TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

हरियाणा में हुड्डा ने दिया खट्टर को झटका

हरियाणा में अबकी बार 75 पार के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरी भाजपा वैसा दमदार प्रदर्शन नहीं कर सकी जैसी उम्मीद की जा रही थी। दूसरी ओर कांग्रेस को इस बार चुनावी मैदान में कमजोर खिलाड़ी माना जा रहा था मगर उसने दमदार प्रदर्शन से सियासी पंडितों को भी चौंका दिया।

Dharmendra kumar
Published on: 24 Oct 2019 9:57 PM IST
हरियाणा में हुड्डा ने दिया खट्टर को झटका
X

नई दिल्ली: हरियाणा में अबकी बार 75 पार के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरी भाजपा वैसा दमदार प्रदर्शन नहीं कर सकी जैसी उम्मीद की जा रही थी। दूसरी ओर कांग्रेस को इस बार चुनावी मैदान में कमजोर खिलाड़ी माना जा रहा था मगर उसने दमदार प्रदर्शन से सियासी पंडितों को भी चौंका दिया। चुनावी नतीजों के मुताबिक भाजपा 40 सीटें जीतकर बहुमत से दूर रह गई जबकि कांग्रेस 31 सीटें जीतने में कामयाब रही।

2014 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो भाजपा की सात सीटें घट गईं जबकि कांग्रेस की सोलह सीटें बढ़ गई हैं। जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला दस सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका में आ गए। इन नतीजों के बाद सियासी जानकार तो यहां तक कहने लगे हैं कि यदि कांग्रेस ने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को अंतिम ओवरों में न उतारकर शुरुआत से खेलने का मौका दिया होता तो नतीजे कुछ और भी हो सकते थे।

यह भी पढ़ें...हरियाणा-महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों पर मोदी-शाह की ललकार

अब हरियाणा की नई सरकार को लेकर जोरदार जोड़तोड़ का दौर शुरू हो गया है। नई सरकार के गठन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जेजेपी की होगी। जेजेपी के नेता दुष्यंत चौटाला ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। हालांकि यह माना जा रहा है कि भाजपा जेजेपी के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब होगी। राज्य में त्रिशंकु विधानसभा के चलते जोड़-तोड़ की राजनीति तेज हो गई है। राज्य में सरकार बनाने की गणित में भाजपा आगे दिख रही है। दो निर्दलीय विधायकों रणजीत सिंह व गोपाल कांडा के भाजपा के साथ आने की चर्चा है। दोनों विधायकों के दिल्ली जाने की खबर है। दोनों दिल्ली गए हैं। करीब पांच और निर्दलीय विधायकों के भाजपा के संपर्क में होने की बात कही जा रही है।

यह भी पढ़ें...इस सीट पर रितेश देशमुख के भाई ने ‘नोटा’ को हराया, तीसरे स्थान पर रही शिवसेना

राष्ट्रवाद पर भारी पड़े स्थानीय मुद्दे

मई में हुए लोकसभा चुनाव में हरियाणा के मतदाताओं ने भाजपा की झोली वोटों से भर दी थी। भाजपा को मतदाताओं का इतना जबर्दस्त समर्थन मिला था कि भाजपा को देश की तीन सबसे बड़ी जीत हरियाणा में ही मिली थी मगर तीन महीने बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा का बहुमत से दूर होना निश्चय ही चौंकाने वाला है। हालांकि इसका एक बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि जहां लोकसभा चुनाव में लोगों ने मोदी के चेहरे पर भाजपा के पक्ष में जमकर मतदान किया वहीं विधानसभा चुनाव में खट्टर सरकार की नाकामी के खिलाफ गुस्सा भी दिखाया। खट्टर तो चुनाव जीत गए मगर उनके सात मंत्री चुनाव हार गए।

