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महामृत्‍युंजय मंत्र की रचना: मारकंडेय महादेव, जहां से उल्‍टे पांव भागे थे यमराज

कैथी का जीक्र करना इसलिए लाजीमी हो जाता है क्‍योंकि यही वह स्‍थान है जहां सदियों पूर्व देवों के देव महादेव भगवान शिव ने अपने भक्‍त मारकंडेय के प्राणों की रक्षा ठीक उसी प्रकार की थी, जिस प्रकार सर्प भूमि में गड़े हुए धन की रखवाली करता है।

SK Gautam
Published on: 8 Feb 2020 9:03 PM IST
महामृत्‍युंजय मंत्र की रचना: मारकंडेय महादेव, जहां से उल्‍टे पांव भागे थे यमराज
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दुर्गेश पार्थसारथी

लखनऊ: महामृत्‍युंजय मंत्र का नाम आते ही ऋषि मारकंडेय का नाम हिंदू धर्मावलंबियों के मानस पटल पर बरबस ही उभर आता है। क्‍योंकि इस मंत्र को मारकंडेय महापुराण से लिया गया है। और इस इस पुराण की रचना ऋषि मारकंडेय ने की थी। मृत्‍यु पर विजय पाने पाले इन्‍हीं मारकंडेय से जुड़ा है वाराणसी जिले के गांव कैथी का नाम। और इसी गांव में स्थित है मारकंडेय महादेव का युगों पुराना मंदिर। मान्‍यता है कि इस स्‍थान पर ऋषि मारकंडेय में भगवान शिव की तपस्‍या कर यमराज को उल्‍टे पांव भागने पर विवश कर दिया था।

वह स्‍थान है जहां मृत्‍यु पर विजय पाया था भक्‍त मारकंडेय

भगवान शिव की अतिप्रिय नगरी काशी से करीब २७ किमी दूर वाराणसी-गाजीपुर राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है कैथी। कैथी का जीक्र करना इसलिए लाजीमी हो जाता है क्‍योंकि यही वह स्‍थान है जहां सदियों पूर्व देवों के देव महादेव भगवान शिव ने अपने भक्‍त मारकंडेय के प्राणों की रक्षा ठीक उसी प्रकार की थी, जिस प्रकार सर्प भूमि में गड़े हुए धन की रखवाली करता है। यही वह स्‍थान है जहां मृत्‍यु पर विजय पाने के उपरांत मारकंडेय ने महामृत्‍युंजय मंत्र -

त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म।

उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात्॥

की रचना की थी। सभी संतापों को हने वाले इस पतितपावन स्‍थान की महिमा का गुणगान हरवंश पुराण, पद्यपुराण, मारकंडेय पुराण, रामचरीत मानस और महाभारत के वन पर्व में भी किया गया है। कहा तो यहां तक जाता है कि यहीं पर मारकंडेय ऋषि ने पद्यपुराण में लिखित १६ पदों के श्‍लोक - रत्‍नसान सरासनम् रचतादि सिंगनिकेतनम् ... और मारकंडेय पुराण की रचना की थी।

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गंगा-गोमती के संगम पर स्थित है मंदिर

गंगा और गोमती के संगम पर स्थित मारकंडेय महादेव का मंदिर करीब पांच एकड़ भूभाग में फैला हुआ है। इस मंदिर परिसर में करीब दो सौ साल पुराना श्री राम-जानकी का मंदिर है। निर्माण कला की दृष्टि से इस मंदिर को तीन भागों - गोपुरम, यज्ञ पंडम और गर्भगृह में बांटा गया है। श्रावणमास और महाशिवरात्रि के दिन गंगा स्‍नान के बाद हजारों लोग हाथों में गंगाजल और पूजा की थाली सजाए मन में आस्‍था का दीप जलाए लंबी-लंबी कतारों में खड़े शिवभक्‍त घंटों प्रतिक्षा के बाद जब एक-एक पग आगे बढ़ते हैं तो आस्‍था सजीव हो उठती है।

