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अब ये देश देगा चीन को करारी शिकस्तः टूट रहा है कारोबारी रिश्ता
उद्यमी आकाश जालान दफ्तरों में एल्मुनियम के उत्पाद के लिए कच्चा माल चीन से मंगाते रहे हैं। इस तरह का उत्पाद बनाने वाली फैक्ट्रियों में चीन से माल मंगाने की मजबूरी है।
गोरखपुर। चीन के उत्पादों के बहिष्कार के नारों और स्लोगन से सोशल मीडिया अटे पड़े हैं। पहले भले ही हकीकत की धरातल पर आते ही विरोध की हवा निकलती दिखती रही है लेकिन कोरोना काल में चीन के खिलाफ उठ रही आवाज में संजीदगी है। प्रदेश सरकार की मंशा को देखते हुए उद्यमी भी कदमताल कर रहे हैं। बदले हालात में गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) के उद्यमियों से लेकर अपने मिट्टी के उत्पादों से दुनिया में धाक बनाने वाले टेराकोटा शिल्पकार चीन को चुनौती देने को तैयार हैं।
गीडा के उद्यमियों ने तो चीन से रिश्ता-नाता तोड़ कर विकल्प भी तलाश लिया है। अफसरों ने संजीदगी दिखाई तो अबकी दीवाली में न तो चाइनीज लक्ष्मी-गणेश दिखेंगे न ही झालरों की रोशनी।
चीन के उत्पाद रोजमर्रा की जिंदगी में काफी गहरे तक पैठ बनाये हुए हैं। त्योहार के उत्पाद हों या फिर मोबाइल-टैबलेट। स्टील के उत्पाद हों या टूथब्रश। इलेक्ट्रॉनिक गुड्स हो या फिर पॉलीमर। कमोबेश सभी जगह चीन का दखल है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या छोटे मोटे प्रयासों से चीन के उत्पादों का बायकाट संभव है?
सरकार से आस
चेम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल कहते हैं कि उद्यमियों को सब्सिडी और सहूलियत देकर सरकार को पहल करनी होगी। उद्यमी को मुनाफा चाहिए। सरकार को एंटी ड्यूटी जैसे कदमों से चीनी उत्पादों पर अंकुश लगाना होगा।
चीन से आता है कच्चा माल
विरोध के दावों के सच्चाई यह है कि गीडा के उद्यमी फिलहाल 50 करोड़ से अधिक का कच्चा माल चीन से मंगाते हैं तो दीवाली में चीन गोरखपुर जैसे शहर के लोगों की जेब से 30 करोड़ निकाल लेता है। खैर, अभी तक रस्मी दिख रहे चीन के विरोध में संजीदगी दिख रही है। गोरखपुर में चेम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज ने जून महीने के अंत में होने वाले संगठन की बैठक में चीन के उत्पादों का बायकाट करने का प्रस्ताव तैयार किया है।
तोड़ रहे हैं चीन से रिश्ता
बदले हालात में कमोबेश सभी फैक्ट्री मालिकों ने चीन से रिश्ता तोड़ना शुरू कर दिया है। गीडा के उद्यमी सनूप कुमार साहू ने तो इसकी शुरुआत भी कर दी है। कूलर, पंखा और सिलाई मशीन के लिए सनूप पहले चीन से बियरिंग मंगाते थे। अब अपने उत्पादों में स्वदेशी बियरिंग ही लगा रहे हैं। तैयार उत्पाद की कीमत चीन के मुकाबले 20 से 25 रुपए अधिक है। सनूप का कहना है कि देश की अन्य ब्रांडेड कूलर और पंखे की कंपनियों से कम्पटीशन को लेकर निर्माण में जर्मनी और जापान की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। अब कभी चीन का सामान नहीं मंगाएंगे।
चीन का पॉलिमर
गीडा में चप्पल बनाने वाली फैक्ट्री एआरपी में करीब 10 करोड़ कीमत का पॉलीमर चीन से आता था। फैक्ट्री के निदेशक मोहम्मद आजम खां बताते हैं कि अब इंडियन आयल और रिलायंस से पॉलीमर मंगा रहे हैं। मुनाफा कम होगा लेकिन चीन से समान नहीं मंगाएंगे। सरकार को चीन से मोर्चा लेना है तो पॉलीमर के आयात पर रोक लगाए। ऐसा होगा तभी स्थानीय स्तर पर कंपटीशन संभव होगा।
करीब 30 करोड़ के निवेश के साथ फर्नीचर का उद्योग शुरू करने वाले उद्यमी आरिफ साबिर कहते हैं कि कुर्सियों और मेज के लिए पहले करीब 5 करोड़ कीमत का कच्चा माल चीन से मंगाते थे। अब बेंगलूरु की कंपनी से कच्चा माल मंगा रहे हैं। यदि अन्य उद्यमी भी स्वदेशी कंपनी से कच्चा माल लेंगे तो चीन को चुनौती देना आसान हो जाएगा। उद्यमी आरएन सिंह कहते हैं कि अगरबत्ती बनाने में प्रयोग होने वाली इंसेंस स्टिक पहले वह चीन से मंगाते थे, लेकिन अब उसे वियतनाम से मंगाया जा रहा है।
