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धर्म नगरी काशी में फिर जगी मेट्रो की उम्मीद

raghvendra
Published on: 1 Nov 2019 7:18 AM GMT
धर्म नगरी काशी में फिर जगी मेट्रो की उम्मीद
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: धर्म नगरी और सांस्कृतिक नगरी के तौर पर पहचान रखने वाली काशी पिछले छह सालों से देश के वीवीआइपी शहरों में शुमार हो चुकी है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां से नुमाइंदगी करते हैं, लिहाजा हर किसी की नजर शहर के विकास कार्यों पर लगी रहती है। पिछले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने इस पुरातन शहर के कायाकल्प की भरपूर कोशिश की, लेकिन कभी नकारा नौकरशाही तो कभी शहर की संरचना के कारण अड़चने आती रहीं। इन्हीं में से एक परियोजना है मेट्रो का संचालन।

मोदी काशीवासियों को मेट्रो का तोहफा देना चाहते हैं, लेकिन शहर की बनावट इसकी इजाजत नहीं देती। तमाम कोशिशों के बावजूद मेट्रो संचालन का ख्वाब परवान नहीं चढ़ सका। मेट्रोमैन के नाम से मशहूर श्रीधरन ने भी कोशिश तो की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। लेकिन मोदी के दूसरे कार्यकाल में एक बार फिर से मेट्रो प्रोजेक्ट ने जोर पकड़ लिया है। हालांकि इस बार इस प्रोजेक्ट में थोड़ा बदलाव किया गया है। अब काशी में लाइट मेट्रो संचालन का खाका तैयार किया गया है।

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क्या साकार हो पाएगा मेट्रो का सपना

वाराणसी आने वाले किसी भी शख्स से अगर शहर की सबसे बड़ी परेशानी पूछी जाए तो उसकी जुबान पर सबसे पहले यहां की सडक़ों पर लगने वाला जाम आता है। शहर के किसी भी कोने में जाइए, जाम की समस्या बनी रहती है। ऐसा नहीं है कि स्थानीय प्रशासन जाम खत्म करने की कोशिश नहीं करता, लेकिन संकरी सडक़ों पर वाहनों के अत्यधिक दवाब से पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है। ऐसे में जरूरी है कि सडक़ों पर वाहनों के दवाब को कम करने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दिया जाए। इसी उम्मीद के साथ प्रदेश सरकार ने यूपी में लखनऊ के बाद कानपुर, आगरा, गोरखपुर के साथ वाराणसी में मेट्रो संचालन का खाका तैयार किया था। लेकिन तकनीकी परेशानी और शहर की बनावट को देखते हुए वाराणसी में मेट्रो संचालन प्रोजक्ट को रद्द कर दिया गया। हालांकि दो साल बाद एक बार फिर से शहर में मेट्रो संचालन को लेकर हलचल तेज हो गई है।

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अब प्रदेश सरकार मोदी के संसदीय क्षेत्र के लोगों को लाइट मेट्रो का तोहफा देने जा रही है। खबरों के मुताबिक प्रोजेक्ट को लेकर लखनऊ में हलचल तेज है। सर्वे और डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने वाली संस्था रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस ने संभावना तलाश कर इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है। अब अर्बन ट्रांसपोर्ट को लेकर लाइट मेट्रो के प्रस्ताव का लखनऊ में प्रेजेंटेशन होना शेष है। वहां से सहमति मिलने के बाद प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेजा जाएगा।

कम खर्च और ज्यादा इनकम की तैयारी

वाराणसी में प्रस्तावित लाइट मेट्रो के लिए जो खाका तैयार किया गया है, उसके मुताबिक कम खर्च में ज्यादा मुनाफे की तैयारी है। माना जा रहा है कि पिछली बार मेट्रो को लेकर जो डीपीआर में खर्च दिखाया गया था, इस बार उसकी आधी रकम लागत पर आएगी। फिलहाल केंद्र सरकार के तकनीकी विशेषज्ञ व्यय और आय का आंकलन कर रहे हैं। उसके बाद प्रस्ताव के सापेक्ष बजट पास किया जाएगा। फिलहाल लाइट मेट्रो के लिए जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसमें कुछ आपत्तियों के बाद संशोधन किया जा रहा है। इसके तहत मेट्रो संचालन के साथ ही रोड और वाटर बेस्ड प्लान बनाने को कहा गया है।

संशोधित प्लान तैयार होने के बाद ही डीपीआर तैयार की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक मौजूदा संशोधन में कुछ वक्त लग सकता है, लेकिन इस बार मेट्रो संचालन को लेकर ठोस पहल की गई है। इसके पहले जो डीपीआर तैयार की गई थी, वह शहर की बनावट के हिसाब से फिट नहीं हो पा रही थी। साल 2015 में मेट्रो के लिए लगभग 20 हजार करोड़ रुपये की लागत निर्धारित की गई थी, लेकिन लाइट मेट्रो पर 7 से 8 हजार करोड़ रुपये लागत आने का अनुमान है।

