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सरकारी पैसे की बंदरबांट, जानेंगे ऐसे होता है खेल तो हो जाएंगे हैरान

पूरा प्रकरण कुछ इस तरह है। आरोप है कि भाजपा विधायक के सिफारिशी पत्र के सहारे गोरखनाथ क्षेत्र की दो फर्मों ने सडक़ निर्माण का 4.89 करोड़ रुपये का ठेका हासिल कर लिया। इस पैड पर हस्ताक्षर कैम्पियरगंज से भाजपा विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री फतेह बहादुर सिंह के थे जिसे विधायक फर्जी बता रहे हैं।

SK Gautam
Published on: 5 Dec 2019 2:58 PM GMT
सरकारी पैसे की बंदरबांट, जानेंगे ऐसे होता है खेल तो हो जाएंगे हैरान
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: पूर्व मुख्यमंत्री स्व.वीर बहादुर सिंह के विधायक पुत्र ने बीते दिनों गोरखपुर के दो फर्मों के खिलाफ लेटर हेड पर फर्जी हस्ताक्षर से टेंडर हासिल करने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया है। गोलमाल की खबर को मीडिया ने खूब उछाला, लेकिन इस मामले ने पर्दे के पीछे के असल खेल के साथ ही कई अनसुलझे सवालों को जन्म दे दिया है।

मसलन, बिना विधायक या फिर उनके प्रतिनिधि के दिए बिना लेटर हेड कैसे ठेकेदारों के पास पहुंच गया? सवाल यह भी है कि विधायक तो अपने लेटर हेड पर सिर्फ कार्य का प्रस्ताव करते हैं, तो दोनों फर्मों ने कैसे करीब 5 करोड़ रुपये का काम हासिल कर लिया? क्या विभाग ने प्रस्ताव को अमली जामा पहनाने से पहले जरूरी पड़ताल नहीं की? ऐसा है तो ठेकेदारों के साथ कार्यदायी संस्था के जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? दरअसल, प्रदेश में दागी आधा दर्जन कार्यदायी संस्थाएं जनप्रतिनिधि, ठेकेदार और इंजीनियरों के गठजोड़ से संचालित हो रही हैं जहां शामिल बाजा के तहत सरकारी धन का बंदरबांट हो रहा है। हो सकता है कि ताजा प्रकरण में विधायक गोलमाल से अनजान हों, लेकिन कार्यदायी संस्थाओं की कारगुजारियां संदेह और सवाल तो पैदा करती ही हैं।

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ठेकेदारों पर मुकदमा दर्ज

पूरा प्रकरण कुछ इस तरह है। आरोप है कि भाजपा विधायक के सिफारिशी पत्र के सहारे गोरखनाथ क्षेत्र की दो फर्मों ने सडक़ निर्माण का 4.89 करोड़ रुपये का ठेका हासिल कर लिया। इस पैड पर हस्ताक्षर कैम्पियरगंज से भाजपा विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री फतेह बहादुर सिंह के थे जिसे विधायक फर्जी बता रहे हैं। फिलहाल, विधायक की तहरीर पर कैंट थाने में दोनों ठेकेदारों के खिलाफ धोखाधड़ी, कूटरचित दस्तावेज तैयार करने और जालसाजी का केस दर्ज हो गया है। गोरखनाथ थाना क्षेत्र के ललितपुरम राजेंद्र नगर निवासी ठेकेदार मेसर्स रीना सिंह और इसी थाना क्षेत्र के आदित्यनगर नथमलपुर निवासी मेसर्स अजय कांस्ट्रेक्शन के जिम्मेदारों ने पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध रखी है।

अफसरों ने नहीं की छानबीन

एफआईआर के मुताबिक आरोपित ठेकेदारों ने ठेका हासिल करने के लिए फर्जीवाड़ा किया है। पहले विधायक का लेटरपैड हासिल किया, फिर सिफारिशी पत्र तैयार कर विधायक के फर्जी हस्ताक्षर किए गए। इसी पत्र के आधार पर समाज कल्याण निर्माण निगम (यूपी स्टेट कांस्ट्रक्शन एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड) से सडक़ निर्माण का ठेका हासिल कर लिया। निगम के अफसरों ने भी पत्र की वास्तविकता की छानबीन नहीं की और और ठेका देने की औपचारिकता अक्तूबर में पूरी कर दी गई। इसकी जानकारी विधायक को मिली तो उन्होंने एसएसपी डॉ.सुनील गुप्ता को बताया।

आरोप है कि समाज कल्याण निर्माण निगम ने सडक़ निर्माण का ठेका देते वक्त सत्यापन सही ढंग से नहीं कराया। इसी वजह से ठेकेदारों की तरफ से दिए गए विधायक के फर्जी लेटरपैड व हस्ताक्षर को नहीं पकड़ा जा सका। इससे निर्माण निगम के अफसरों की भूमिका सवालों के घेरे में है क्योंकि कैंपियरगंज विधानसभा क्षेत्र के पंचगांवा, बरगदही, मडहा और फुलवरिया में इंटरलॉकिंग सडक़ व नाली बनाने का प्रस्ताव किसी जनप्रतिनिधि ने नहीं दिया था। साजिश के तहत सडक़ व नाली बनवाने का प्रस्ताव दिया गया। इसकी जांच नहीं हुई और प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगा दी।