यह भी पढ़ें...उप्र विधानसभा उप-चुनाव! भाजपा ने लहराया परचम, देखें पूरी सूची

भाजपा को भारी जीत न मिलने का एक बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि लोगों ने इस बार भाजपा के राष्ट्रवाद के एजेंडे को नकरारकर स्थानीय मुद्दों के आधार पर मतदान किया। राष्ट्रवाद पर बिजली, सडक़, पानी और रोजगार जैसे मुद्दे भारी पड़े। यही कारण है कि भाजपा इस बार अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी।

कांग्रेस आलाकमान की बड़ी गलती

हरियाणा के चुनाव नतीजों से साफ है कि कांग्रेस के पिछडऩे के लिए काफी हद तक कांग्रेस का आलाकमान भी जिम्मेदार है। राज्य कांग्रेस में अशोक तंवर और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बीच चल रही खींचतान को खत्म करने के लिए नेतृत्व ने फैसला लेने में काफी देर कर दी। कांग्रेस आलाकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हरियाणा में चेहरा बनाने और कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला विधानसभा चुनाव ऐलान से महज 15 दिन पहले लिया। जानकारों का मानना है कि सोनिया गांधी पार्टी और पुत्र राहुल गांधी के मोह में फंसी रही, जिसके चलते उन्होंने हुड्डा पर भरोसा जताने में काफी देर कर दी।

यह भी पढ़ें...18 राज्यों की 53 सीटों पर उपचुनाव: जानिए कौन जीता, कौन हारा

2014 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही हुड्डा हरियाणा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक तंवर को हटाने की मांग करते रहे, लेकिन तंवर के राहुल गांधी का करीबी होने के चलते कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इसे लगातार नजरअंदाज करता रहा। विधानसभा चुनाव सिर पर आ जाने पर हुड्डा ने रोहतक में रैली करके तंवर को हटाने के लिए कांग्रेस आलाकमान को अल्टीमेटम तक दे दिया। इसके बाद ही तंवर को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर कुमारी शैलजा को पार्टी की कमान सौंपी गई और हुड्डा को सीएलपी लीडर और हरियाणा में कांग्रेस का चेहरा बनाया गया। ऐसे में सियासी जानकारों का मानना है कि अगर कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा को कमान और पहले सौंप दी होती तो हरियाणा के नतीजे कुछ और ही होते।

शाह की फटकार पर प्रदेश अध्यक्ष का इस्तीफा

अमित शाह के फटकार लगाने के बाद भाजपा के प्रदेश सुभाष बराला ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। बराला को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उन्हें जाटों को साधने की जिम्मेदारी दी गई थी मगर वे अपनी खुद की टोहना सीट तक नहीं बचा सके। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के गैर जाट होने के कारण जाटों को साधे रखने के लिहाज से जाट बिरादरी से आने वाले बराला को अध्यक्ष पद पर बिठाया गया था। बराला ने हरियाणा में पार्टी के मनमुताबिक नतीजे नहीं आने के बाद इसकी जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी हाईकमान को इस्तीफा सौंप दिया।

यह भी पढ़ें...सरकार बनाने का संकेत: जाने बीजेपी के चाणक्य ने क्या कहा

जानकारों के मुताबिक बराला ने यह कदम पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के जोरदार फटकार लगाने के बाद उठाया। पार्टी को उम्मीद थी कि जाट चेहरा बराला का शीर्ष पर होना प्रदेश के 28 फीसदी जाट वोटरों को भाजपा के साथ बनाए रखने में सहायक होगा, लेकिन बराला ऐसा करने में नाकामयाब रहे। हालत यह हो गई कि जिन बराला के कंधों पर पूरे प्रदेश के जाटों को साधने की जिम्मेदारी थी, वह अपने क्षेत्र के मतदाताओं तक को नहीं साध सके। बराला को जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के देवेंद्र सिंह बबली ने हराया। एक अन्य प्रमुख जाट नेता कैप्टन अभिमन्यु भी चुनाव हार गए।



\
Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

Next Story