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अयोध्या केस: सत्तर सालों के विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिनों में ऐसे सुलझाया
जो विवाद पिछले 70 सालों से देश के लिए एक चुनौती बना हुआ था उसे सुप्रीम कोर्ट ने मात्र 40 दिनों में सुलझा दिया। पांच जजों की बेंच ने लगातार सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुना दिया।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: जो विवाद पिछले 70 सालों से देश के लिए एक चुनौती बना हुआ था उसे सुप्रीम कोर्ट ने मात्र 40 दिनों में सुलझा दिया। पांच जजों की बेंच ने लगातार सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुना दिया।
ज्ञातव्य है अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद मामला सात दशक से लम्बित था उसे लगातार सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने अपना फैसला सुनाकर देश को एक नया रास्ता दिया।
इससे पहले इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने 30 सितम्बर 2010 को फैसला सुनाया था। जिसमें तीन जजों ने विवादित भूमि 2.77 को तीन हिस्सों में बांट दिया था।
इसमें से दो हिस्से हिन्दू पक्ष को तथा एक हिस्सा मुस्लिम पक्ष को सौंपा गया था। इस बेंच में जस्टिस धर्मवीर शर्मा, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस एसयू खान शामिल थे।
तीनों जजों ने माना था कि मुख्य गुम्बद की जगह मन्दिर की है। यह जन्मस्थान है। लेकिन, इस फैसले को हिन्दू और मुसलमान दोनों पक्षों ने नहीं माना था।
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अयोध्या केस में 14 अपीलें हुई थीं
इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई थी। कुल 14 अपीलें हुई थीं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को पांच अगस्त के बाद दैनिक आधार पर सुनकर निर्धारित समय सीमा मैं निर्धारण का फैसला किया।
इसके बांद पांच सदस्यों की बेंच ने इसे 40 दिन तक सुना और 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित कर दिया था। जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों डस्टिस एसवाई चन्द्रचू़ड़, जस्टिस एस. ए, बोबड़े., जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दूल नजीर की बेंच बनायी गई थी।
अयोध्या का वर्षो पुराना विवाद चर्चा में तब आया जब 25 जनवरी 1986 को वकील उमेश चन्द्र पाण्डे ने फैजाबाद अदालत में दावा दायर किया कि श्री रामजन्मभूमि पर लगा ताला अनाधिकृत है।
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मुंसिफ ने ताला खोलने से कर दिया था इंकार
मुंसिफ ने जब अपने आदेश से ताला खोलने से इंकार कर दिया। जिस पर आदेश के विरूद्व जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की गयी तो एक फरवरी को जिला अदालत के मुख्य न्यायधीश कृष्ण मोहन पाण्डे ने सुनवाई के पश्चात ताला खोलने के आदेश दियें।
22/23 दिसम्बर 1949 की रात विवादित स्थल पर बनी मस्जिद के बीच के गुम्बद के नीचे मूर्तियां रखकर नमाज में पेश की गई रुकावट के बाद 29 दिसम्बर 1949 को फैजाबाद जिला प्रशासन ने मस्जिद कुर्क कर एक रिसीवर तैनात किया।
16 जनवरी 1950 को अयोध्या के गोपाल सिंह विशारद ने दीवानी अदालत में मुकदमा संख्या 2/1950 दर्ज करवाकर अदालत से फरियाद की कि वहां रखी मूर्तिया न हटाई जाएं और उनको पूजा व दर्शन की अनुमति दी जाए।
इस मुकदमे में जहूर अहमद व पांच अन्य मुस्लिम तथा तत्कालीन राज्य सरकार को विपक्षी बनाया गया। फरियाद थी कि उक्त विपक्षी याचिकाकर्ता को पूजा अर्चना करने में बाधा डाल रहे हैं।
इस तरह से इस साठ साल पुराने मुकदमे के हिन्दू पक्ष से पहले पक्षकार गोपाल सिंह विशारद बने और विपक्षी जहूर अहमद, पांच अन्य मुस्लिम व राज्य सरकार। दूसरा मुकदमा धारा 80 का नोटिस देने के बाद महंत परमहंस रामचन्द्र दास की ओर से दाखिल हुआ।
1959 में निरमोही अखाड़े ने किया था दावा
इन दोनों मुकदमों में 1955 तक अस्थाई निषेधाज्ञा का मामला चलता रहा। 1959 में हिन्दुओं की ओर से तीसरा दावा निरमोही अखाड़े की ओर से दाखिल हुआ। इस मुकदमे में रिसीवर से कब्जा दिलाए जाने की बात कही गई थी।
जब इन तीनों मुकदमों का निर्णय 1961 तक न हो सका तो मूर्तियां रखने की तारीख से 12 साल के अन्दर मुसलमानों की ओर 18 दिसम्बर 1961 को सुन्नी वक्फ बोर्ड व अन्य मुस्लिम बनाम गोपाल सिंह विशारद व अन्य हिन्दू पक्ष का दावा दाखिल हुआ। यह दावा प्रतिनिधित्व रूप में दाखिल हुआ और इसे बाद में मुख्य मुकदमा बना दिया गया।
पहली फरवरी 1986 को जिला जज फैजाबाद ने एक अजनबी व्यक्ति की अपील पर इमारत के दोनों दरवाजों पर लगे ताले खोल दिए जाने का आदेश दे दिया ताकि गुम्बद के नीचे के स्थान पर जनता पूजा व दर्शन के लिए आ जा सके। इस आदेश पर मोहम्मद हाशिम अंसारी की ओर एक रिट पीटिशन दायर करके चुनौती दी गई।
जिसमें 3 फरवरी 1986 को हाईकोर्ट ने एक आदेश जारी किया कि इस रिट के निपटारे तक इमारत में कोई परिवर्तन न किया जाए और यथास्थिति बनी रहे। इस तरह मो.हाशिम अंसारी मुस्लिम पक्ष के एक और पक्षकार बने।
10 जुलाई 1989 को फैजाबाद की अदालत में चल रहे इन पांचों मुकदमों की सुनवाई हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ की फुल बेंच से किए जाने का फैसला हुआ। जुलाई 1989 में यह सभी मुकदमे हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ में स्थानांतरित हो गए।
1993 में रोक दी गई थी मुकदमों की सुनवाई
बताते चलें कि 1993 में जब मुकदमों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हाईकोर्ट में रोक दी गई थी तो उस वक्त चार मुकदमे ही लम्बित थे क्योंकि मुकदमा संख्या 25/1950 सितम्बर 1950 में महंत परमहंस रामचन्द्र दास द्वारा वापस लिया जा चुका था।
इस तरह से हिन्दू पक्ष की ओर से इस मुकदमे में हिन्दू महासभा, अखिल भारतीय आर्य समाज आदि और पक्षकार जुड़े और इनकी तादाद कुल 22 हो गई। मुस्लिम पक्ष की ओर से पहले पक्षकार बने जहूर अहमद का निधन हो गया।
वहीं सुन्नी सेण्ट्रल वक्फ बोर्ड, हाशिम अंसारी, मौलाना महफूजुर्रहमान, मामून अहमद, फारूख अहमद, हाजी अब्दल अहद सहित कुल आठ मुस्लिम पक्षकार बने।
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