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सवालों के घेरे में कार्यदायी संस्थाएं

मुकदमा दर्ज होने के बाद प्रकरण को लेकर ठेकेदार से लेकर पुलिस तक चुप है, लेकिन पूरे प्रकरण की तह में जाने पर कई गम्भीर सवाल पैदा होते हैं। उधर, भाजपा विधायक फतह बहादुर सिंह कहते हैं कि कार्य की गुणवत्ता ही प्राथमिकता है। दोनों फर्मों ने गोलमाल किया है जिससे उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है। वैसे, प्रदेश में समाज कल्याण निर्माण निगम, पैक्सपेड, सीएंडडीएस, श्रम विभाग सरीखी कार्यदायी संस्थाओं की कार्यशैली हमेशा सवालों के घेरे में रहती है। प्रदेश में तमाम सरकारी विभाग ऐसे हैं जहां पहले से ही तय है कि कौन सा काम किस विभाग को मिलना है।

वर्तमान में नगर विकास के काम जलनिगम की सहयोगी संस्था सीएंडडीएस को मिल रहा है। गोरखपुर में यह कार्यदायी संस्था करोड़ों रुपये का काम कर रही है। लेकिन इसके कार्यों की गुणवत्ता हमेशा सवालों में रही है। सीएंडडीएस ने 10 करोड़ से अधिक रकम से गोरखपुर में कान्हा उपवन का निर्माण किया है। मुख्यमंत्री के लोकार्पण के चंद दिनों कें अंदर ही घटिया निर्माण उजागर होने लगा। कई जगहों पर फर्श धंसने लगी, घटिया ईंट के चलते दीवारें कमजोर हैं। प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार सिंह ने निर्माण के दौरान ही कई बार निरीक्षण किया, घटिया निर्माण को लेकर चेतावनी दी, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता पर कोई फर्क नहीं दिखा।

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प्रकरण को दबाने की कोशिश

मुख्यमंत्री के आवास गोरखनाथ मंदिर से चंद मीटर की दूरी पर स्थित झूलेलाल मंदिर के पास बन नगर निगम शेल्टर होम बनवा रहा है। कार्यदायी संस्था सीएंडडीएस है। राज्य नगरीय विकास अभिकरण (सूडा) के निदेशक उमेश प्रताप सिंह ने पिछले दिनों निरीक्षण करने में बाद पाया था कि निर्माण कार्य में घटिया ईंटों का प्रयोग किया जा रहा है। निदेशक ने कार्यदायी संस्था सीएंडडीएस के जिम्मेदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का निर्देश दिया मगर दूसरे ही दिन जिम्मेदार पूरे प्रकरण को दबाने की कोशिशों में जुट गए।

सीएंडडीएस के इंजीनियर यह साबित करने में जुटे हैं कि जिस ईंट को देखकर सूडा निदेशक नाराज हुए थे उसे बगल में निर्माणाधीन मैरेज हाल में प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रकरण में डूडा के अधिकारियों की मिलीभगत से मुख्यायल को रिपोर्ट भी भेज दी गई।

साल की शुरूआत में मेडिकल कॉलेज में निर्माणाधीन छात्रावास में घटिया निर्माण सामाग्री लगाने पर कमिश्नर ने यूपीसिडको के अवर अभियंता सुभाष चंद्र को प्रतिकूल प्रविष्टि देने की संस्तुति की है। 50 सीट वाले पीजी छात्रावास में ठेकेदार ने इंटरलॉकिंग में घटिया ईंट लगाया था जिसके बाद से जायसवाल बिल्डर्स से दो किस्तों में 4.62 लाख रुपये की रिकवरी की गई थी। प्रदेश कांग्रेस के महासचिव विश्व विजय सिंह कहते हैं कि सरकार सिर्फ पारदर्शिता की बात कर रही है। नेता और ठेकेदारों की मिलीभगत से सरकारी धन की बंदरबांट हो रही हैं। कमीशन का खेल चरम पर है। खुद भाजपा के कुछ विधायक गोलमाल उजागर कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।

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खर्च कर दिए करोड़ों, अधूरा है नाला

पूर्व सपा पार्षद हीरालाल यादव ने अपने रसूख के जरिये अखिलेश सरकार में शासन से करीब 14 करोड़ रुपये नाला निर्माण के लिए मंजूर कराया था। इस रकम से देवरिया रोड पर सिघाडिय़ा से तुर्रा नाले के बीच करीब 6 किमी लंबाई में नाले का निर्माण किया जाना था। दावा था कि नाला निर्माण से 2 लाख से अधिक लोगों को जलभराव से मुक्ति मिल जाएगी।