बिकता है रामनाम का पत्‍ता

अपने आराध्‍य भगवन मारकंडेय महादेव के दर्शनों को प्‍यासे भक्‍त जब मंदिर की दहलीज पर पहला कदम रखता है तो उसे जगह-जगह बैठे दिखाई देते हैं वेलपत्रों पर चंदन के अवलेह से श्री रामनाम लिख कर बेचने वाले लोग। पत्‍ते पर लिखा रामनाम जहां भक्‍त की भक्ति का माध्‍यम होता है तो वहीं बेचने वालों के जीविका का साधन भी। दूसरे शब्‍दों में कहें तो दाता एक राम... की कहावत भी साकार होती दिखती है। इसके बाद जब भक्‍त मंदिर प्रांगड़ में पहुंचते हैं तो उन्‍हें मुख्‍य मंदिर के चारों ओर विभिन्‍न देवी देवताओं के मंदिरों का समूह दिखा देता है। मुख्‍य मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने पर अंतर्ज्‍योति और ध्‍यान के प्रती मृत्‍यु, विध्‍वंस और विनाश के देवता कहे जाने वाले नीलकंठ भगवान शिव के दर्जन होते हैं।

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बड़ोदरा नरेश ने करवाया था जिर्णोद्धार

मारकंडेय महादेव मंदिर में प्रतिष्‍ठापित शिवलिंग कब प्रकाश में आया कुछ ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। लेकिन, इतना जरूर कहा जाता है कि इसकी स्‍थापना मारकंडेय ऋषि ने युगों पूर्व की थी। जो गंगा-आदि गंगा के संगम पर स्थित कभी कैंथ के जंगलों में था। कैथीवासियों की माने तो वर्षों पूर्व यह शिवलिंग इसी गांव के जमींदार के खेत में हल चलाते समय मिला था। स्‍वप्‍न में मिले आदेश पर इस शिवलिंग को उसी स्‍थान पर प्रतिष्ठित करवा दिया गया। शिवलिंग पर बने निशान को कुछ लोग हल का फाल लगा मानते हैं तो कुछ इसे यमराज द्वरा मारकंडेय के गले में फेंगे गए पाश की निशानी। कालांतर में होलकर वंश के महाराजा बड़ोदरा नरेश ने इस मंदिर का जिर्णोद्धार काशी नरेश के सहयोग से करवाया था। इस मंदिर का ट्रस्‍टी और मुख्‍य अध्‍यक्ष वाराणसी का जिलाधिकारी होता है। गंगा और गोमती के किनारे वाले इस मंदिर के शिखर पर फहरा रही धर्म ध्‍वजा सहसा यह अहसास कराती है कि देखो इस युग में भी हमारी मान्‍यता कम नहीं हुई है।

क्‍या है मारकंडेय की कथा

पद्यपुराण की कथा के अनुसार भृगुपुत्र मृकण्‍डु नैमिसारण में पत्‍नी अरुंधति के साथ तपस्‍या करते थे। उनके भाग्‍य में संतान सुख नहीं

था। भगवान शिव की कृपा से लंबे समय बाद उन्‍हें सर्वगुणसंपन्‍न एक पुत्र पैदा हुआ। धीरे-धीरे वह बालक पांच वर्ष का हो गया। मारकंडेय नाम का यह बालक ए‍क दिन कुटिया के बाहर खेल रहा था, उसी समय किसी महामुनि की दृष्टि उस बच्‍चे पर पड़ी। उन्‍होंने उस बच्‍चे के मुखमंडल से निकलती हुई आभा को काफी देर तक देखते रहे। सहसा मृकण्‍डु ने अपने बालक की आयु और गुण के बारे में ऋषि से पुछ लिया कि मेरे पुत्र की आयु कितनी है। उस ज्ञानी ने कहा मुनिवर, विधाता ने तुम्‍हारे पुत्र की जो आयु निश्चित की है उसमें अब महज छह माह शेष बचे हैं। ज्ञानी पुरुष की बात सुन कर उन्‍होंने अपने पुत्र का यज्ञोपवित संस्‍कार कर दिया और कहा- बेटा , तुम जिस किसी को भी देखो उसका सतवन प्रणाम करो। पिता की आज्ञा मान पुत्र मारकंडेय ने ऐसा ही करना शुरू कर दिया।

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जीवन के मात्र पांच दिन ही शेष बचे थे

धीरे-धीरे पांच माह २५ दिन बीत गए। इसी बीच एक दिन अचानक सप्‍तऋषि उसी रास्‍ते पधारे । स्‍वभाव के अनुसार बालक मारकंडेय ने उन्‍हें भी प्रणाम किया। सप्‍तऋषियों ने उस बालक को आयुष्‍मान भव पुत्र कह कर दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे दिया। जब उन ऋषियों ने उस बालक के आयु के बारे में विचार किया तो उसके जीवन के मात्र पांच दिन ही शेष बचे थे। तत्‍काल ही सप्‍तऋषियों ने उसे साथ ले परमपिता ब्रह्मा के पास गए। बच्‍चे ने उनका भी नमन किया। ब्रह्मा ने भी उसे चीरआयु होने का आशीर्वाद दे दिया। उनका यह आशीर्वाद सुनकर उन ऋषियों को बड़ी प्रसन्‍नता हुई।

