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Lucknow News: मनमोहक प्रस्तुतियों से कलाकारों ने बांधा समां, खूब बटोरीं तालियां
Lucknow News: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के लिए वाणी, वीणा, वेणु सांस्कृतिक गीत का किया गया आयोजन।
Lucknow News: इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों से नवीन पीढ़ी को अपनी संस्कृति, मिट्टी और इतिहास से जुड़ने का मौका मिलता है। शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए वाणी, वीणा, वेणु सांस्कृतिक गीत संध्या का आयोजन किया गया। कलाकारों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से सबका मनमोह लिया, वहीं दर्शकों ने भी कलाकारों का तालियां बजाकर हौसला बढ़ाया।
पंडित सियाराम तिवारी मेमोरीयल संगीत ट्रस्ट, त्रिसामा आर्ट्स और विडीओवाला के संयुक्त तत्वावधान में लखनऊ में “वाणी, वीणा, वेणु” कार्यक्रम का आयोजन 8 अप्रैल को संगीत नाटक अकैडमी के अन्तर्गत वाल्मीकि रंगशाला में हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि
कार्यक्रम में लखनऊ के कई गणमान्य व्यक्ति जैसे भातखण्डे विश्विद्यालय की कुलपति डॉ माण्डवी सिंह, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता उमा त्रिगुणायत, प्रसिद्ध संगीतकार पंडित अमित मुखर्जी आदि कार्यक्रम में उपस्थित रहे। सभी अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का विधिवत प्रारम्भ किया। कार्यक्रम के संयोजक अभिषेक शर्मा ने अपनी संस्था द्वारा आयोजित प्रस्तुतियों के बारे में बताते हुए कहा “यह उनकी और उनकी संस्था की दसवीं बैठक है और आने वाले समय में ऐसी अनेक बैठकों का लखनऊ शहर में करने का विचार है।”
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और विशेष रूप से ध्रुपद शैली का प्रचार है। “वाणी, वीणा वेणु” भारतीय शास्त्रीय संगीत की तीन अलग-अलग विधाओं का त्रिवेणी संगम है।
कार्यक्रम की मुख्य प्रस्तुतियाँ
कार्यक्रम में वाणी के रूप में दरभंगा घराने के प्रख्यात गायक सुमित आनन्द पांडेय का ध्रपद गायन, वीणा के रूप में सेनिया बांगाश घराने के प्रीतम घोषाल का सरोद वादन, और वेणु में मेवाती घराने के सुप्रसिद्ध लोकेश आनंद का शहनाई वादन हुआ। तीनों विधाओं का एक मंच पर ऐसा संगम काफी नवीन और अविस्मरणीय है। ध्रुपद गायन का श्रीगणेश डॉ सुमीत आनंद पांडेय ने राग मारवा में ध्रुपद अंग की विस्तृत आलापचारी से किया।
दरभंगा ध्रुपद परंपरा की चार चरण की आलापचारी में ‘हरी ॐ अनंत नारायण‘ स्त्रोत से लिए गाए स्वर ध् वॉवेल्स जैसे, त, ना, रि, रे, नोम-तोम आदि से राग के स्वरों को अनिबद्ध और निबद्ध चरणों में तानपुरा की ध्वनि के साथ उजागर किया। मध्यलय में जोड़ अंग के आलाप में सुमधुर मींड और द्रुतलाया में झाला अंग के आलाप में ओजपूर्ण गमक के प्रयोग से आलापचारी को सुसज्जित कर सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया। ध्रुपद को योग और नाद-योग के समीप माना गया है जो हमें सहज रहने की प्रेरणा देता है।
इसी को चरितार्थ करते हुए गायक ने श्वास नियंत्रण द्वारा आलाप के सभी चरणों में तीनों सप्तक में आवाज की कर्णप्रियता को बरकरार रखते हुए गायन प्रस्तुत किया। आलाप के बाद चैताल जो प्रायः विलम्बित लय में गाया-बजाया जाता हैं उसमें ऐतिहासिक पद ‘दम्पति भूप भये, रूप बिसात करि, खेलन लाग्यो, शतरंज बाजी‘ प्रस्तुत किया। पदों की प्रस्तुति लखनऊ के प्रतिभावान कलाकार श्री शशिकांत पाठक के पखावज संगत के साथ हुई, जिसमंे कलाकारों ने लय की उपज करते हुए, दुगुन और चैगुन के अलावा, तिश्र, खंड और मिश्र जाति में लयकारिया की, जो तिहाइयों के साथ सम पर आती रही। अपने गायन का समापन डॉ सुमीत आनंद पांडेय ने फरमाइश पर राग मेघ की अलापचारी और मध्यलय सूलताल में ‘बादर उमड़-घुमड़, चहुँ ओर ध्यवात‘ से किया। इस पद में ध्रुपद शैली में समृद्ध साहित्य के समावेश का साक्षात् प्रमाण देखने को मिला। श्रोताओं ने पूरी प्रस्तुति को तन्मयता से सुना और अमूमन कम सुने जाने वाली ध्रुपद गायन शैली का भरपूर आनंद लिया।
कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति में दिल्ली से पधारे और उस्ताद अमजद अली खान के शिष्य श्री प्रीतम घोषाल ने राग झींझोटी में पहले आलाप, जोड़, झाला फिर विलंबित, मध्यलय और द्रुत रचनाएं प्रस्तुत किया। सभी रचनाएं सेनिया बंगाश घराने की पारंपरिक और तीनताल में निबद्ध थी। झिंझोटी में ही अपनी प्रस्तुति का समापन प्रीतम जी ने पंडित साजन मिश्रा की प्रसिद्ध बंदिश “रोको ना गैल” से किया। जनता के विशेष आग्रह पर उन्होंने राग चारुकेशी से अपनी प्रस्तुति का समापन किया। तबले पर उनकी संगत बनारस घराने के सिद्धार्थ चक्रवर्ती ने किया ।
कार्यक्रम की तीसरी कड़ी में मेवाती घराने के लोकेश आनंद ने शहनाई पर राग गोरख कल्याण में विलंबित और मध्यलय की रचनाओं से श्रोताओं को मुग्ध किया संध्या के अंत में लोकेश जी गोरख कल्याण में ही धुन प्रस्तुत किया। तबले पर उनकी संगत अरुणेश पांडेय ने की।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों से मिली सीख
इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों से नवीन पीढ़ी को अपनी संस्कृति, मिट्टी और इतिहास से जुड़ने का मौका मिलता है। इंटरनेट की दुनिया से निकलकर सभी को ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनकर भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।