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राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों का अहम योगदानः सीएम योगी आदित्यनाथ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस संस्थान से प्रशिक्षण ले रहे सभी प्रशिक्षुगण को भविष्य की शुभकामनाएं दी। उन्होंने बताया कि राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महान अवेद्यनाथ जी के शताब्दी वर्ष के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अंतर्गत दिग्विजयनाथ एलटी प्रशिक्षण महाविद्यालय प्रशिक्षण देता है।
गोरखपुरः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिग्विजयनाथ एलटी प्रशिक्षण महाविद्यालय में "भारतीय संस्कृति के सांस्कृतिक मूल्य: महंत अवेद्यनाथ" विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि भाग लिए। यहां पर उन्होंने नवनिर्मित वाचनालय भवन और अभ्युत्थान पत्रिका का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने प्रशिक्षण महाविद्यालयों को स्किल डेवलपमेंट कोर्स कराने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि देश और विदेश में शिक्षकों की बेहद मांग है। वे चाहे तो देश और विदेश में भी नौकरी पाकर परिवार और देश को समृद्ध बना सकते हैं।
भारतीय संस्कृति के मूल्य ही उसके सांस्कृतिक मूल्य है
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस संस्थान से प्रशिक्षण ले रहे सभी प्रशिक्षुगण को भविष्य की शुभकामनाएं दी। उन्होंने बताया कि राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महान अवेद्यनाथ जी के शताब्दी वर्ष के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अंतर्गत दिग्विजयनाथ एलटी प्रशिक्षण महाविद्यालय प्रशिक्षण देता है।
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भारतीय संस्कृति के मूल्य ही उसके सांस्कृतिक मूल्य है।भारतीय संस्कृति अनेक समस्याओं को झेलते हुए भी दुनिया के सामने सीना ताने खड़ी है। दुनिया की कोई ऐसी शक्ति नहीं है, जिसने मुसीबत में भारत की शरण न ली हो। अनेकता में एकता इसकी पहचान है। सत्य एक है उसे बोलने और समझने की सोच अलग हो सकती है।
यही बात महंत अवेद्यनाथ भी कहते थे।वे भारतीय संस्कृति और सनातन हिन्दू धर्म के लिए समर्पित रहे हैं।उन्होंने एक प्रसंग का जिक्र करते हुए बताया कि उन्होंने ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ से एक बार पूछा था, तो उन्होंने बताया था कि जब उनकी उम्र 5 वर्ष की थी, तो उनके माता-पिता और 10 वर्ष की आयु में लालन-पालन करने वाली दादी का भी निधन हो गया।छोटी बहन का भी निधन हो गया।उसके बाद स्कूली शिक्षा लेने के बाद वे हरिद्वार गांव के एक लड़के के साथ निकल गए।गांव के लोग लड़के को वापस ले गए। उन्होंने एक आश्रम का सहारा ले लिया।उसी दौरान महंत दिग्विजयनाथ ने उन्हें शिष्य बना लिया।
मजिस्ट्रेट के सामने अपने रिश्तेदारों को जमीन लिख दिए
चकबंदी के समय गांव के लोग आए और संपत्ति के बंटवारे के बारे में बुलाए। वे 17-18 साल के थे। मजिस्ट्रेट के सामने अपने रिश्तेदारों को जमीन लिख दिए। 1940 की ये बात है।इसके बाद वे कभी अपनी जन्मभूमि नहीं जा पाए।मैं अक्सर देखता हूँ। भाई-भाई और पिता-पुत्र में किस तरह संपत्ति के लिए विवाद और खूनी संघर्ष होते हैं। लेकिन उनके भीतर ऐसा भाव नहीं था।उन्होंने मजिस्ट्रेट के सामने कहा कि जो मैं आज कह रहा हूं, सालों बाद भी यही कहूंगा। आप जमीन इन लोगों के नाम कर दीजिए।
महंत अवेद्यनाथ ने इन सबका मोह छोड़कर सनातन हिन्दू धर्म, शिक्षा के साथ राजनीति के लिये खुद को समर्पित कर दिया।लोग कहते हैं कि भारत में जाति-धर्म के नाम पर विवाद होते हैं। लेकिन, उन्होंने सभी धर्म के लोगों का बराबर सम्मान किया। रामजन्म भूमि आंदोलन के समय सभी संतों ने उन्हें एकमत से अध्यक्ष बनाये जाने को कहा था।
