जानिए यूपी के मुगल-ए-आज़म का फ़र्श से अर्श तक का सफ़र, ऐसे ही कोई...

सियासत में अपनी जिन्दगी सर्फ करने वाले आजम खां जमीनी फर्श से सियासत के अर्श तक पहुंचे । धीरे धीरे आजम खां सियासत के पायदान चढ़ते हुए इस महारत में मील का पत्थर साबित हुए।

Roshni Khan
Published on: 26 July 2019 7:54 AM GMT
जानिए यूपी के मुगल-ए-आज़म का फ़र्श से अर्श तक का सफ़र, ऐसे ही कोई...
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शन्नू खान

रामपुर: सियासत में अपनी जिन्दगी सर्फ करने वाले आजम खां जमीनी फर्श से सियासत के अर्श तक पहुंचे । धीरे धीरे आजम खां सियासत के पायदान चढ़ते हुए इस महारत में मील का पत्थर साबित हुए। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रैसीडेंट बनने के बाद उन्होंने सियासत में कई बार आये जवाल को मुहंतोड़ जवाब अपनी मेहनत और हिम्मत से दिया और लगातार सियासत के सफर पर गामज़न रहे। नौ बार के विधयक, पांच बार मंत्री, सात शौबों के काबीना वजीर रहे आजम खां ने जौहर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और आरपीएस स्कूल चैन के फाउण्डर का सफर कैसे तय किया, आईए एक सरसरी नजर उनके ज़ाती जिन्दगी से सियासत की जिन्दगी तक डालते हैं।

जानते हैं कि शीशे के सामने भाव भंगिमा के साथ दिलीप कुमार के डायलाॅग की नकल करने वाले आजम किस तरह एक लम्बा सफर तय करके राजनीति के लीजेण्ड मोहम्मद आजम खां बन गये। मुल्क की सियासत उनके बिना पूरी नहीं होती। अपने बयानों से फायर करने वाले आजम खां देश की राजनीति के केन्द्र में रहते हैं। आईए उनकी जिन्दगी के सफर पर नजर डालते हैं।

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14 अगस्त 1948 को को पैदा हुए आजम खां की जिन्दगी का सफर काफी जददोजहद भरा रहा है। सिविल लाइंस में रेलवे स्टेशन के सामने शब्बन होटल की दूसरी मंजिल पर किराना स्टोर व टाइपिस्ट की दुकान चलाने वाले मुम्ताज खां ने बड़ी जददोजहद से जसारत करते हुए बेटे आजम को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पढ़ने के लिए भेजा। आजम खां के बचपन के दोस्त बताते हैं कि उन्हें अलीगढ़ पढ़ने के लिए मजबूरी के तहत भेजा गया। दरअसल एक मुजाहिरे के दौरान डीएसपी शर्मा को इनकी सरगर्मी से तलाश थी। जिसके चलते पुलिस से बचाने के लिए उन्हें वालिद ने अलीगढ़ भेज दिया। अक्सर शीशे के सामने फिल्म अदाकार दिलीप कुमार के डायलाॅग की नकल करने वाले आजम में सियासत के जरासीम शुरू बचपन से ही दिखते थे। चोरी चोरी डायलाॅग डिलीवरी की प्रैक्टिस करने वाले आजम खां ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी आहिस्ता आहिस्ता सियासत का लोहा मनवा शुरू कर दिया और अपनी पुरजोर मेहनत के नताइज और जौख़ ओ शौक की बुनियाद पर अलीगढ़ के इंतेखाब में उन्हें प्रैसीडेंट चुना गया। श्ख्स से शख्सियत बनने के सफर का आगाज़ अलीगढ़ यूनीवर्सिटी से हुआ। अलीगढ़ चुनाव कैम्पेन के दौरान अपने ही साथी को पिटवा कर हमदर्दी बटोर कर चुनाव को अपने पक्ष में किया।

