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भूमि पूजन: पारिजात का पौधा लगाएंगे PM मोदी, आखिर क्या है राममंदिर से संबंध

पारिजात का वृक्ष ऊंचाई में दस से पच्चीस फीट तक का होता है। इसके इस वृक्ष की एक खास बात ये भी है कि इसमें बहुत बड़ी मात्रा में फूल लगते हैं। एक दिन में इसके कितने भी फूल तोड़े जाएं, अगले दिन इस फिर बड़ी मात्रा में फूल खिल जाते हैं।

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Published on: 5 Aug 2020 10:29 AM IST
भूमि पूजन: पारिजात का पौधा लगाएंगे PM मोदी, आखिर क्या है राममंदिर से संबंध
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अयोध्या: सैकड़ों साल के इंतज़ार और कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार आज वो शुभ घड़ी आ गई जब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी जाएगी। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का भूमि पूजन करेंगे। इसीके साथ पीएम मोदी श्रीराम जन्मभूमि परिसर में पारिजात का पौधा लगाएंगे। पारिजात पौधे के फूल पूजा के काम आता है। आखिर क्या है इस पौधे का महत्व और खासियत जिसकी वजह से इसे भूमि पूजन समारोह का हिस्सा बनाया जा रहा है। आइए जानते हैं इस दिव्य वृक्ष के बारे में।

सुगंधित पुष्प को हरसिंगार के नाम से भी जाना जाता है

बता दें कि पारिजात का पेड़ बहुत खूबसूरत होता है। पारिजात के फूल को भगवान हरि के श्रृंगार और पूजन में प्रयोग किया जाता है, इसलिए इस मनमोहक और सुगंधित पुष्प को हरसिंगार के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म में इस वृक्ष का बहुत महत्व माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।

इसमें बहुत बड़ी मात्रा में फूल लगते हैं

पारिजात का वृक्ष ऊंचाई में दस से पच्चीस फीट तक का होता है। इसके इस वृक्ष की एक खास बात ये भी है कि इसमें बहुत बड़ी मात्रा में फूल लगते हैं। एक दिन में इसके कितने भी फूल तोड़े जाएं, अगले दिन इस फिर बड़ी मात्रा में फूल खिल जाते हैं। यह वृक्ष खासतौर से मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक उगता है।

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सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं

ये फूल रात में ही खिलता है और सुबह होते ही इसके सारे फूल झड़ जाते हैं। इसलिए इसे रात की रानी भी कहा जाता है। हरसिंगार का फूल पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प भी है। दुनिया भर में इसकी सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं।

पूजा के लिए इस वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध

कहा जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं। पूजा-पाठ के दौरान मां लक्ष्मी को ये फूल चढ़ाने से वो प्रसन्न होती हैं। खास बात ये है कि पूजा-पाठ में पारिजात के वे ही फूल इस्तेमाल किए जाते हैं जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं। पूजा के लिए इस वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है। एक मान्यता ये भी है क‍ि 14 साल के वनवास के दौरान सीता माता हरसिंगार के फूलों से ही अपना श्रृंगार करती थीं।

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महाभारतकालीन पारिजात वृक्ष

बाराबंकी जिले के पारिजात वृक्ष को महाभारतकालीन माना जाता है जो लगभग 45 फीट ऊंचा है। मान्यता है कि परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में लगाया था। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान माता कुंती ने पारिजात पुष्प से शिव पूजन करने की इच्छा जाहिर की थी। माता की इच्छा पूरी करने के लिए अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लाकर यहां स्थापित कर दिया था। तभी से इस वृक्ष की पूजा अर्चना की जाती रही है।

पारिजात को कल्पवृक्ष भी कहा गया है

हरिवंश पुराण में पारिजात को कल्पवृक्ष भी कहा गया है। मान्यता है कि स्वर्गलोक में इसको स्पर्श करने का अधिकार सिर्फ उर्वशी नाम की अप्सरा को था। इस वृक्ष के स्पर्श मात्र से ही उर्वशी की सारी थकान मिट जाती थी। आज भी लोग मानते हैं कि इसकी छाया में बैठने से सारी थकावट दूर हो जाती है।

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फूलों के रस के सेवन से हृदय रोग से बचा जा सकता है

पारिजात अपने औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। हर दिन इसके एक बीज के सेवन से बवासीर रोग ठीक हो जाता है। इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम माने जाते हैं। इनके फूलों के रस के सेवन से हृदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर खाने से सूखी खांसी भी ठीक हो जाती है। पारिजात की पत्तियों से त्वचा संबंधित रोग ठीक हो जाते हैं।

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