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व्हाट इज Honeymoon! 100 में से 2 ही जानते होंगे ये बात
आज-कल चांद हर चीज में जरूरी है, तीज त्योहार से लेकर प्यार और प्यार से लेकर शादी तक। हर जगह इसकी मौजूदगी जरूरी है। अगर बात शादी की करें तो आज-कल शादी के बाद हनीमून पर जाना उतना ज़रूरी हो गया है जितना दुल्हन का पार्लर जाना।
लखनऊ: आज-कल चांद हर चीज में जरूरी है, तीज त्योहार से लेकर प्यार और प्यार से लेकर शादी तक। हर जगह इसकी मौजूदगी जरूरी है। अगर बात शादी की करें तो आज-कल शादी के बाद हनीमून पर जाना उतना ज़रूरी हो गया है जितना दुल्हन का पार्लर जाना।
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शादी किसी की भी हो, चाहे वो अमीर हो या मिडिल क्लास की, लेकिन हनीमून पर सबको जाना है। सबकी अपनी-अपनी पसंद है किसी को देश में घूमना पसंद है तो किसी को विदेश जाना पसंद हैं। शादी के बाद हनीमून जरूरी सा बन गया है। कभी शादी के बाद के मधुर लम्हो को सेलिब्रेट करने के लिए हनीमून की अवधारणा बनी थी, जो अब क्रेजीनेस में बदल गई है।
कौन गया था सबसे पहले हनीमून पर
लेकिन हनीमून पर सबसे पहले कौन गया। क्या वाकई उस कपल ने चांद की चांदनी में शहद चखा होगा, क्या वाकई ये परंपरा घरवाले तय करते थे। इन सवालों का जवाब इंटरनेट पर तरह-तरह के जवाबों से मिलता है।
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एक सोर्स बताता है कि हनीमून की शुरूआत ब्रिटेन में हुई। इसका मतलब था कि जो लोग शादी में नहीं आए, दूल्हा दुल्हन खुद उनके घर जाकर उनसे मिलकर आते है। इससे रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं औऱ दूल्हा दुल्हन का घूमना फिरना भी हो जाता है। मेजबान दूल्हा दुल्हन को शहद चटाकर उनके दांपत्य जीवन में मधुर मिठास की प्रार्थना करते थे। इसलिए इस परंपरा का नाम हनीमून पड़ा।
लेकिन एक सोर्स ये कहता है कि हनीमून में मून है ही नहीं, ये मोनस है। यानी HoneyMones, हनी का मतलब नवविवाहित जोड़े में प्यार ही प्यार रहता है और मोनस का वक्त के साथ धीरे-धीरे ये प्यार कम हो जाएगा और इन मधुर पलों का फायदा उठाने के लिए नवविवाहित जोड़ा कई दिन तक अकेले साथ रहता था।
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एक दूसरी कहानी से पता चलता है कि 5 वीं शताब्दी में दुल्हा दुल्हन को मधुर बंधन में बंधने यानी सुहागरात से पहले शहद से बनी mild alcholal मीड पिलाई जाती थी। इसके बाद दूल्हा दुल्हन चांद की चांदनी में डांस करते थे और विवाहित जोड़ें उन पर फूल बरसाते थे। इसका मतलब था कि चांद की उम्र जितनी उनकी मैरिड लाइफ हो और हमेशा फूलों सी महकती रहे।