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आजम खां के दोस्त शक्कन खां पुरानी यादों में खोते हुए बताते हैं कि उन्होंने आजम खां के लिए अपने ही साथी को पीटा और हमदर्दी बटोरी। इस दौरान आजम खां के अपोजिट कैण्डिडेट शाहिद ने इंग्लिश में स्पीच देकर अपने पक्ष में माहौल बना लिया। तब आजम खां की सियासत ने उन्हें उरूज दिया। दरअसल काबिलियत होने के बावजूद अंग्रेजी में हाथ तंग होने की वजुहात से आजम खां ने अपनी स्पीच में उर्दू का इस्तेमाल कर कहा कि हिन्दुस्तान आजाद हो गया लेकिन लोगों की जे़हनियत आज भी गुलाम है। क्यों न उर्दू को बढ़ावा देना चाहिए। इस तरह हाथों से जाता हुआ पूरा चुनावी माहौल अपनी सिम्त कर लिया और अखिरकार स्टूडेंट यूनियन के लीडर बने। साल 1974 में बैचलर ऑफ लॉ की पढ़ाई के दौरान प्रैसीडेंट बनने के बाद शख्स आजम, शख्सियत मोहम्मद आजम खां बन गये। लोगों में उनका वकार बढ़ने लगा और धीरे धीरे यह दायरा और वसीह होता चला गया। 1981 में डा तज़ीन फातिमा से उनका निकाह हुआ। राजनीति से पहले एक वकील की हैसियत से आजम खां काम किया करते थे।

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रज़ा टैक्सटाइल्स प्रा. लिमिटेड यानी कपड़ा मिल के मुलाजिमों की तनख्वाह बढ़ाने की लड़ाई आजम खां ने लड़ी। करीब तीन हजार कर्मचारियों की सबसे बड़ी मिल में तनख्वाह बढ़ाने को लेकर आजम खां करीब तीन सौ कर्मचारियों के साथ मिल के दरवाजे पर बैठ गये और मिल प्रबन्धन पर दबाव बनाने के लिए लगातार करीब पांच-छह महीने तक आन्दोलन को धर दी। इस दौरान मिलकर्मियों के आगे रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हुआ। इसके लिए आजम खां ने चन्दा कर कर्मियों के लिए राशन पानी का भी इंतेजाम किया। कुछ कर्मचारी इस दौरान आन्दोलन से टूटने लगे और मिल मालिक की गाड़ी में बैठकर काम करने के लिए मिल के अन्दर जाने लगे। इस पर आन्दोलनरत कर्मचारियों ने मिल मालिक को घेर लिया और सीटू नाम की पार्टी के झण्डों में लगी लाठियों को हथियार बनाते हुए हमला कर मिल मालिक के साथ जाने वाले कर्मियों को रोकने की पुरजोर कोशिश की गई। इस मौके पर पुलिस में भर्ती हुए नये रंगरूटों ने जबरदस्त लाठी चार्ज किया और आन्दोलन में शामिल कई लोगों को शदीद रूप से घायल कर दिया। मिल कर्मचारियों और पुलिस के बीच हुए इस संघर्ष के दिन आजम खां मौजूद नहीं थे और वह दूसरे दिन वहां पहुंचे और घायलों का हाल चाल लिया। रफ्ता रफ्ता आन्दोलन टूट गया और मिल की हड़ताल खत्म हो गयी लोग अपने अपने कामों पर लौट गये।

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आन्दोलन के दौरान आजम खां पुरानी कॉलोनी में बने घर में बाकी वक्त गुजारा करते थे। जिले में यह आन्दोलन आजम खां की सियासत का पहला बाब था। सन 1981 में अनवार खां ने कुरैशी मार्केट में आरके फोटो स्टूडियो खोला। अनवार खां, नवाब भाई, पहलवान शक्कन खां, डा नईम, अरशद खां और दीगर दोस्तों के साथ अक्सर आजम खां फुरसत के लम्हें बिताया करते थे। उनके मामलात में शमिल रहा करते। आजम खां की जिन्दगी के और बहुत ऐसे पहलु हैं लेकिन दो राय होने के नाते उन पहलुओं को छुआ नहीं गया है। आजम खां के चाहने वालों की एक वसीह फहरिस्त है तो उनकी रीति नीतियों के मुखालिफों की भी एक लम्बी कतार है। हो सकता है कि हमारी बात से कोई इत्तेफाक रखता हो और नहीं भी, लेकिन मवाद को आजम खां के पुराने अजीजों अकारिब के तजुर्बात पर शया किया गया है। हो सकता है कि कोई हमख्याल न हो, लेकिन उनके नजरिये का भी हम खैर मख़्दम करते हैं और मोअर्रिख का इसमें कोई जुदा ख्याल नहीं है।

