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ऊंचाडीह के नागेश्वर महादेव: औरंगजेब के सिपाहियों ने करना चाहा खंडित, हो गई मृत्यु
गाजीपुर जिला मुख्यालय से करीब पचास किलोमीटर व बाराचवर ब्लाक मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर की दुरी पर स्थित ऊंचाडीह के इसी गांव में दक्षिण तरफ करीब पचास मीटर की दुरी पर धरती के भू-गर्भ को चीरते हुए स्वयं निकले नागेश्वर महादेव की। जो एक सिद्धपीठ स्थान हैं।
रजनीश कुमार मिश्र
गाजीपुर (बाराचवर): चारो तरफ से प्राकृतिक सौंदर्यता के बीच में करीब चार सौ साल पहले धरती के भू-गर्भ को चीरते हुए निकले नागेश्वर महादेव का ये स्थान पौराणिक भी हैं। कहा जाता है, की ये जगह त्रेता युग में भगवान राम का रावण बध में साथ देनेवाले महा बलशाली राजा नल की गाढ़ी थी।
हम बात कर रहें है गाजीपुर जिला मुख्यालय से करीब पचास किलोमीटर व बाराचवर ब्लाक मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर की दुरी पर स्थित ऊंचाडीह के इसी गांव में दक्षिण तरफ करीब पचास मीटर की दुरी पर धरती के भू-गर्भ को चीरते हुए स्वयं निकले नागेश्वर महादेव की। जो एक सिद्धपीठ स्थान हैं।
चार सौ साल पहले धरती के भू-गर्भ से निकला था शिवलिंग
यहां के स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि करीब चार सौ साल पहले यहां जंगल था। यहीं पर आस पास के चरवाहे अपने पशुओं को लेकर आते थे। और छोड़ कर चले जाते थे, मंदिर के पुजारी पंडित उमाकांत शास्त्री बताते हैं की शाम को सभी पशु अपने आप अपने स्थान पर वापस चले जाते थे। लेकिन उन पशुओं में एक ऐसी गौ थी। जो वापस नहीं जाती थी। जो की एक जगह बैठी रहती थी। शाम को जब दुध देने का समय होता तब वो गौ एक झाड़ में जाकर खड़ी हो जाती है।
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कुछ समय बाद फिर अपने स्थान पर बैठ जाती थी। ये प्रक्रिया कुछ दिन चलने के बाद शाम को चरवाहे गौ को ढ़ुढ़ते हुए उस स्थान पहुंचा तो देखा की गौ एक झाड़ में खड़ी होकर अपना सारा दुध खुद ही निकाल दिया। तब चरवाहों को उस झाड़ में एक धरती से निकला हुआ शिवलिंग दिखाई दिया। उस शिवलिंग के अगल बगल कुछ सांप भी बैठे थे। तभी से इनका नाम नागेश्वर महादेव पड़ा। वहीं मंदिर के अन्य पुजारी नर्वदेश्वर बताते हैं की उस समय शिवलिंग के बगल मे तलाब था। जो आज भी गर्भगृह से सटा हुआ हैं।
ऊंचाडीह गांव प्राचीन काल में राजा नल का था गढ़ी जहां रखा जाता थासोना व अन्य समाग्री
बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं की त्रेतायुग में ये पुरा क्षेत्र राजा नल के राज्य में आता था। जब भी राजा नल इधर आते थे, तब इसी जगहं आराम करतें और जब भी कोई युद्ध जितते तो जिते हुए राज्य का धन संपदा इसी जगहं रख देते। ताकि उनके राज्य में प्रजा को तकलीफ ना हो । *गर्भगृह से तीन फिट उपर हैं नागेश्वर महादेव का शिवलिंग पंडित उमाकांत शास्त्री बताते हैं। की आज भी शिवलिंग वैसा ही हैं जैसा धरती के भुगर्भ से शिवलिंग निकला था। जो आज भी गर्भगृह से तीन फिट उपर हैं। वहीं गांव के बुजुर्ग बताते हैं की दस फिट तक गर्भगृह का खुदाई कराया गया। लेकिन शिवलिंग दस फिट निचे भी वैसे ही हैं। दस फिट बाद जड़ नहीं मिलने पर खुदाई बन्द कर दिया गया।