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किसी संत ने कहा था कि वेद और ऋचाओं का पाठ महिलाओं और दलितों को नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा की वेदों की सबसे अधिक ऋचाएं हरिजन ऋषियों ने लिखी हैं। सहभोज का उन्होंने अभियान चलाया।उनके परहेज होते थे। लेकिन वे कहीं जाते थे, तो उसे भूलकर साफ-सफाई से बने सहभोज में सम्मिलत हो जाते थे।
मुस्लिम बच्चों को बुलाकर भोजन कराया
गोरखनाथ मंदिर में भी सहभोज होता है। कोई भी व्यक्ति पंगत में बैठकर भोजन कर सकता है। उन्होंने बताया कि एक बार की बात है, गोरखनाथ मंदिर से जूते-चप्पल चोरी हो रहे थे। छोटे बच्चे पकड़े गए थे। उन्हें पढ़ने की बात कहकर भगा दिया। पीछे के रास्ते भंडारे में गया, तो मैंने कहा भागो यहां से। बड़े महाराज जी ने पूछा तो मैंने बताया कि कुछ मुस्लिम बच्चे चोरी कर रहे थे। उसके बाद वे भंडारे में बैठ गए थे। उन्होंने कहा कि ये भंडारा बाबा गोरखनाथ का प्रसाद है। उन्होंने बच्चों को बुलाने के लिए कहा। उन बच्चों को बुलाकर भोजन कराया।
भारतीय संस्कृति सर्वे भवन्तु सुखिन: का संदेश देती है।एक ही पंगत में बैठ कर हर जाति-धर्म के लोग भोजन करते हैं। एक बार बिहार से 10-12 साल के बच्चे को कुष्ठ होने के कारण उसे घर से निकाल दिया गया।वो बच्चा गोरखनाथ मंदिर में आया। उन्होंने उसका संस्कृत विद्यालय में एडमिशन कराया। आज वो वहां पर शिक्षक हैं और संस्कृत के विद्वान भी।
जब वे बीमार होते थे। बाद में मैं उनकी सुरक्षा को लेकर लोगों को रोकता था। वो उन्हें लोगों को मिलने से रोकने से मना करते थे और कहते थे कि तुम उन्हें क्यों नहीं मिलने दे रहे हो। उसके पीछे एक कारण ये भी था कि लोग अपने मन से दवाएं ले आते थे। लेकिन, उसे भी वे सकारात्मक रूप से स्वीकार करते रहे हैं।
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भारतीय संस्कृति में सकारात्मकता के लिए ही जाना जाता है। नकारात्मकता की जगह नहीं है। भारतीय संस्कृति का सकारात्मक दृष्टिकोण रहा है।इसका उदाहरण आप गोरखपीठ में अलग-अलग जाति-धर्म और मजहब के नाथ सम्प्रदाय के संत को देख सकते हैं। यूपी के अंदर इस विद्यालय की एक अलग छवि रही है।1970 में ये शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए पहचान रखता रहा है।
शिक्षण-प्रशिक्षण के केन्द्र तो खुले हैं, लेकिन गुणवत्ता में कमी
हम लोगों ने बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत चयन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। बहुत खराब तस्वीर पूरे प्रदेश में हमारे सामने आई है। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद 70 प्रतिशत शिक्षक किसी पात्रता परीक्षा में फेल हो जाए।ये अपने आपमें एक चैलेंज है। शिक्षण-प्रशिक्षण के केन्द्र तो खुले हैं, लेकिन गुणवत्ता में कमी भी आई है। ये उन शिक्षकों को देखना होगा जो भावी शिक्षक हैं। जो शिक्षा के क्षेत्र में अपने भविष्य को संवारना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लकीर के फकीर बनने की प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए।
बहुत बड़ा क्षेत्र हैं। योग्य स्नातक अलग-अलग राज्यों में शिक्षक यूपी से गए हुए हैं। बहुत से वहीं बस गए। कुछ वापस भी आए।योगी ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की अहम भूमिका है। इस संस्थान को भी इसके लिए कार्य करना होगा। स्किल डेवलपमेंट के लिए क्या आप अलग सेल बनाएंगे? देश और विदेश में शिक्षकों की बहुत मांग है।
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ये भी तय करना होगा कि उस देश की भाषा क्या है, जहां वो जाना चाहता है। इसके लिए एक सर्टिफिकेट कोर्स करवाना होगा। शिक्षकों को प्रशिक्षण के साथ तीन-चार माह में एक विदेशी भाषा को स्किल डेवलपमेंट में सीखना होगा।
बाहर रुपये कमाकर आप अपने परिवार और खुद को भी समृद्ध करेगा और देश को भी। भूटान, जापान, नेपाल जैसे देशों को चुन सकते हैं। क्योंकि भगवान बुद्ध से उनका जुड़ाव भी है। इन बातों का हम ध्यान देंगे तो बड़ी संख्या में मैंन पावर हम बाहर भेज सकते हैं। भारत को समृद्ध बना सकते हैं।