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अकीदतमंदों की अकाल मौत पर दिया इस्तीफा

आजम खां को महाकुम्भ मेला समिति का चेयरमैन तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त किया गया था। करीब 30 लाख श्रद्धालुओं द्वारा पवित्र गंगा में डुबकी लगाई जाती है। इस दौरान महाकुम्भ मेला परिक्षेत्र से बाहर इलाहाबाद जक्शंन रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने पर करीब 40 लोगों की मौत हो गई थी। अख़लाख़ी जिम्मेदारी लेते हुए आजम खां ने अपने ओहदे से इस्तीफा दे दिया था। दोषी नहीं मानते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनका इस्तीफा खारिज कर दिया था।

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आजम के खास अंदाज के लोग हैं दीवाने

आजम खां की खास परिधान शैली और रामपुर की पहचान खास टोपी पहनने की वजह से टोपी की खास पहचान में इजाफा हुआ और नौजवान और हमउम्र के लोगों में इस खास किस्म की कैप पहनने का रिवाज भी है। आजम खां के जरिए पहनी जाने वाली टोपी का चलन इतना बढ़ा कि अक्सर रामपुर आने वाले मेहमानों को इस तरह की टोपी भी सौगात के तौर पर दी जाती है।

ये सब तुम्हारा करम है आका ..

न आरजू का कोई सलीका, न बन्दगी मेरी बन्दगी है!

यह सब तुम्हारा करम है आका, कि बात अब तक बनी हुई है!!

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अपने कारकुनान और हामियों के दिलों में खुसूसी म्यार रखने वाले आजम खां का इंतेखाबात के दौरान कन्वेसिंग करने का तरीका भी खास होता है। इस दौरान अपने समर्थकों के बीच अपने पसंदीदा अशआर पहुंचाए गये। शायरी के शौकीन आजम खां के जरिए पाकिस्तान के नातख्वां खुर्शीद अहमद की लिखी नात ..ये सब तुम्हारा करम है आका ...लोगों तक पहुंचाई गयी जो बहुत ही मकबूल हुई। अपने खिताब के दौरान जोशीले अशआर पेश करना उनकी आदत में शुमार है साथ ही उनके खिताब को और भी दिलचस्प और दिलफरेब बनाते हैं।

दिलीप कुमार की फिल्मों के थे शैदाई

मशहूर और मारूफ फिल्म अदाकार दिलीप कुमार के आजम खां जबरदस्त फैन थे। शैदाई आजम खां दिलीप कुमार की कोई भी फिल्म देखना नहीं छोड़ते थे। दिलीप कुमार की फिल्में देखने के लिए आजम खां अपने बचपन के दोस्त पहलवान शक्कन खां के साथ साइकिल पर बैठकर मुरादाबाद जाया करते थे। इस दौरान साइकिल चलाने की शेयरिंग भी होती थी। बाकर स्कूल से दसवीं और सुन्दर लाल इण्टर कॉलेज से बारहवीं पास करने के दरमियान शक्कन खां के साथ वक्त बिताया करते थे। गाड़ीवानों में अपने आबाई घर से स्कूल के लिए सुबह आते और सारा दिन सिविल लाइंस में बिताया करते। यहां तक कि एक दस्तरख्वान दोनों के लिए लगाया जाता ।

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सवाल का जवाब न देने का अंदाज बनाता है लाजवाब

