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Baba Aughadnath Temple: जानिए ऐतिहासिक बाबा औघड़नाथ मंदिर के बारे में, यहीं से हुई थी 1857 की क्रांति की शुरुआत

Baba Aughadnath Temple: मेरठ के कैंट क्षेत्र में स्थित बाबा औघड़नाथ मंदिर उत्तर भारत का प्रसिद्ध मंदिर है। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष भी यहीं से हुआ था।

Sushil Kumar
Published on: 15 July 2023 2:47 PM GMT
Baba Aughadnath Temple: जानिए ऐतिहासिक बाबा औघड़नाथ मंदिर के बारे में, यहीं से हुई थी 1857 की क्रांति की शुरुआत
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जानिए ऐतिहासिक बाबा औघड़नाथ मंदिर के बारे में: Photo- Newstrack

Baba Aughadnath Temple: हर साल लाखों कांवड़ियां और शिव भक्त महाशिवरात्रि पर गंगा जल चढ़ाते हैं। इनमें ऐसे कांवड़िए भी होते हैं जो बाबा को जल चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। इस प्रक्रिया को पूरा करने में इन लाखों कांवड़ियों को कई दिन लगते हैं जिसे वे एक यात्रा के रूप में पूरा करते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा के नाम से जाना जाता है।

मेरठ के कैंट क्षेत्र में स्थित बाबा औघड़नाथ मंदिर उत्तर भारत का प्रसिद्ध मंदिर है। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष भी यहीं से हुआ था। इस प्रसिद्ध सिद्धपीठ का इतिहास काफी पुराना है। बता दें कि औघड़नाथ मंदिर में हर साल लाखों कांवड़ियां और शिव भक्त महाशिवरात्रि पर गंगा जल चढ़ाते हैं। इनमें ऐसे कांवड़िए भी होते हैं जो बाबा को जल चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। इस प्रक्रिया को पूरा करने में इन लाखों कांवड़ियों को कई दिन लगते हैं जिसे वे एक यात्रा के रूप में पूरा करते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा के नाम से जाना जाता है।

सात समंदर पार भी फैली है इसकी महिमा-

बाबा औघड़नाथ मंदिर की महिमा केवल मेरठ के आसपास ही नहीं बल्कि सात समंदर पार भी फैली है। सफेद संगमरमर से बने मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जो शीघ्र फलप्रदाता है। भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले औघड़दानी शिवस्वरूप हैं। मंदिर के पुजारी श्रीधर त्रिपाठी का कहना है कि बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर का शिवलिंग बहुत ही छोटे आकार का है। यह शिवलिंग खुद प्रकट हुआ है। पुजारी के अनुसार 1944 तक यह मंदिर एक कुंए के रूप में था। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, मंदिर के सौंदर्यीकरण के बाद इसका रूप बदलता गया। मंदिर की ऊंचाई 75 फीट है। मंदिर में त्रियोदशी का जल शनिवार सुबह चार बजे से आरंभ हो गया है। वहीं, शिवरात्रि पर चतुर्दशी का जलाभिषेक शनिवार रात्रि 8ः09 बजे से आरंभ हो जाएगा।

सैनिकों को कुंए से पानी पीने से मना कर दिया था-

इस प्रसिद्ध सिद्धपीठ का इतिहास काफी पुराना है। अंग्रेजी शासनकाल में यहां स्वतंत्रता सेनानी आते, ठहरते व भारतीय पल्टनों के अधिकारियों से गुप्त मंत्रणा करते थे। यहां भारतीय सैनिक पानी पीने के लिए आते थे। बताते हैं कि मंदिर के पुजारियों ने भारतीय सैनिकों को यहां मौजूद कुंए से पानी पीने से मना कर दिया। क्योंकि, भारतीय सैनिक जिन कारतूस का इस्तेमाल अपनी बंदूकों में करते थे, उनमें गाय की चर्बी मिली होती थी। इसी के बाद यहां पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय सैनिकों में विद्रोह की ज्वाला भड़की थी। 1857 की क्रांति की शुरुआत यहीं से हुई थी।

मंदिर समिति से जुड़े पदाधिकारियों के अनुसार पहली बार इस मंदिर का 1944 में जीर्णोद्धार (रिनोवेशन) कराया गया। उसके बाद 1968 में जगतगुरु शंकराचार्य कृष्ण बोधाश्रम महाराज ने नए मंदिर का शिलान्यास कराया। मंदिर के बीच में भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की मूर्तियां हैं। मंदिर के उत्तरी दिशा की तरफ नंदी महाराज की मूर्ति लगी हुई है। बाबा औघड़नाथ मंदिर के पीछे सत्संग भवन बना हुआ है। यहां पर भजन कार्यक्रम किए जाते हैं। परिसर के अंदर ही भगवान कृष्ण और राधा जी का भी एक मंदिर है। बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर और राधा-कृष्ण मंदिर दोनों की ऊंचाई 75 फीट है। दोनों मंदिर सफेद रंग के संगमरमर से बने हुए हैं।

इसलिए पड़ा यह नाम-

इस मंदिर को काली पलटन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। जानकारों के अनुसार काली पलटन मंदिर का नाम यहां पर तैनात भारतीय सैनिकों की पलटन की वजह से पड़ा। अंग्रेज भारतीयों की पलटन को काली (ब्लैक) प्लाटून कहते थे, जो अपभ्रंश होकर काली पलटन कहलाने लगा। चूंकि इसी मंदिर के आसपास भारतीय सैनिकों की दो पैदल प्लाटूनें रहती थीं और भारतीय सिपाही यहां रोजाना पूजा-पाठ करने आते थे, इसलिए इस मंदिर की पहचान काली पलटन मंदिर के रूप में हो गई।

Sushil Kumar

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