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चीन के ऑफर को ठुकरा रहे
उद्यमी आकाश जालान दफ्तरों में एल्मुनियम के उत्पाद के लिए कच्चा माल चीन से मंगाते रहे हैं। इस तरह का उत्पाद बनाने वाली फैक्ट्रियों में चीन से माल मंगाने की मजबूरी है। अगर देश में ही कच्चा माल उपलब्ध होगा तो चीन से क्यों आयात करेंगे। केन्द्र सरकार को पत्र लिख कर मांग की है कि कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
प्लास्टिक का बोरा बनाने वाले उद्यमी किशन बथवाल पिछले 5 वर्षों से चीन के ऑफर को ठुकरा रहे हैं। बोरा बनाने के लिए वह रिलांयस इडस्ट्रीज से प्लास्टिक का दाना खरीदते हैं। बथवाल बताते हैं कि चीनी कंपनियों के प्रतिनिधि लगातार संपर्क कर ऑफर दे रहे हैं कि वह 20 फीयदी से कम कीमत पर ही कच्चा माल मुहैया करा देंगे। लेकिन प्रबंधन ने चीनी कंपनियों को साफ मना कर दिया है।
गीडा में कौशल विकास केंद्र
गीडा में कौशल विकास केन्द्र भी संचालित होने लगा है। यहां उद्यमी चीनी झालर को चुनौती देने को तैयार है। आसपास के लोगों को उद्यमियों द्वारा कच्चा माल दिया जा रहा है। जिससे वह एलईडी झालर बना रहे हैं। कच्चे माल से तैयार झालर का नकद भुगतान कर दिया जा रहा है। गीडा सीईओ संजीव रंजन का कहना है कि एलईडी झालर स्वदेशी तो है ही, इससे 100 से अधिक लोगों को रोजगार भी मिल गया है।
गोरखपुर में बने लक्ष्मी-गणेश की होगी पूजा
बीते दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रोजगार संगम कर्ज मेला में आह्वान किया था कि पूरी दुनिया वैश्विक महामारी को झेल रही है। प्रत्येक व्यक्ति देख रहा है कि इसके पीछे कहीं न कहीं चीन है। अयोध्या के दीपोत्सव में 51,000 दीये प्रदेशभर में ढूंढ़ने पड़े थे। इन स्थितियों में दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं चीन से क्यों आएंगी?
क्या गोरखपुर का टेराकोटा इसकी आपूर्ति नहीं कर सकता? हम उन्हें डिजाइन देंगे और उसके अनुसार वे उत्पाद तैयार करेंगे। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद गोरखपुर के टेराकोटा शिल्पकार गदगद हैं। वह दोगुनी ऊर्जा में हैं तो वहीं प्रदेश सरकार की तरफ से भी मदद मिलती दिख रही है। चीन से बड़ी मात्रा में लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं के साथ ही झालर आते हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार ने लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को स्थानीय स्तर बनवाकर कला को बढ़ावा देने का फैसला किया है।
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प्रदेश सरकार टेराकोटा कलाकारों से ही दीए खरीदेगी
खादी विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल का कहना है कि गोरखपुर के टेराकोटा कलाकारों की मदद से चीन को चुनौती दी जाएगी। गोरखपुर में टेराकोटा एक जिला, एक उत्पाद में चयनित है। यहाँ के शिल्पकार चीन से भी बेहतर गुणवत्ता की लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बना सकते हैं। इसे लेकर यूपी को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाएंगे। प्रमुख सचिव ने बताया कि माटी कला बोर्ड की ओर से राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला का आयोजन गोरखपुर में किया जाएगा, ताकि इस दिवाली में लोग स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों द्वारा बनाई गई गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों को खरीदें।
इन मूर्तियों को बनाने के लिए कार्यशाला का उद्देश्य अन्य राज्यों के कलाकारों, शिल्पकारों और कुम्हारों को प्रौद्योगिकी के बारे में बताना है। ग्रामीण लोगों, कलाकारों और कुशल प्रवासियों को अधिक से अधिक रोजगार देने के लिए उत्तर प्रदेश माटी कला बोर्ड को मजबूत किया जा रहा है। दिवाली के दौरान बाजार चीनी लाइटों और गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों से भरा होता है। ऐसे में सरकार ने कलाकारों, मूर्तिकारों और कुम्हारों को प्रशिक्षण देने के लिए गोरखपुर में एक राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित करने का निर्णय लिया है।