मंदिर के बगल में है नाग कुंड तलाब
पंडित उमाकांत शास्त्री व नर्वदेश्वर बताते हैं। की मंदिर के बगल में जो तलाब हैं जिसे राजा नल ने बनवाया था। पुजारी बताते हैं, की इस तलाब के अंदर चार कुएं मौजूद हैं। जो अब मिट्टी से पट चुका हैं। वहीं बगल गांव के बुजुर्ग रामबिचार तिवारी बताते हैं की उस कुएं को ढ़ुढ़ने के लिए तालाब का खुदाई कराया गया लेकिन कुंआ कितने निचे हैं। कुछ नहीं पता। पुजारी बताते हैं की तलाब का नाम नागेश्वर महादेव के नाम पर नाग कुंड पड़ा। क्यो की तलाब के बगल में ही धरती को चिरते हुए शिवलिंग निकला था।
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औरंगजेब ने किया शिवलिंग को खंडित
क्षेत्रिय लोग बताते हैं की मुगल बादशाह औरंगजेब ने सभी हिन्दू मंदिरों को खंडित करते हुए यहां भी आ पहुंचा । और शिवलिंग क़ो उसके सैनिक तोड़ने लगें। लेकिन शिवलिंग खंडित नहीं हुआ। पुजारी ने बताया की जितने सैनिक शिवलिंग को तोड़ रहें थे। उन सभी की तत्काल मौत हों गई।
आज भी हैं शिवलिंग पर तीन निशान
मंदिर के पुजारी पंडित उमाकांत शास्त्री बताते हैं। की शिवलिंग पर आज भी फावड़ो के लगे हुए तीन निशान है। जिसमे एक निशान एक इंच का बाकी आधे आधे इंच का निशान दिखाई। देता हैं।
शिवलिंग को खंडित करते समय गर्भगृह के पास तीन की मृत्यु
क्षेत्रिय बुजुर्ग अपना भारत न्यूज़ ट्रेक टीम को बतातें हैं कि जितने भी लोग शिवलिंग को खंडित कर रहें थे। उसमे तीन की मृत्यु गर्भगृह के बगल में तुरंत ही हो गई बाकी की मृत्यु पास के घने जंगल में हूई। जो अब खेतो मे तब्दील हो चुका हैं। ग्रामीण बताते हैं कि औरंगजेब ने गर्भगृह के बगल में उन तीनों को दफना दिया था। जहां लोग उसपर भी जल चढ़ाने लगे। जब मंदिर का निर्माण शुरू हुआं तब तोड़ कर हटा दिया गया। और उन तीन जगहों पर हनुमान, सरस्वती, और दुर्गा मंदिर का निर्माण कराया गया।
प्रथम निर्माण जगरनाथ साव ने सन् 1950 में कराया
ग्रामीण बतातें हैं की जगरनाथ साव ने मंदिर का निर्माण सन् 1950 में कराना आरम्भ किया। लेकिन जैसे हीं। कारीगर दिवाल जोड़ कर जाते थे। सुबह आने पर बनाया हुआ। दिवाल खंडित मिलता था। कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहां। जगरनाथ साव को रात को स्वपन में शंकर जी ने कहां की आप मंदिर निर्माण बन्द कर दिजिए ये आप के हाथ से नहीं होगा। तब जगरनाथ साव ने निर्माण कार्य बन्द कर दिया।
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मनबोध राय ने कराया 1960 में पुनः निर्माण
इस प्राचीन मंदिर का निर्माण मनबोध राय सन् 1960 में करना शुरू किया। जिसमें ग्रामीणों के साथ साथ क्षेत्र के लोंग भी काफी सहायता किये और मंदिर भब्य रुप में तैयार हो गया।
आज भी मिलतें हैं प्राचीन काल के ईट, दिखाई देतें हैं चुल्हे