आसानी से तैयार होगी लाइट मेट्रो

बनारस जैसे संकरे और पुराने शहर के लिए लाइट मेट्रो एक बेहतर ऑप्शन माना जा रहा है। प्रचलित मेट्रो की अपेक्षा इसे बना पाना भी आसान होगा। फिलहाल जो योजना तैयार की जा रही है उसके मुताबिक शहर की सडक़ों पर छोटे-छोटे पिलर बनाए जाएंगे, जिस पर मेट्रो दौड़ेगी। लाइट मेट्रो की जो डिजाइन तैयार की जाएगी उसमें अधिकतम 4 बोगियां लगी होंगी। जबकि आमतौर पर मेट्रो में 7 से 9 बोगियां होती हैं। योजना में बदलाव करते हुए अब मेट्रो के लिए दो के बजाय सिर्फ एक कॉरिडोर बनाया जाएगा। इसके अलावा स्टेशन बनाने के लिए कम जगह की जरूरत पड़ेगी। शहर के अंदरूनी हिस्से के साथ ही बाहरी इलाकों में भी इसके संचालन की संभावना बढ़ गई है। अर्बन प्लानर विजय बहादुर सिंह बताते हैं कि रूटीन मेट्रो की अपेक्षा लाइट मेट्रो बनाना आसान होगा। शहर की संकरी सडक़ों पर वाहनों का दवाब बहुत अधिक होता है। ऐसे में हैवी पिलर बना पाना बेहद कठिन काम होता। दूसरी तरफ पिलर बनाने में उतनी मुश्किल नहीं आएगी।

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फिलहाल मेट्रो संचालन के लिए कैबिनेट के यूपी मेट्रो रेल कारपोरेशन नाम से अलग एकल विभाग के गठन के फैसले से उम्मीदें जाग गई हैं। अगर सबकुछ ठीक रहा तो काशी के आधा दर्जन घाटों को भी मेट्रो से जोड़ा जाएगा। काशी स्टेशन पर प्रस्तावित इंटर मॉडल स्टेशन से भी मेट्रो को जोडऩे के लिए सर्वे किया गया है। सामने घाट में भी स्टेशन और टर्मिनल बनाने का प्रस्ताव है।

वाराणसी के लिए क्यों जरूरी है मेट्रो

धर्म और प्राचीन नगरी होने के कारण वाराणसी में प्रतिदिन औसतन 30 से 40 हजार देशी और विदेशी सैलानी और श्रद्धालु आते हैं। लेकिन जब इन सैलानियों का सामना शहर के बेतरतीब जाम से होता है तो उनके मन में काशी के विकास को लेकर गलत धारणा बनती है। दूसरे शब्दों में कहें तो बनारस अब जाम के लिए कुख्यात हो चुका है। इस अनचाहे तगमे को हटाने के लिए जरूरी हो गया है कि जाम की समस्या को खत्म किया जाए। अर्बन प्लानर विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि वाराणसी में जाम की समस्या तब तक खत्म नहीं हो सकती जब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा ना दिया जाए। अब सवाल है कि क्या शहर की सडक़ों पर बसें चलाई जा सकती हैं? फिलहाल शहर की बनावट और संकरी सडक़ों पर इसे चला पाना नहीं हैं, क्योंकि जिन सडक़ों पर छोटी कार और बाइक चलाने में परेशानी होती है, वहां बड़ी-बड़ी बसें चला पाना दुरूह स्वप्न की तरह ही है। सडक़ों की चौड़ाई बढ़ा पाना भी जिला प्रशासन के लिए हमेशा टेढ़ी खीर रहा है। ऐसे में मेट्रो एक बेहतर ऑप्शन है। लाइट मेट्रो के संचालन से आवागमन में काफी हद तक आसानी होगी। जाम से भी मुक्ति के साथ ही शहर में प्रदूषण भी कम होगा। इसके अलावा मेट्रो आने के बाद शहर का विकास तेजी से होगा और इसका फैलाव भी होगा।

मेट्रो को लेकर पहले ये थी योजना

वाराणसी में साल 2016 में मेट्रो का काम शुरू होना था। वर्ष 2021 से वाराणसी में मेट्रो रेल दौड़ाने की योजना थी। पूरी परियोजना पर 19256 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान था। प्रस्तावित योजना के मुताबिक 64 किमी लंबी मेट्रो ट्रेन परियोजना थी। डीपीआर में दो कॉरिडोर प्रस्तावित थे। पहले कॉरिडोर की लम्बाई 19.4 किमी थी। इसमें बीएचयू, तुलसी मानसमंदिर, रत्नाकर पार्क, दुर्गा मंदिर, काशीविश्वनाथ, बेनियाबाग, रथयात्रा, काशी विद्यापीठ, वाराणसी कैंट, नदेसर, कलेक्ट्रेट, भोजूबीर, गिलट बाजार, संगम कालोनी, शिवपुर, तरना व भेल का रुट तय हुआ था। इस तरह पहले कॉरिडोर के तहत इन स्थानों पर कुल 17 स्टेशन प्रस्तावित थे।

दूसरे कॉरिडोर की लंबाई 9.9 किमी रखी गई थी। इसके तहत बेनियाबाग, कोतवाली, मछोदरी पार्क, काशी बस डिपो, जलाली पट्टी, पंचकोशी, आशापुर, हवेलिया और सारनाथ सहित 9 स्थानों पर स्टेशन बनाए जाने का प्लान था। दूसरे कॉरिडोर में बेनियाबाग से जलालीपट्टी और हवेलिया से सारनाथ तक अंडरग्राउंड स्टेशन व पंचक्रोशी और आशापुर में उपरिगामी स्टेशन बनाया जाना प्रस्तावित किया गया था।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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