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एक भूल से करोड़ों की गई जान! इतिहास इस गलती को कभी भुला नहीं पाएगा

जब कभी भी मनुष्य प्राकृतिक संपदा के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसको उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। इसका नतीजा हमें 1958 में चीन में देखने को मिला था। "द ग्रेट स्पैरो कैंपेन" जिसे 4 किट अभियान के नाम से जाना जाता है। इस कैंपेन से करोड़ों लोगों की जान चली गई थी।

Shivakant Shukla
Published on: 15 Feb 2020 10:00 AM GMT
एक भूल से करोड़ों की गई जान! इतिहास इस गलती को कभी भुला नहीं पाएगा
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नई दिल्ली: इतिहास में कई ऐसी गलतियां हुई हैं जिसे आज चाहकर भी नहीं भुलाया जा सकता है। आज हम आपको एक ऐसी ही गलती के बारे में बताने जा रहे हैं जिस इंसानी गलती की जिसकी वजह से ढाई करोड़ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

जब कभी भी मनुष्य प्राकृतिक संपदा के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसको उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। इसका नतीजा हमें 1958 में चीन में देखने को मिला था। "द ग्रेट स्पैरो कैंपेन" जिसे 4 किट अभियान के नाम से जाना जाता है। इस कैंपेन से करोड़ों लोगों की जान चली गई थी।

कब हुई थी इस अभियान की शुरूआत

सन 1958 में इस अभियान की शुरुआत चाइना में हुई थी। चाइना के "पीपल्स रिपब्लिक आफ चाइना" के संस्थापक माओ जे़डोंग ने औद्योगिक और आधुनिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए ये फैसला किया कि "चार किट अभियान" की शुरूआत की। यह चार किट थे गौरैया, चूहे, मक्खी और मच्छर माओ ने कहा कि चूहे, मच्छर और मक्खियाँ सभी मानव के दुश्मन हैं और इन्हें मार देना चाहिए। उनका देश चिड़िया यानि गौरैया और ये बाकी के कीटों के बिना भी रह सकता है।

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क्यों हुई इस अभियान की शुरूआत

माओ का मानना था की गौरैया हर साल साढ़े चार किलोग्राम अनाज खा जाती है और फलों को भी नुकसान पहुंचाती है अगर गौरैया को मार दिया जाए तो जनता के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ जाएगी और बढे हुए उत्पादन को बेचा जा सकता है। माओ ने इसी समस्या का निराकरण करने के लिए ग्रेट स्पैरो अभियान शुरू किया। परंतु यह अभियान नहीं युद्ध था उन चार कीटों के खिलाफ चारों कीटों को खत्म करने के लिए आम लोगों से लेकर सेना तक का भी इस्तेमाल किया गया और सबसे ज्यादा फोकस किया गया बेचारी मासूम चिड़ियों पर।

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ऐसे दिया गया इस अभियान को अंजाम

इस अभियान का व्यापक प्रचार और प्रसार किया गया। चीनी नागरिकों को गौरैयाओं को मिटाने के लिए भारी तादाद में जुटाया गया गौरैया विरोधी सेना बनाई गई। विद्यालयों, कारखानों, बाजारों में गौरैया मारने की मुहिम चलाई गई। जनता में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए गए सिर्फ एक मासूम चिड़िया को मारने के लिए। "गौरैया को मिटाना है और चीन को चमकाना है" यह इस अभियान का नारा भी था।

मरी हुई गौरैयाओं का माला बनाते थे चीनी

चीनी लोग गौरैया को आतंकित करने के लिए उन्हें जमीन पर उतरने से रोकने के लिए ढोल पीटते हुए उनके पीछा करते थे। ढोल की आवाज से डरी हुई यह मासूम चिड़िया जमीन पर नहीं उतरती थी और लगातार उड़ती रहती थी चीनी लोग तब तक ढोलक बजाते रहते थे जब तक गौरैया उड़ते उड़ते थक कर गिर ना जाए और गिरते ही उसे मार दिया जाता था। चीनी लोगों ने गौरैयाओं के घोसले तोड़ दिए अंडे नष्ट कर दिए और यह अभियान इतने तेज युद्ध स्तर पर शुरू किया गया कि पहले ही दिन करीब दो लाख से ज्यादा गौरैयाओं को मार गिराया गया। चीनी लोग खुशी में मरी हुई गौरैयाओं का माला बनाते थे, परिणाम स्वरूप 2 साल के अंदर ही चीन में गौरैया की प्रजाति लगभग लुप्त हो गई।

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ऐसे आया भीषण काल का प्रभाव

इस ग्रेट स्पैरो अभियान की सफलता के बाद भयंकर पर्यावरण असंतुलन की महाकाल समस्या आ गई। गौरैया जैसी कोई भी चिड़िया केवल अनाज या बीज ही नहीं खाती गौरैया कीड़े मकोड़े भी खाती है जिससे कीड़े मकोड़ों की संख्या और नियंत्रण में रहती है और चुकी अब उन कीड़े मकोड़ों की आने वाले चिड़ियों को चीनी लोगों ने मार डाला था तो अब ऐसे में सभी कीड़े मकोड़ों और छोटे कीटों की आबादी में एक ऐसा उफान सा आया जो संभालने का नाम ही नहीं ले रहा था सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई टिड्डियों की संख्या में पूरे चीन में टिड्डी दल की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई। टिड्डी दल झुंड के झुंड में आते और चंद घंटों में हजारों हेक्टेयर में फैली फसलों को चट कर जाते टिड्डी दल का ऐसा भयंकर हमला चीन वासियों ने पहले कभी नहीं देखा था।

परिणामस्वरूप टिड्डी दलों के आक्रमण और फसलों को खाने वाले अन्य कीट पतंगों के हमले के कारण चीन में पैदावार बुरी तरह से प्रभावित हुई। देखते ही देखते चाइना में अकाल की स्थिति आ गई। जनता अन्न को तरसने लगी और पूरे चीन में भुखमरी के हालात हो गए। पर्यावरण असंतुलन अपना काम कर चुका था अकाल के कारण करोड़ों लोग खाने को तरस तरस कर मर गए। इसलिए कभी भी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चा​हिए।

Shivakant Shukla

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