जब ब्रह्मा ने उन ऋषियों के आने का कारण पूछा तो उन्‍होंने बताया कि यह बच्‍चा मृकण्‍डु का पुत्र मारकंडेय है, जिसके जीवन के कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। हमलोग तीर्थयात्रा के लिए उधर से निकल रहे थे कि सबको प्रणाम करने के स्‍वभाव के कारण उसने हम लोगों को भी प्रणाम किया। इसपर हम लोगों ने उसे लंबी आयु का आशीर्वाद दे दिया। अत: पितामह हमलोग आपके साथ वचन के झूठे क्‍यों बनें। इसपर ब्रह्मा ने कहा कि यह आयु में मेरे समान होगा। यह बालक क्‍लप के आदि और अंत में मुनियों से घिरा हुआ हमेशा जीवित रहेगा, लेकिन इसके लिए इसे जीवन के शेष बचे दिनों में महादेव की तपस्‍या गंगा और गोमती के तट पर कर करनी होगी।

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कैथी में मारकंडेय ने की थी तपस्‍या

स्‍वामी आत्‍म प्रकाश शास्‍त्री कहते हैं कि ऐसा उल्‍लेख मारकंडेय पुराण में मिलता है कि वे अपने पिता की आज्ञा ले काशी के निकट गंगा-आदिगंगा (गोमती) के संगम पर स्थित कैंथ के जंगलों में मिट्टी का पारद शिलिंग बनाकर तपस्‍या करने लगे। नियम समय पर यमदूत आए, लेकिन तपस्‍या में लीन उस बालक के तेज के आगे वे उसके पास न जा पाए। अत: उन्‍हें लौटना पड़ा। फिर यमराज स्‍वयं उसके प्राण लेने आए। इनसबसे बेखबर शिव आराधना में तंलीन बालक -'रत्‍नसान सरासन्, रचतादिसिंग निकेतनम् ...' १६ पदों का श्‍लोक पढ़ रहा था। आत्‍मविभोर हो यमराज उसबालक को अपलक देखते रहे। जैसे ही श्‍लोक समाप्‍त हुआ, उन्‍होंने बालक के प्राण लेने के लिए उसके गले में पाश फेंका और खिंचने लगे।

वेलपत्रों से पूजित शिवलिंग पकड़ कर बालक प्राण रक्षा हेतु देवाधिदेव महादेव को कातर स्‍वर में पुकारने लगा। बालक की करुण पुकार सुनकर भष्‍मभूत महादेव वैसे ही दौड़े आए जैसे बालक अपनी मां को न पाकर व्‍याकुल हो उसे पुकारता है। और उसकी व्‍याकुलता को देख पास आ जाती है और उसे गले लगा कर पुचकारती है। पीठ थपथपा कर सीने से लगा लेती है। नीलकंठ ठीक उसे तरह यमराज पर क्रोधित हो अस्‍त्र उठा लिए जिस तरह महाभारत युद्ध में अर्जुन की रक्षा के लिए श्रीकृष्‍ण ने सुदर्शनचक्र उठा कर अपनी प्रतिज्ञा भंग कर ली थी।

भगवान शिव के क्रोध से डरे यमराज ने कहा- हे महाकाल जो इस घरती पर जन्‍म लिया है उसकी मृत्‍यु निश्चित है। फिर यह बाल जिसकी आयु पुरी हो चुकी है भला वह जीवित कैसे रह सकता है। इसपर उन्‍होंने कहा कि इसका जन्‍म जब विधाता के विधान में है ही नहीं तो फिर मृत्‍यु कैसी। आगे चलकर मारकंडेय ने पुष्‍कर में आपना आश्रम बनाया। इसी पुष्‍कर में पिता के श्राद्ध के लिए त्रेतायुग में भगवान श्री राम भाई लक्ष्‍मण और पत्‍नी सीता सहित पधारे थे।

युगों बाद भी कायम रही आस्‍था

काल के अंतराल में सबकुछ बदल गया लेकिन नहीं बदली तो आस्‍था, मान्‍यता। जो इस मंदिर के प्रति लोगों में सदियों से चली आ रही है। इसी मान्‍यता के चलते आज भी लोग दूर-दूर से आकर मृत्‍यु पर विजय दिलाने वाले महामृत्‍युंजय भगवान मारकंडेय महादेव के आगे अपनी झोली फैलते हैं।

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