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महाराष्ट्र से लौटे प्रवासियों को छलका दर्द, नमक रोटी खाएंगे, शहर नहीं जाएंगे
पांव में छाले माथे पर पसीना दिल में इस बात की खुशी कि ये रास्ता कभी तो घर पहुंचाएगा। हम जिस रास्ते जा रहे हैं वो हमें जरूर बीबी बच्चों से मिलाएगा। मेरा जीवन भी जरूरी है मेरे परिवार के लिए, मैं मेहनत करके कमाता हूं तब परिवार का पेट भरता है।
झांसी: पांव में छाले माथे पर पसीना दिल में इस बात की खुशी की ये रास्ता कभी तो घर पहुंचाएगा। हम जिस रास्ते जा रहे हैं वो हमें जरूर बीबी बच्चों से मिलाएगा। मेरा जीवन भी जरूरी है मेरे परिवार के लिए, मैं मेहनत करके कमाता हूं तब परिवार का पेट भरता है। इस लिए इस भयावह बीमारी से दूर मुझे अपने घर किसी भी हाल में पहुंचना है। यहां रहा तो कोरोना से पहले पेट की भूख मुझे मार डालेगी। ये दर्द भरी महाराष्ट्र से लौटे प्रवासियों की है। जो गुरुवार को किसी तरह झाँसी पहुंचे थे। सभी प्रवासियों ने एक सुर में कहा कि नमक रोटी खाएंगे दूसरे शहर अब नहीं जाएंगे।
कोरोना ने सबकुछ छुड़ाया
छतरपुर के मनहुंवा, नौगांव और बस स्टैंड के रहने वाले 1 दर्जन से अधिक लोग महाराष्ट्र में काम करते थे। जो आज स्टेशन पर एक साथ मिले तो एक दूसरे से अपना दर्द शेयर कर टेंशन दूर किए। ये सभी लोग लॉकडाउन में साधन ना मिलने पर कुछ दूर पैदल तथा कुछ दूर ट्रक में सफर करते हुए झाँसी पहुंचे थे। जिसके बाद रेलवे स्टेशन से अपने गांव के लिए रोडवेज बस पकड़ने पहुंचे थे।
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सभी ने अब अपना घर ना छोड़ने की खाई कसम
एमपी और महाराष्ट्र से जैसे तैसे पांच दिन बाद झांसी पहुंचे तो सभी प्रवासियों ने कसम खाई कि अब अपना शहर नहीं छोडेंगे। प्रवासियों ने बताया कि नमक रोटी खाएंगे, खेतों में कुदार चलाएंगे, लेकिन शहर नहीं जाएंगे। प्रवासियों ने बताया कि हम लोग अपने परिवार का भविष्य संवारने के लिए दूसरे प्रदेश कमाने गए थे। जब तक सब कुछ ठीक था, तब तो कुछ पैसे मिले और घर की जीविका चलती रही। लेकिन जैसे ही कोरोना महामारी ने कदम रखा, मालिकों ने अपना साया हमारे सर से हटा लिया। पिछले ढाई से 3 महीने से कंपनी मालिकों ने पैसा नहीं दिया था। इसके बाद यह कह कर निकाल दिया गया कि काम बंद हो गया अब तुम्हारा क्या काम है। इसके बाद जान बचाने के लिए मजदूर जैसे-तैसे अपने घर के लिए पैदल ही निकल पड़े।
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फर्नीचर का काम करता था सलीम
महाराष्ट्र से लौटे विकास ने बताया कि परिवार का खर्च निकालने के लिए मैं वहां गया था। महाराष्ट्र के सोलापुर में एक फर्नीचर की दुकान पर 8 हजार की नौकरी उसे मिली थी। जिसमें से पैसा बचाकर वो घर भेजता था। लेकिन जब काम बंद हुआ तो मालिक ने काम से निकाल दिया। अब मेरे पास रहने खाने के लिए भी कुछ नहीं था। ऐसे में मैंने घर लौटने का इरादा बनाया। अब तो जो भी करना है वो अपने शहर में रहकर ही करूंगा।
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मालिक को कोसता रहा रामकरण
कुछ ऐसी ही कहानी राम करण की है। विशाल यादव ने बताया कि वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए बाहर कमाने गया था। लेकिन अचानक से कोरोना बीमारी आने से सारे सपने टूट गए। वहीं जो काम भी किया था उसका भी मेहनताना मालिक ने नहीं दिया। विशाल यादव अपनी कहानी बताने के साथ-साथ अपने मालिक और किस्मत को कोस रहा था। उसने कहा कि एक हजार किलोमीटर की दूरी का सफर तय करने के बाद झांसी पहुंचे हैं। जिसे भूलाना बहुत मुश्किल होगा। वहीं घर पर बच्चे पूछेंगे कि पापा क्या लाए तो इसका क्या जवाब दूंगा।
रिपोर्ट: बीके कुश्वाहा