अक्सर अपने बयानों से मीडिया के मरकज में रहने वाले जनाब खान अपने छोटे से छोटे बयान के लिए भी जबरदस्त होमवर्क करते हैं। जहांदीदा होने के सबब और चुनिन्दा लफ्रजों की अदायगी उन्हें लाजवाब बनाती है। मीडिया के आड़े तिरछे सवालों के जवाब भी वह बड़ी संजीदगी से देते हैं और किसी सवाल का जवाब न देने का अंदाज भी उन्हें बखूबी आता है।

आजम के खिलाफ छींटाकशी करने में कई गये जेल

शोला बयानी करने वाले आजम खां के बरअक्स विवादित बयान देने के चलते कई लोगों को जेल की हवा भी खानी पड़ी। दलित लेखक कंवल भारती पर मुकदमा हुआ। बरेली निवासी स्कूल गोइंग टीनेज को जेल जाना पड़ा। निलम्बित आईपीएस आॅफीसर द्वारा आजम खंा द्वारा तथाकथित अमर्यादित बयान के खिलाफ लखनऊ में केस फाइल किया गया। जेल जाने वालों की फेहरिस्त में अब्दुल सलाम, डा बंधु तनवीर खां और महमूद खां, फैसल खान लाला, आसिम खां, दानिश खां वगैहरा सरे फेहरिस्त हैं।

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बीड़ी कारीगरों के मुददे से शुरू की सियासत

लिविंग लीजैण्ड बनने के सफर की शुरुआत जिले में बड़े पैमाने पर किये जाने वाले कारोबार बीड़ी के बनाने वाले कारीगरों के हकाइक के मुददे से की। अक्सर आजम खां बीड़ी बनाने के कारखानों में जाकर टाट पर बैठकर उनके साथ गुफ्तगू करते थे। इस दौरान उन्होंने 'एक नोट एक वोट' की अपील अमल में लाई। यानी वोट के साथ एक रूपए की मांग की गई। जमीनी लोगों के दिलों में राज करने वाले आजम खां ने पूराने दौर में कभी चुनाव प्रचार पर रूपया खर्च नहीं किया और लोगों ने चन्दा करके उन्हें सियासी यलगार में हमेशा वैजयन्ती माला पहनाई।

उलझे हुए जुम्ले इस्तेमाल करते हुए पलटते हैं मुद्दे पर

आजम खां अपने खिताब के दौरान जबरदस्त मोहपाश, सम्मोहन तैयार करते हैं। दिलबराना अंदाज में आवाज की बारीकी, उतार, उठान, पाॅज़ के साथ भाव भंगिमाओं की कसौटी पर खरे उतरते हुए आजम खां कितने भी उलझे जुम्ले इस्तेमाल करें लेकिन कहीं मुददे से भटकते नहीं। कई जुल्मों को उलझाकर बोलने के बावजूद वह वापिस उसी जुम्ले को पूरा करते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान अपनी स्पीच में स्थानीय मुददों से शुरू कर सूबाई और फिर देश के मुददों को जज्बातों के साथ पेश करते हुए आखिरी पांच सात मिनट बैनुल अक्वामी सतह के मसले मसाइल उठाकर फौरन चंद मिनटों के दौरान वोट मांगने की अपील पर पलटते हैं जो अवाम के लिए बड़ा ही ज़ज्बाती मरहला होता है। लोगों को उनके नाम से जानना और उनके मुददों को ध्यान रखना उनका खास मशगला है। आंखों के अंदाज से भीड़ में खड़ा इंसान भी महसूस करता है कि वह उनकी खास नजर में है।

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कुछ दिन कचहरी में की वकालत की प्रैक्टिस

सियासत के पायदान पर कदम रखने से कब्ल लॉ बैचलर होने के नाते आजम खां ने कुछ दिन कचहरी में वकालत भी की। मोहम्मद एजाज खां एडवोकेट के चैम्बर में उनके जूनियर बनकर वकालत किया करते थे। कचहरी के वुकला से काफी उन्सियत रखते हैं और अपने दौर ए इक्तेदार में वकीलों की सिफारिश कर उन्हें सरकारी तौर पर ओहदेदार बनवाया। बार एसोसिएशन की नये सिरे से तामीर बिल्डिंग के ठीक सामने आजम खां का बिस्तर हुआ करता था। सियासत में दाखिल होने के बाद इस शौबे से पूरी तरह उन्होंने कनारा कर लिया।

