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रवि किशन के पिता के वो लम्हें जिसको याद कर भर आती हैं आखें
जहां पूरा देश एक तरफ हर्षोल्लास में डूबा हुआ था। वही मंगलवार की रात सदर सांसद गोरखपुर रवि किशन के घर मातम छाया रहा। अचानक ही सांसद रवि किशन को पिता श्याम नारायण शुक्ला के निधन की सूचना मिलते ही पूरा परिवार शोक में डूब गया।
गौरव त्रिपाठी
गोरखपुर: जहां पूरा देश एक तरफ हर्षोल्लास में डूबा हुआ था। वही मंगलवार की रात सदर सांसद गोरखपुर रवि किशन के घर मातम छाया रहा। अचानक ही सांसद रवि किशन को पिता श्याम नारायण शुक्ला के निधन की सूचना मिलते ही पूरा परिवार शोक में डूब गया। साथ ही फोन पर लोगों द्वारा शोक संदेश व हिम्मत बढ़ाने वालों का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। सूचना मिलते ही पूरे क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई।
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अंतिम इच्छा हुई पूरी
बताते चलें कि गोरखपुर सांसद रवि किशन के 92 वर्षीय पिता श्याम नारायण शुक्ल विगत कई माह से बीमार चल रहे थे। जहां उनका मुंबई में इलाज चल रहा था। तबीयत में सुधार नहीं होते देख पिता ने वाराणसी में अपना शरीर त्यागने की अंतिम इच्छा जताई। जिस पर विगत 15 दिन पहले उनके पिता को वाराणसी लाया गया। मंगलवार की रात करीब 11 बजे उनका निधन हो गया। वही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सांसद रवि किशन के पिता के निधन शोक व्यक्त किया है। गोरखनाथ मंदिर के सूत्रों द्वारा पता चला है,की मुख्यमंत्री उनके पिता के ब्रम्हभोज से पहले उनके घर जाकर मिल सकते है।
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सांसद रवि किशन के पिता स्वर्गीय श्याम नारायण शुक्ला शिव के परम भक्त थे इसलिए उन्होंने वाराणसी में ही अपनी देह त्यागने की इच्छा जताई थी। सदर सांसद ने अपने जीवन में पिता को ही अपना गुरु माना इसके अलावा उन्होंने किसी को अपना गुरु नहीं माना। पिता के ही सिखाएं मार्ग पर आगे बढ़ते हुए रवि किशन ने नया मुकाम हासिल किया।
पिता की वो यादें जिसको याद कर भर आती हैं आखें
बताते चलें कि रवि के पिता स्वर्गीय श्याम नारायण शुक्ला ने कभी भोजपुरी भाषा को नहीं छोड़ा सांसद प्रतिनिधि पवन दुबे ने बताया कि जब भी हम उनसे मुम्बई मिलने जाते थे तो वो हमसे भोजपुरी भाषा में ही बात करते थे।गांव के लोगो के बारे में हमेशा पूछते रहते थे।यही नही गांव से चना गुड़ और चावल का भूजा ले आने की बात करते थे,कहते थे जो गांव के गुड़ और भुजा में बात है,वह कही नहीं है। मूल रूप से वह जौनपुर जिले के केराकत गांव के रहने वाले थे। उनका अंतिम संस्कार बुधवार को वाराणसी में किया गया।
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