्रपद माह की चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ इसीलिए इस दिन उनकी पूजा की जाती है। लेकिन गणेश जन्म उत्सव दस दिनों तक क्यों चलता है, इसका जवाब कई पौराणिक ग्रंथों में अलग-अलग देखने को मिलता है। इनमें सबसे प्रचलित और मान्य कथा का संबंध महाभारत से है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब वेदव्यास को महाभारत का ज्ञान हुआ तो उसे लिखित रूप देने के लिए उन्हें किसी महा विद्वान की जरूरत थी जो उनके शब्दों के उच्चारण को शब्दशः लिख सके। वे बोलते हुए विश्राम नहीं कर सकते थे, अन्यथा महाभारत का वह ज्ञान लुप्त हो जाता।
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इसके लिए तीनों लोक में सबसे उपयुक्त व्यक्ति थे भगवान गणेश। उन्होंने वेद व्यास का अनुरोध स्वीकारा और भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी से चतुर्दशी तक दस दिन लगातार महाभारत का लेखन किया। लेकिन निरंतर दस दिनों तक लेखन करने के कारण उनके शरीर का तापमान बेहद बढ़ गया, इसलिए वेद व्यास ने गणेश को पास ही में बने कुंड में स्नान करवाया। इससे उनका तापमान सामान्य हो गया। वेद व्यास और महाभारत से जुड़े इस वाकये के कारण गणेश उत्सव दस दिनों तक जारी रहता है और दस दिनों के बाद गणेश जी की मूर्ति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
महत्वपूर्ण तिथियाँ और समय
गणेश चतुर्थी : 22 अगस्त
मध्याह्न गणेश पूजा : 11.07 से 13.41 तक
चंद्र दर्शन से बचने का समय : 09.07 से 21.26 (22 अगस्त)
चतुर्थी तिथि आरंभ : 23.02 (21 अगस्त)
चतुर्थी तिथि समाप्त : 19.56 (22 अगस्त)
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मंत्रों का जाप
भगवान गणेश रिद्धि-सिद्धि दाता हैं इसलिए उनका स्मरण मात्र ही जीवन के सभी दुराग्रहों से मुक्ति देता है। गणेश चतुर्थी से अगले दस दिनों तक गणेश मंत्रों के जाप से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वहीं गणेशजी के 12 नामों के लगातार जाप करने और प्रत्येक नाम के साथ गणेशजी को दुर्वा अर्पण करने से सभी तरह के कार्यों के सिद्धि होती है।
1. ॐ सुमुखाय नम:,
2. ॐ एकदंताय नम:,
3. ॐ कपिलाय नम:,
4. ॐ गजकर्णाय नम:,
5. ॐ लंबोदराय नम:,
6. ॐ विकटाय नम:,
7. ॐ विघ्ननाशाय नम:,
8. ॐ विनायकाय नम:,
9. ॐ धूम्रकेतवे नम:,
10. ॐ गणाध्यक्षाय नम:,
11. ॐ भालचंद्राय नम:,
12. ॐ गजाननाय नम:।
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बप्पा का आशीर्वाद पाने के लिए आसान उपाय
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जानते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान गणेश संकट, कष्ट और दरिद्रता से मुक्ति दिलाते हैं।
- भगवान गणेश को सिंदूर प्रिय है। ऐसे में गणेश चतुर्थी के दिन उन्हें सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। बप्पा के माथे पर हर दिन लाल सिंदूर से तिलक लगाएं। ऐसा करने से बिगड़े काम बनते हैं और तरक्की प्राप्त होती है।
- भगवान गणेश को यूं तो हर दिन पूजा के दौरान दूर्वा अर्पित करना चाहिए। हालांकि गणेश चतुर्थी के दिन दूर्वा अर्पित करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से गणपति प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं।
