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कौन है निरमा वाली बच्ची: जानें सफेद फ्राक वाली खूबसूरत गर्ल के बारे में
निरमा वॉशिंग पाउडर की शुरुआत 1969 में हुई थी। निरमा वॉशिंग पाउडर की शुरुआत 1969 में गुजरात के करसन भाई पटेल ने की थी। निरमा के पैकेट पर जो बच्ची नज़र आती वो करसन भाई की बेटी है।
नई दिल्ली: ''दूध सी सफेदी निरमा में आए, रंगीन कपड़ा भी खिल-खिल जाए सबकी पसंद निरमा, वाशिंग पाउडर निरमा'' निरमा का ये विज्ञापन याद तो आ ही गया होगा। तो ये भी याद आ गया होगा कि इस एड में एक लड़की की फोटो दिखती है। तो बहुत ही कम ऐसे लोग होंगे जो कि निरमा पाउडर के पैकेट पर छपी तस्वीर वाली बच्ची के बारे में जानते होंगे आज हम आपको उस लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं...
दरअसल, निरमा पाउडर के विज्ञापन पर छपी लड़की का नाम असल में निरूपमा नाम है। इनके नाम पर ही वॉशिंग पाउडर का नाम “निरमा” रखा गया।
निरमा वॉशिंग पाउडर का इतिहास
निरमा वॉशिंग पाउडर की शुरुआत 1969 में हुई थी। निरमा वॉशिंग पाउडर की शुरुआत 1969 में गुजरात के करसन भाई पटेल ने की थी। निरमा के पैकेट पर जो बच्ची नज़र आती वो करसन भाई की बेटी है। बता दें कि करसनभाई प्यार से अपनी बेटी को निरमा कहकर पुकारते थे। करसनभाई ने बेटी के नाम से ही निरमा कंपनी की शुरुआत की थी।
अब नहीं है “निरमा गर्ल” हमारे बीच।
बता दें कि निरमा जब स्कूल में पढ़ती थी तभी एक दिन कार हादसे में उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद करसनभाई और उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। करसनभाई अपनी बेटी से बेहद प्यार करते थे। वो चाहते थे कि उनकी बेटी दिन दुनिया में ख़ूब नाम कमाए, लेकिन छोटी सी उम्र में बेटी की मौत ने उनके अरमानों पर पानी फिर दिया। करसनभाई बेटी के जाने का ग़म भुला नहीं पा रहे थे।
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हालांकि “निरमा” के जाने के बाद करसनभाई ने तय किया कि वो अपनी बेटी का नाम हमेशा के लिए अमर कर देंगे। उन्होंने पहले बेटी के नाम पर “निरमा” कंपनी' की शुरुआत की। इसके बाद डिटर्जेंट के पैकेट पर बेटी की तस्वीर छाप कर उसे हमेशा के लिए अमर कर दिया।
करसनभाई रास्तें में साइकिल पर बेचते थे पाउडर
बेटी कि मौत के बाद तीन साल तक करसनभाई ने एक अनोखे वॉशिंग पाउडर का फॉर्मूला तैयार किया और धीरे धीरे पाउडर की बिक्री शुरू कर दी। लेकिन इस बीच करसनभाई ने अपनी सरकारी नौकरी नहीं छोड़ी।
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बता दें कि करसनभाई अपनी साइकिल से आफिस जाया करते थे और रास्ते में ही लोगों के घरों में निरमा वॉशिंग पाउडर बेचते थे। उस वक्त तक बाज़ार में सर्फ जैसे पाउडर आ चुके थे। इनकी कीमत 15 रुपये प्रति किलो थी जबकि निरमा को करसनभाई सिर्फ साढ़े तीन रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते थे। आसपास के कम आमदनी वाले लोगों को निरमा अच्छा विकल्प लग रहा था, ऐसे में निरमा की बिक्री शुरू हो गई।