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भूले-बिसरों का तर्पण करती बेटियां, 15 दिन की ये परंपरा है 'महाबुलिया'

हमीरपुर जनपद के भरुआ सुमेरपुर श्राद्ध पक्ष में बुंदेलखंड में भूले बिसरे को भी तर्पण करने की परंपरा विद्यमान है. इस परंपरा को कुंवारी कन्याएं निभाती है. यह 15 दिन तक शाम के समय नदी सरोवरों में जाकर फूलों के माध्यम से भूले बिसरों का तर्पण करती हैं.

Newstrack
Published on: 13 Sept 2020 7:17 PM IST
भूले-बिसरों का तर्पण करती बेटियां, 15 दिन की ये परंपरा है महाबुलिया
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हमीरपुर जनपद के भरुआ सुमेरपुर श्राद्ध पक्ष में बुंदेलखंड में भूले बिसरे को भी तर्पण करने की परंपरा विद्यमान है. इस परंपरा को कुंवारी कन्याएं निभाती है. यह 15 दिन तक शाम के समय नदी सरोवरों में जाकर फूलों के माध्यम से भूले बिसरों का तर्पण करती हैं.

हमीरपुर: हमीरपुर जनपद के भरुआ सुमेरपुर श्राद्ध पक्ष में बुंदेलखंड में भूले बिसरे को भी तर्पण करने की परंपरा विद्यमान है. इस परंपरा को कुंवारी कन्याएं निभाती है. यह 15 दिन तक शाम के समय नदी सरोवरों में जाकर फूलों के माध्यम से भूले बिसरों का तर्पण करती हैं. भूले बिसरे लोगों का तर्पण द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने कंस वध के बाद किया था. इसके प्रमाण पुराणों में भी मिलते हैं. सनातन धर्म में तर्पण का विशेष महत्व है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में एक पखवारे तक पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है.

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महाबुलिया परंपरा

यह परंपरा पूरे देश में मनाई जाती है. लेकिन बुंदेलखंड की जमीन पर कुंवारी कन्याएं 15 दिन तक भूले बिसरों का तर्पण करती हैं. स्थानीय भाषा में इस परंपरा को महाबुलिया कहा जाता है.

Shraddha Paksha फोटो-सोशल मीडिया

शाम के समय कुंवारी कन्याएं तरह-तरह के फूल एकत्र करके घरों के दरवाजों पर गाय के गोबर से लिपाई करके आटे से चौक बनाती है और मध्य मे एक कटीला झाड रखकर उसमें फूलों को पिरोने के बाद सुमधुर गीत गाते हुए नदी तालाबों में ले जाकर विसर्जित करती है.

अंतिम दिन अमावस्या को विशेष तर्पण किया जाता है. विशेष तरह के पकवानों के साथ अंतिम दिन भव्य ढंग से महाबुलिया को फूलों से पिरोया जाता है. गाजे बाजे के साथ बाद में आखिरी तर्पण किया जाता है.

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Shraddha Paksha फोटो-सोशल मीडिया

सैकड़ों नवजातों का वध

बुजुर्ग एम एल अवस्थी, कवि साहित्यकार नारायण प्रसाद रसिक, मुन्ना शर्मा आदि बताते हैं कि पुराणों में कंस वध के बाद भूले बिसरों का तर्पण भगवान श्री कृष्ण द्वारा किया गया था. क्योंकि उस समय कंस के आदेश पर उनके दूतों ने मथुरा सहित आसपास के गांव में पैदा होने वाले सैकड़ों नवजातों का वध किया था.

Shraddha Paksha फोटो-सोशल मीडिया

इसके बाद बुंदेलखंड की सरजमींं पर कुंंवारी कन्याओं ने भूले बिसरों को महाबुलिया के रुप में तर्पण का विधान शुरू किया. जो आज के आधुनिक युग में जगह-जगह विद्यमान है. ग्रामीण क्षेत्रों में इस परंपरा को उत्साह के साथ मनाया जाता है.

वहीं दूसरी तरफ कुछ जानकारों का मानना है कि यह परंपरा बेटों के साथ बेटियों द्वारा इसलिए मनाई जाती है कि वह शादी के बाद पराई हो जाती हैं और तर्पण की परंपरा से वंचित हो जाती है. इसलिए शादी के पूर्व वह भी महाबुलिया के माध्यम से अपने पूर्वजों का तर्पण करती है।

रिपोर्ट-रवींद्र सिंह

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