- श्रीगणेश को लाल पुष्प अर्पित करना शुभ होता है। अगर लाल फूल संभव नहीं है तो कोई भी पुष्प अर्पित कर सकते हैं। हालांकि पूजन के दौरान ध्यान रखें कि भगवान गणेश को भूलकर भी तुलसी अर्पित न करें।
- भगवान गणेश को लड्डू और मोदक प्रिय है। ऐसे में गणेश चतुर्थी के दिन गणपति को मोदक और लड्डू का भोग लगाएं।
- भगवान गणेश की पूजा के बाद आरती जरूर करनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से पूजा का फल शीघ्र मिलता है।
कैसे करें गणेश प्रतिमा की स्थापना व पूजा
गणेश चतुर्थी के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। यह प्रतिमा सोने, तांबे, मिट्टी या गाय के गोबर से अपने सामर्थ्य के अनुसार बनाई जा सकती है। इसके पश्चात एक कोरा कलश लेकर उसमें जल भरकर उसे कोरे कपड़े से बांधा जाता है। इस पर गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार कर उसका पूजन किया जाता है। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। गणेश प्रतिमा के पास पांच लड्डू रखकर बाकि ब्राह्मणों में बांट दिये जाते हैं। गणेश जी की पूजा सांय के समय करनी चाहिये। पूजा के पश्चात दृष्टि नीची रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिये। इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें दक्षिणा भी दी जाती है।
भादप्रद शुक्ल चतुर्थी तिथि को चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। कहते हैं कि चांद के दर्शन करने से आप किसी प्रकार का कलंक लगता है। भगवान श्रीकृष्ण को भी इसका कलंक लग गया था। यदि भूलवश इस दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो प्रात:काल सफेद वस्तुओं का दान किसी ब्राह्मणी को करना चाहिए।
चतुर्थी तिथि 21 अगस्त को 11 बजे से 22 अगस्त को शाम 7:57 तक रहेगी।
22 अगस्त को सुबह 11:25 से 1:57 तक पूजा नहीं करनी चाहिए।
9:24 से 9:46 तक चंद्र दर्शन नहीं करने चाहिए।
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गणपति का हर अंग देता है बड़ी सीख
रिद्धि-सद्धि के दाता गणपति के शरीर का प्रत्येक अंग अपने आप में न सिर्फ विचित्र है बल्कि कई गुणों को समाहित किए हुए है। जीवन से जुड़े तमाम कष्टों और बाधाओं को दूर करने वाले श्री गणेश की सवारी चूहा भी हमें एक बड़ी सीख देता है। जानते हैं प्रथम पूजनीय और लोक कल्याण के देवता गणपति के शरीर के अंगों का महत्त्व।
मस्तक : गणपति का विशाल मस्तक हमें गंभीर रहते हुए नेतृत्व करने का ज्ञान देता है। बड़ा मस्तक हमें उदार रहते हुए धन, शक्ति आदि को अर्जित करने के लिए किसी को अनावश्यक कष्ट नहीं देने की सीख देता है।
नेत्र : गणपित की आंखें भले ही छोटी हों लेकिन वह दूरदृष्टि रखती हैं। चीजों को बड़ा देखती हैं। हम दूसरों को कभी छोटा न समझें। चीजों को विस्तार से देखें और समझें, तभी कोई निर्णय लें।
कान : श्री गणेश जी का एक नाम गजकर्ण भी है। अंग विज्ञान के अनुसार लंबे कान वाले व्यक्ति भाग्यशाली और दीर्घायु होते हैं। गणेश जी के कान सूप की तरह हैं और सूप का स्वभाव है क़ि वह सार-सार को ग्रहण कर लेता है और कूड़ा करकट को उड़ा देता है। गणेश जी के कानों से यह सन्देश मिलता है कि मनुष्य को सुननी सबकी चाहिए, लेकिन अपने बुद्धि विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करना चाहिए।