4 मार्च 2014 को सिघडिय़ा से तुर्रानाला तक 14.05 करोड़ की लागत से नाला निर्माण को लेकर टेंडर मंजूर हुआ। काम सीएंडडीएस को मिला जो घटिया निर्माण के लिए बदनाम है। शासन द्वारा मंजूर 12.84 करोड़ खर्च होने के बाद नाला निर्माण 50 फीसदी भी पूरा नहीं हुआ। नये सिरे से योगी सरकार में फिर 2.70 करोड़ मंजूर हुए। यह रकम भी खर्च हो गई, लेकिन नाला निर्माण 80 फीसदी भी पूरा नहीं हो सका। कार्यदायी संस्था कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन ने एक बार फिर 20 करोड़ का रिवाइज्ड इस्टीमेट बनाकर भेजा है। पूर्व पार्षद हीरालाल यादव का कहना है कि विभाग ने बीच में छोड़-छोडक़र नाला निर्माण कर दिया है। सरकारी जमीन पर कब्जा हटाने में भी बेपरवाही है। नाला निर्माण नहीं होने से करीब 40 मोहल्लों की 80 हजार आबादी जलभराव से जूझती है।

विधायक ने डिजाइन को गलत बताया

वहीं नगर विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल का कहना है कि नाले की डिजाइन ही गलत है। इसका निर्माण सिर्फ सरकारी धन के बंदरबांट के लिए हो रहा है। मामला सदन में भी उठा चुका हूं। नाला बन भी गया तो लोगों को जलभराव से मुक्ति नहीं मिलेगी। इसी तरहजनप्रिय विहार, साकेत नगर, लाजपतनगर, जटेपुर उत्तरी, चक्साहुसैन समेत दर्जन भर मोहल्लों में जलभराव से राहत के लिए वर्ष 2011 में हड़हवा फाटक से हुमॉयूपुर चौराहा होते हुए तरंग क्रॉसिंग तक 80 लाख की लागत से सीसी नाले को मंजूरी मिली। करीब 550 मीटर लंबे नाले पर सीएंडडीएस ने पूरी रकम खर्च कर दी। अब नगर निगम नये सिरे से दो नालों के लिए डिजाइन तैयार कर रहा है। स्थानीय पार्षद ऋषि मोहन वर्मा का कहना है कि 80 लाख खर्च के बाद औचित्यहीन नाला निर्माण के जिम्मेदारों पर कार्रवाई होनी चाहिए। नाला निर्माण नहीं होने से 15 हजार से अधिक आबादी जलभराव से प्रभावित होगी।

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लेटर हेड पर पर ही बना देते हैं बांड

योगी सरकार भले ही टेंडर को लेकर पारदर्शिता की बात करे, लेकिन आधा दर्जन कार्यदायी संस्थाएं नियम-कानून से ऊपर नजर आ रही हैं। प्रदेश में समाज कल्याण निर्माण निगम, पैक्सपेड, सीएण्डडीएस, श्रम विभाग सरीखी कार्यदायी संस्थाओं का अपना नियम है। दिखाने के लिए अब ऑनलाइन टेंडर निकाला जाता है, लेकिन ठेके को लेकर मैनेजमेंट का खेल किसी से छिपा नहीं है।

सांसद, विधायक से लेकर कई सरकारी विभागों के कार्य की जिम्मेदारी इन्हीं विभागों के पास है। जनप्रतिनिधियों के प्रस्ताव पर उनके ही पसंद के ठेकेदारों को काम एलाट होना यहां बेहद आसान दिखता है। नगर निगम में एक लाख से उपर के कार्यों और पीडब्ल्यूडी में 10 लाख से उपर के कार्यों पर ई-टेंडर जरूरी है। पर, बदनाम विभागों में जनप्रतिनिधियों के प्रस्ताव वाले लेटर पैड के आधार पर ही ऑनलाइन टेंडर की कोरमपूर्ति कर उनके पसंद के ठेकेदारों को काम एलाट हो जाता है।

इस्टीमेट तैयार करने में ही खेल

जीडीए, नगर निगम, आवास विकास आदि के काम में ईंट, बालू, गिट्टी, सरिया आदि की देय राशि पीडब्ल्यूडी के मानक पर होती है। पिछले 2 वर्षों से समाज कल्याण निर्माण निगम, पैक्सपेड, सीएंडडीएस, श्रम विभाग सरीखी कार्यदायी संस्थाएं पीडब्ल्यूडी के शेड्यूल को मान तो रही हैं लेकिन इस्टीमेट तैयार करने में ही खेल हो रहा है। आदर्श ठेकेदार समिति के अध्यक्ष शरद कुमार सिंह कहते हैं कि सवाल यह है कि बदनाम विभाग ही क्यों जनप्रतिनिधियों की पसंद बन हुए हैं।

जब नगर निगम और जिला पंचायत ने सभी विभागों के पंजीकृत ठेकेदारों को टेंडर डालने की छूट दे रखी है तो ये विभाग क्यों अपनी पसंद के चंद ठेकेदारों से ही काम करा रहे हैं। पारदर्शिता को देखते हुए अभी कई काम करने होंगे नहीं तो काम की गुणवत्ता में सुधार का दावा नारा ही बनकर रह जाएगा।

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