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नेपाली लकड़ियों वाला मंदिर: मोदी से जुड़े इसके तार, देश के लिए बना मिसाल
काशी के ललिता घाट पर बना ये मंदिर अन्य शिव मंदिरों से एकदम अलग है। इस मंदिर का निर्माण काशी के अन्य शिवालयों की तरह पत्थर से नहीं बल्कि नेपाली लकड़ी से बना हुआ है।
वाराणसी। काशी के ललिता घाट पर बना ये मंदिर अन्य शिव मंदिरों से एकदम अलग है। इस मंदिर का निर्माण काशी के अन्य शिवालयों की तरह पत्थर से नहीं बल्कि नेपाली लकड़ी से बना हुआ है। नेपाल की लकड़ी से बना ये मंदिर लोगों को बेहद पसंद आ रहा है। इस मंदिर के अंदर गर्भगृह में पशुपतिनाथ के रूप में शिवलिंग स्थापित हैं।
साथ ही इस मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि काशी के इस पशुपतिनाथ के दर्शन से वही फल प्राप्त होता है जो नेपाल के पशुपतिनाथ के दर्शन से होता है।
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मंदिर निर्माण के उद्देश्य से वो काशी आए
जानकारी के लिए बता दें, कि पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण नेपाल के राजा राणा बहादुर साहा ने करवाया था। वाराणसी में मंदिर निर्माण के उद्देश्य से वो काशी आए और प्रवास किया।
सन् 1800 से 1804 तक नेपाल के राजा राणा बहादुर शाह ने काशी में प्रवास किया। प्रवास के दौरान पूजा पाठ के लिए उन्होंने काशी में शिव मंदिर बनवाने का निर्णय लिया, वो भी नेपाल के वास्तु और शिल्प के अनुसार।
गंगा किनारे घाट की भूमि इस मंदिर के निर्माण के लिए चुनी और इसका निर्माण शुरू कराया। इसी दौरान 1806 में उनकी मृत्यु हो गई।
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बेहतरीन नक्काशी
मृत्यु के बाद उनके बेटे राजा राजेन्द्र वीर विक्रम साहा ने इस मंदिर का निर्माण 1843 में पूरा कराया। बीच में कई वर्षों तक इस मंदिर का निर्माण रुका था। यही वजह रही कि इस मंदिर के पूरा होने में चालीस साल का समय लगा।
इस मंदिर का निर्माण नेपाल से आए कारीगरों ने किया था। मंदिर निर्माण में प्रयोग की गई लकड़ियों को भी राजा ने नेपाल से ही मंगवाया था। कारीगरों ने मंदिर में लगाई गई लकड़ियों पर बेहतरीन नक्काशी को उभारा। मंदिर के चारों तरफ लकड़ी का दरवाजा होने के साथ भित्ती से लेकर छत तक सबकुछ लकड़ी से बनाया गया है।
इन लकड़ियों पर विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां उभारी गई हैं। जो देखने में बेहद आकर्षित करती हैं। नेपाल के मंदिरों की तर्ज पर ही इस मंदिर के बाहर भी एक बड़ा सा घंटा भी है।
वहीं दक्षिण द्वार के बाहर पत्थर का नंदी बैल भी है। पशुपतिनाथ का यह मंदिर सुबह काशी के अन्य मंदिरों के समय ही खुलता और बंद होता है। काशी के इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती थी। लेकिन महामारी के दौर में अब कुछ ही भक्तों दिखाई देत हैं।
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