कार्यशाला में वह टेराकोटा की मूर्तियों को बनाने की तकनीक में महारत हासिल करेंगे। उन्होंने कहा कि इससे पीएम के 'आत्म निर्भर' के आह्वान को हासिल करने में भी मदद मिलेगी। कार्यशाला के बहाने 50 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। बता दें कि 2019 में अयोध्या में 5 लाख से अधिक मिट्टी के दीए जले थे। इस बार प्रदेश सरकार टेराकोटा कलाकारों से ही दीए खरीदेगी।
देश विदेश में टेराकोटा की दस्तक
टेराकोटा का डंका बर्किघम पैलेस से लेकर राष्ट्रपति भवन तक है। यहाँ के कलाकार 1982 में तत्कालीन सरकार के सहयोग से बिट्रेन में हस्तशिल्प का प्रदर्शन करने पहुंचे थे। उनकी कला की इतनी तारीफ हुई कि उन्हें बर्किंघम पैलेस में दूसरे कलाकारों के साथ जाने का अवसर मिला। ग्लासगो के राजपरिवार के सदस्य ने इनका स्वागत किया था।
यहां के टेराकोटा शिल्पकार गुलाब की फोटो ग्लासगो के राजपरिवार के व्यक्ति के साथ फोटो आज भी है। क्वीन एलिजाबेथ को गुलाब ने कलाकृतियां भेंट की तो उन्होंने एक मेडल देकर सम्मानित किया था। उसके बाद 1986 में आस्ट्रेलिया, 1987 में हॉलैंड में इस कला का प्रदर्शन किया। 1995 के टेराकोटा गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हुआ था। टेराकोटा के उत्पाद राष्ट्रपति भवन की भी शोभा बढ़ा रहे हैं।
जिला उद्योग केंद्र के सहायक आयुक्त उद्योग प्रभात यादव बताते हैं कि गुलरिहा, औरंगाबाद, जंगल एकला, भरवलिया, पादरी बाजार समेत अन्य गांवों के 250-300 लोग टेराकोटा से जुड़े हैं।
एक जिला, एक उत्पाद में शामिल होने के बाद से शिल्पी हर साल करीब 40 लाख रुपये का कारोबार कर रहे हैं। बीते मई में टेराकोटा शिल्प को जीआई टैग भी मिल गया। एक जिला एक उत्पाद योजना के पोर्टल और ई कामर्स साइट अमेजन के जरिये उत्पाद की बिक्री का मौका भी हस्तशिल्पियों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
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चीन का खत्म होगा दखल
चीन को चुनौती देने के लिए उद्यमी पूरी तरह तैयार हैं। सरकार को भी उद्यमियों की मदद को लेकर आगे आना होगा। इसके लिए उद्यमियों को कुछ छूट देने की जरूरत है। केन्द्र सरकार को उन उत्पादों पर एंटी ड्यूटी बढ़ानी होगी भारत में बनाया जा सकता है। ऐसा होगा तभी देश आत्मनिर्भर हो सकता है।
-विष्णु अजीत सरिया, अध्यक्ष, चेम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज
टेराकोटा शिल्प के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सदैव मददगार रहे हैं। उन्हीं के प्रयास से इसे एक जिला, एक उत्पाद में शामिल किया गया। बैंकों से लोन मिलने में आसानी हुई है। इस बार दीपावली पर अयोध्या के लिए जितने दियों की जरूरत होगी, उपलब्ध कराएंगे। बाजार की मांग के अनुरूप भी दीपक बनाएंगे।
- आरती, टेराकोटा शिल्पी
चीन से करीब 6 करोड़ रुपये का कच्चा माल मंगाते थे। अब चीन से तौबा कर लिया है। बंगलुरू से कच्चा माल मंगा रहे हैं। चीन की तुलना में थोड़ा महंगा है, लेकिन भारतीय कच्चा माल ही लेंगे। सरकार भी उद्यमियों को थोड़ा सहयोग करे तो वोकल फॉर लोकल का नारा सार्थक होता दिखेगा।
- डॉ.आरिफ साबिर, उद्यमी
चीन से आने वाला मॉल सस्ता होता है। इसीलिए उद्यमी इसका प्रयोग करता है। बाजार में प्रतियोगिता होती है तो लोग यह नहीं देखते कि इसमें कच्चा माल चीन का है या देसी। सरकार को चीन के उत्पाद पर अंकुश लगाना है तो उद्यमियों को सहूलियत देना होगा। देश तभी सही अर्थों में आत्मनिर्भर बनेगा।
- किशन बथवाल, उद्यमी
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