आतिशी बयानों से रहते हैं मीडिया लाइमलाइट में

साल 2014 में इंतेखाबात के दौरान आजम खां अपनी शोला बयानी के चलते मीडिया लाइमलाइट में आ गये। कारगिल युद्ध में जीत मुस्लिम फौजियों के सबब मिली कहने पर मीडिया की आलोचना का शिकार हुए और एक एफआईआर उनके खिलाफ दर्ज की गई। लेकिन आजम खां माफीनामा तो दूर अपने बयान से टस से मस भी नहीं हुए और भारत निर्वाचन आयोग पर तरफदारी करने की इल्जामतराशी कर दी। सम्भल में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए आजम खां ने मुजफ्फरनगर के कातिलों से बदला लेने की लोगों से अपील कर दी। अपने सियासी मुखालिफ वजीर ए आजम नरेन्द्र मोदी को लेकर काफी विवादास्पद स्टेटमेंट दिया। संजय गांधी और राजीव गांधी को लेकर कहा कि उन्हें उनके गुनाहों के लिए अल्लाह ने सजा दी। पीएम नरेन्द्र मोदी को लेकर कहा कि जो अपनी पत्नि के साथ नहीं रह सके वह देश के साथ कैसे रह सकते हैं? उनपर मुजफ्फरनगर काण्ड में मुस्लिम लोगों को नहीं पकड़ने के लिए पुलिस पर दबाव बनाने का इल्जाम भी लगा। इसके फौरन बाद आजम खां की भैंसे उनके तबेले से चोरी हो जाने पर दर्जनों पुलिसकर्मियों के जरिए ढंूढभाल की खबर कौमी सतह पर बनी। आजम खां और विवाद एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। जिसके चलते लगातार आजम खां की टीआरपी बढ़ती रही। मीडिया के घेरने पर उन्होंने कहा कि उनको दाउद इब्राहिम और तालीबान फण्डिंग करते हैं। मुल्की मीडिया अक्सर उन्हें उनकी आतिशी बयानों के सबब फायरब्रांड नेता कहकर खिताब करता है।

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सैकेण्ड टू चीफ मिनिस्टर का रूतबा रहा एवाने शाही में

वर्ष 1980 में पहली बार वह एमएलए बने। जनता पार्टी, जनता दल, लोकदल, जनता पार्टी सैकूलर से सियासत के सफर का संघर्ष करते हुए समाजवादी पार्टी के बानी मेम्बरों में शुमार आजम खां सूबाई सरकार में साल 1989, 1991, 1993 में वजीर रहे। वर्ष 2002 में नेता विपक्ष रहे। 2003 और 2012 में सीनियर मोस्ट काबीना मंत्री भी रहे। अलबत्ता यूं कहें कि वह सैकेण्ड टू चीफ मिनिस्टर रहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक वक़्फा ऐसा भी आया जब तंजीम से 17 मई वर्ष 2009 को उन्होंने राष्ट्रीय महासचिव के ओहदे से इस्तीफा दे दिया। साल 2010 में दोबारा उन्होंने सपा का दामन थाम लिया। रामपुर विधानसभा शहर से नौ बार मेम्बर ऑफ द लैजिसलैटिव एसेम्बली रहने वाले आजम खां ने अपनी 71 साला जिन्दगी में दो बार मन्जूर अली खां उर्फ श्न्नू खां और अफरोज अली खां से ही शिकस्त का मुंह देखा। सपा ने उन्हें साल 2019 में रामपुर लोकसभा के लिए अपना उम्मीदवार इंतेख़ाब और वह इन उम्मीदों पर सौ फीसद खरे उतरे। हाल में वह 17वीं लोकसभा के लिए रामपुर से मेम्बर हैं।

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