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बुंदेलखंड के दशरथ मांझी 'कृष्णा कोल' का खोदा कुंआ तक नहीं बचा पाया प्रशासन
कहते हैं जब कोई विरासत हमारे हाथ लगती हैं तो उसे सहेजकर संभालकर रखना चाहिए। लेकिन अगर हम उसे भी संभाल न पाएं तो कितना शर्मनाक होगा वो दृश्य। जी हां ऐसा ही कुछ हुआ है बुंदेलखंड के दशरथ मांझी कृष्णा कोल के खोदे कुएं के साथ।
अनुज हनुमत
चित्रकूट: कहते हैं जब कोई विरासत हमारे हाथ लगती हैं तो उसे सहेजकर संभालकर रखना चाहिए। लेकिन अगर हम उसे भी संभाल न पाएं तो कितना शर्मनाक होगा वो दृश्य। जी हां ऐसा ही कुछ हुआ है बुंदेलखंड के दशरथ मांझी कृष्णा कोल के खोदे कुएं के साथ। मानिकपुर विकासखण्ड के गढ़चपा ग्राम पंचायत अंतर्गत बड़ाहार गांव निवासी कृष्णा कोल ने गांव की पेयजल समस्या को खत्म करने के लिए स्वयं के भागीरथ प्रयास से एक कुंआ खोदा था। इस कुआं को उन्होंने युवावस्था में कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया था। जिससे पेयजल समस्या से काफी हद तक गांव वालों को निजात मिली।
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खबर चलने के बाद जब प्रशासन को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने कृष्णा कोल को सम्मानित किया और ये एलान किया कि उनका ये भागीरथ प्रयास असफल नहीं होगा। लेकिन न तो अब तक गांव में मूलभूत समस्याएं खत्म हुईं और न ही प्रशासन कृष्णा कोल के खोदे कुए को बचा सका।
क्या हम अपने बुजुर्ग के इस भागीरथ प्रयास से बनी विरासत को सहेजकर तक नहीं रख सकते। मेरा छत मेरा पानी अभियान जिला प्रशासन द्वारा चला गया जिसके परिणामस्वरूप कई व्यापक परिवर्तन देखने को मिले। लेकिन क्या ऐसी स्थिति में हम कृष्णा कोल द्वारा खोदे गए कुए को सरंक्षित कर उसे मॉडल के रूप में समाज मे प्रस्तुत नहीं कर सकते थे?
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शायद कर सकते थे लेकिन प्रशासन के किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति इस पर ध्यान नहीं दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि आज कृष्णा कोल की दशकों की मेहनत ढह गई और खराब हो गई। एक ऐसा कुआं जिसे बूंद-बूंद पानी की प्यास से सूख रहे हलक वाले व्यक्तियों में से किसी एक के द्वारा खोदा गया था। इस सम्बंध में जब हमने कृष्णा कोल से बात की तो उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि भैया पूरी मेहनत लगाकर खोदे रहे हउं एही लेकिन अब इहौ भंट गा। जिंदगी भर के मेहनत का अगर कौनो ध्यान धै लेत तो शाइद कुछ मदद मिलत।
अगर हम बड़ाहार गांव की मौजूदा स्थिति की बात करें तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आजादी के बाद चौथी पीढ़ी ने आज तक स्कूल का मुंह नहीं देखा। इस गांव में स्वास्थ्य समस्याएं भी बहुत है। बच्चों में कुपोषण की समस्या है। गांव में सड़क नहीं है जिस कारण ग्रामीणों का शहर से कनेक्शन पूरी तरह कटा हुआ है। गांव में सिंचाई के साधनों की व्यवस्था नहीं है। गांव से युवा रोजगार की तलाश में पलायन कर शहर चले गए हैं। आज तक इस गांव में कभी कोई नेता नहीं गया न ही कोई अधिकारी। गांव वालों ने आज तक लेखपाल की शक्ल नहीं देखी।
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मौजूदा प्रधान रामेंद्र पांडेय बताते हैं कि उन्होंने इस पंचवर्षीय चुनाव जीतने के बाद सबसे पहला कदम बड़ाहार गाव में ही रखा। इस गांव में ज्यादातर लोगों को आवास मुहैया कराया गया है। सौभाग्य योजना के अंर्तगत बिजली पहुंच गई है।
मनरेगा के तहत गांव के अंदर मिट्टी की सड़क भी बनवा दी गई है। बाकी के कामों के लिए अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। उन्होंने कृष्णा कोल द्वारा खोदे गए कुंए के बारे में कहा कि इसका उन्हें इनाम मिलना चाहिए और ये दुखद है कि उनके द्वारा खोदा गया कुआं आज ढह गया।
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वहीं जब इस सम्बंध में मानिकपुर के बीडीओ डीके अग्रवाल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कृष्णा कोल के द्वारा खोदे गए कुएं का निरीक्षण कर उसे सहेजने की पुनः कोशिश की जाएगी। उन्होंने कहा कि बड़ाहार गांव में जो भी समस्याएं हैं उसके जल्द से जल्द निराकरण के लिए टीम गठित कर उन्हें गांव भेजा जायेगा। आशा है जल्द ही ये गांव बाकी के सभी गांवो जैसे विकास की मुख्य धारा से जुड़ा होगा। आपके द्वारा मामला संज्ञान में आया उसके लिए धन्यवाद।
इसी सम्बन्ध में जब उपजिलाधिकारी संगमलाल गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मामला हमारे संज्ञान में है और इस गांव की समस्यायों के निराकरण हेतु प्रयास किये जा रहे हैं और जल्द ही टीमें गांव जाएंगी।