ऊचाडीह गांव के बारे में बुजुर्ग बताते हैं। की जब भी मकान बनाने के लिए खुदाई कि जाती हैं तो दस फिट के बाद प्राचीन काल के बड़े बड़े ईट व मोटी दिवालो के अस्तित्व सामने आतें हैं। अगर पुरात्तव विभाग यहां खुदाई कराये तो प्राचीन काल के और वस्तुएं मिल सकती हैं।
गांव के चारों तरफ रास्ते हर रास्ते पर बना है प्राचीन काल का तलाब
राजा नल के नगरी नल गढ़ी जो बर्तमान मे ऊचाडीह के नाम से जाना जाता हैं। इस नल गड़ी मे जाने के लिए राजा नल ने चारो तरफ से सड़क का निर्माण कराया था। हर सड़क पर तलाब का भी निर्माण था, जो आज भी मौजूद हैं। ग्रामीण बताते हैं। की ये तलाब प्राचीन काल का हीं है। इस गड़ी मे आने के लिए राजा नल ने सड़क का भी निर्माण कराया था। ताकी किसी भी दिशा मे आने जाने के लिए व पानी पिने के लिए परेशानी न हों।
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सासंद निरजंन शेखर ने बनाया सिर्फ रैन बसेरा
गांव के लोग बताते हैं की इस प्राचीन व पौराणिक नागेश्वर महादेव के मंदिर के लिए यहां के प्रतिनिधियों ने कुछ नहीं किया। ग्रामीण बताते हैं। की जब निरजंन शेखर पुर्व में जब चुनाव लड़े तब इस मंदिर पर कहां की मंदिर का सौन्दर्यीकरण कराऊंगा। लेकिन चुनाव जितने के बाद नहीं आये। जब लोक सभा का चुनाव नजदीक आया। तब कहने पर एक छोटा सा रैन बसेरा का निर्माण करवाया। पुर्व सासंद भरत सिंह से उम्मीद थी। वे भी कुछ नहीं किये।
प्राचीन मंदिर पर होती हैं। शिवरात्रि के दिन हजारों की भीड़
वैसे तो यहां भक्तों की भिड़ हमेशा रहतीं हैं। लेकिन शिवरात्रि के दिन इस प्राचीन नागेश्वर महादेव के मंदिर पर लंबी कतारें देखने को मिलतीं हैं। इस पौराणिक मंदिर पर साक्षात शिवलिंग का दर्शन करने बाहर के लोग भी आते हैं। शिवरात्रि के दिन इस मंदिर कि शोभा में चार चांद लग जाता हैं।
तीस बिघे भूमि है मंदिर के नाम
मंदिर के पुजारी बतातें हैं की मंदिर के नाम से करीब तीस बिघे के आसपास भुमि हैं जिसमें बारह बिघे मे खेती होती है। बाकी के भुमि में बाग बगीचे है। मंदिर के पुजारी बताते हैं की खेती से जो भी रुपये मिलता हैं उससे मंदिर की रंगाई व निर्माण कराया जाता हैं।
प्राचीन नागेश्वर महादेव के लिए बना हैं ट्रस्ट
मंदिर के प्रबंधक सुरेन्द्र राय बताते हैं। की मंदिर के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया है। जिसमें गांव व बाहर के लोग जो भी दान करतें है। इस ट्रस्ट मे जमा हो जाता हैं। जिसे मंदिर के सौन्दर्यीकरण में लगा दिया जाता हैं।
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नहीं करता जिला प्रशासन क़ोई मदद
मंदिर के प्रबंधक सुरेन्द्र राय बताते हैं। इस अति प्राचीन मंदिर के सौन्दर्यीकरण के लिए जिला प्रशासन भी कोई मदद नहीं करता हैं। जितने भी मंदिर का निर्माण व सौन्दर्यीकरण हुआ हैं। सब ग्रामीणों के द्वारा कराया गया हैं।
बन सकता हैं पर्यटन स्थल
मंदिर कमेटी कहती हैं की पुरात्तव विभाग द्वारा यहां खुदाई कराया जाय तो। प्राचीन काल की बहुत सी वस्तुएं मिलेगीं। जिससे यहां पर्यटक आने शुरू हो जायेंगे। व यहां रोजगार का माध्यम बन जायेगा।