सूंड़ : समस्त देवी-देवताओं में गणेशजी को बहुत अधिक बुद्धिमान माना गया है। गजानन जी की लम्बी सूंड़ महाबुद्धित्व का प्रतीक है। लम्बी सूंड़ तीव्र घ्राण शक्ति की महत्वता को प्रतिपादित करती है जिसका अर्थ है कि जो समझदार व्यक्ति है वह अपने आस-पास के माहौल को पहले से ही सूंघ सकता है। गणेश जी की सूंड़ हमेशा हिलती -डुलती रहती है जिसका तात्पर्य है कि मनुष्य को हमेशा सचेत रहना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सुख ,समृद्धि व ऐश्वर्या की प्राप्ति के लिए उनकी बायीं ओर मुड़ी सूंड़ की पूजा करनी चाहिए और यदि किसी शत्रु पर विजय प्राप्त करनी हो तो दायीं ओर मुड़ी सूंड़ की पूजा करनी चाहिए।
दांत : गणेश जी का एक ही दांत है दूसरा दन्त खंडित है। बाल्यकाल में भगवान गणेश का परशुराम जी से युद्ध हुआ था। इस युद्ध में परशुराम ने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत काट दिया। तभी से ही गणेशजी एकदंत कहलाने लगे,एक दन्त होते हुए भी वे पूर्ण हैं। गणेश जी ने अपने टूटे हुए दांत को लेखनी बना लिया और इससे पूरा महाभारत ग्रंथ लिख डाला। गणेश जी अपने टूटे हुए दांत से यह सीख देते हैं कि हमारे पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं उसी में हमें दक्षता के साथ कार्य संपन्न करना चाहिए।
पेट : अंग विज्ञान के अनुसार बड़ा उदर खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक होता है। गणेश जी का बड़ा उदर सुखपूर्वक जिंदगी जीने के लिए अच्छी और बुरी सभी बातों को पचाने का संकेत देता है। इससे ये भी सन्देश मिलता है क़ि मनुष्य को हर बात अपने अंदर रखकर किसी भी बात का निर्णय बड़ी सूझ -बूझ के साथ लेना चाहिए व लम्बोदर स्वरूप से हमें ग्रहण करना चाहिए कि बुद्धि के द्वारा हम समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं और सबसे बड़ी समृद्धि प्रसन्नता है।
चूहा : गणपति द्वारा चूहे की सवारी हमें यह सीख देती है कि जीवन में कुतर्क रूपी इस छोटे से चूहे को जो हमारे जीवन में काफी नुकसान पहुंचाता है, उसे हमेशा दबाए रखें। उस पर हमेशा सवार रहें।
मोदक : गणेशजी को मोदक अतिप्रिय है उनके हाथ में मोदक होता है पर कहीं-कहीं उनकी सूंड के अग्र भाग पर लड्डू दिखाई देता है। मोदक को महाबुद्धि का प्रतीक बताया गया है। मोदक का निर्माण अमृत से हुआ है, यह ब्रह्मशक्ति का भी प्रतीक माना गया है। मोदक बन जाने के बाद वह अंदर से दिखाई नहीं देता है कि उसमें क्या-क्या समाहित है, इसी तरह पूर्ण ब्रह्म भी माया से आच्छादित होने के कारण वह हमें दिखाई नहीं देता।
गणेश जी के हाथ में पाश और अंकुश है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अंकुश और पाश की आवश्यकता पड़ती है। कार्य में सफलता और जीवन में उन्नति के लिए अपने चंचल मन पर अंकुश लगाने की अत्यंत आवश्यकता है। अपने भीतर की बुराईयों को पाश में फंसाकर आप उन पर अंकुश लगा सकते हैं।
वर मुद्रा : गणपति अक्सर वर मुद्रा में दिखाई देते हैं। वरमुद्रा सत्वगुण की प्रतीक है। इसी से वे भक्तोंकी मनोकामना पूरी कर अपने अभय हस्त से संपूर्ण भयों से भक्तों की रक्षा करते हैं। इस प्रकार गणेश जी का उपासक रजोगुण ,तमोगुण ,सत्वगुण इन तीनों गुणों से ऊपर उठकर एक विशेष आनंद का अनुभव करने लगता है।
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