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High Court: कार्य करने में सक्षम एचआईवी पीड़ित कर्मचारियों का नहीं रोक सकते प्रमोशन, इलाहाबद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
High Court: जस्टिस डीके उपाध्या और ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच नें 24 मई को एकल न्यायाधीश के आदेश को खारिज करते हुए कहा था कि किसी व्यक्ति को इस आधार पर पदोन्नति से नहीं रोका जा सकता है कि वह एचआईवी पॉजिटिव है।
High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ नें एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि कार्य करने में सक्षम एचआईवी पीड़ित को पदोन्नति से इनकार नहीं किया जा सकता। इससे पहले कोर्ट की एकल पीठ नें एचआईवी पॉजिटिव को पदोन्नति से इनकार करने वाले फैसले को चुनौती देने वाली सीआरपीएफ कांस्टेबल द्वारा दाखिल याचिका खारीज कर दी थी।
अनुच्छेद 14,16 और 21 का होगा उल्लंघन होगा
जस्टिस डीके उपाध्या और ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच नें 24 मई को एकल न्यायाधीश के आदेश को खारिज करते हुए कहा था कि किसी व्यक्ति को इस आधार पर पदोन्नति से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह एचआईवी पॉजिटिव है। यह भेदभावपूर्ण होगा। यह अनुच्छेद 14 जिसमें समानता का अधिकार दिया गया है, अनुच्छेद 16 जिसमें राज्य द्वारा रोजगार में भेदभाव न करने का अधिकार दिया गया है और अनुच्छेद 21 जिसमें जीवन का अधिकार दिया गया है, का उल्लंघन होगा।
जवान को उसी तिथि से सभी लाभ देने के निर्देश
इसके बाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और सीआरपीएफ को निर्देश देते हुए कहा कि कांस्टेबल को हेड कांस्टेब के पद पर उसी तिथि से विचार किया जाए जिस तिथि उसके कनिष्ठों की पदोन्नत हुई थी। पीठ ने कहा की आग्रहकर्ता को उन सभी लाभों का हकदार होगा जो लाभ एचआईवी निगेटिव होने पर मिलता।
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हाई कोर्ट नें आदेश पारित करते समय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय उन आदेशों का भी जिक्र किया जो 2010 में सुनाया गया था। इस फैसले में एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाया गया था। वहीं सीआरपीएफ के जवान ने अपने अपील में 1993 में कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति का जिक्र किया है। शुरुआत में उसकी तैनाती कश्मीर में हुई थी।
2014 में हुई थी पदावनति
2008 में वह एचआईवी पॉजिटिव पाय गया । लेकिन वह कार्य करने में सक्षम व बिल्कुल फिट है। 2013 में उसका पदोन्नति किया गया। लेकिन 2014 में उसकी पदोन्नति खारीज करते हुए उसे वापस कांस्टेबल बना दिया गया था।