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लाकडाउन में ताजमहल का पैगाम हिंदुस्तानियों के नाम
इधर कुछ दिनों से बड़ा सुकून है। जहरीली हवा के झोंकों की तासीर बदली हुई महसूस हो रही है। वह साफ हो गई है। मेरी हमगुजर यमुना भी राहत महसूस कर रही है...
इधर कुछ दिनों से बड़ा सुकून है। जहरीली हवा के झोंकों की तासीर बदली हुई महसूस हो रही है। वह साफ हो गई है। मेरी हमगुजर यमुना भी राहत महसूस कर रही है। अब इसमे मेरा अक्स दिखायी दे रहा है। लेकिन अभी भी थोड़ा धुंघला है। पर मेरे दिल में यह अफसोस है कि मेरे दीदार के लिए जुटने वाले नहीं दिख रहे है। मेरी देखरेख करने वाले कारिंदों के अलावा यहां कोई नहीं दिखता। हालांकि चिड़ियों की चहचहाट और कोयल की कूक हर समय साफ सुनी जा सकती है।
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देखरेख करने वालों से मैने इस सन्नाटे का सबब जाना। मालूम हुआ कि दुनिया में कोरोना वायरस की महामारी का कहर टूटा है। इसी के डर से कोई मेरे दीदार को नहीं आ रहा है। मेरे चाहने वाले मुसीबत में है। यह जानकर मुझे तकलीफ हुई। लेकिन इस दौरान लौट रहा मेरा पुराना शबाब और मेरी हमगुजर यमुना का साफ होता पानी सुकून दे रहा है। मेरे दीदार के शौकीनों से मेरी गुजारिश है कि वह हिफाजत से रहे। बदअमनी न फैलाये। हुकूमत की मदद करें। मेरा यकीन करें। मै कई जंग और बीमारियों का गवाह रहा हूं । उन पर फतेह भी देखी है। हर जंग और हर बीमारी के बाद मेरा यकीन पुख्ता हुआ है कि हिंदुस्तानी किसी भी जंग या बीमारी से मुकाबिल होना बखूबी जानता है। यकीनन, हिंदुस्तान एक बार फिर जीतेगा और मेरा गुलिस्ता फिर आबाद होगा। इस बार जब लोग मेरा दीदार करेंगे तो उन्हे मेरा हुस्नों-शबाब और ज्यादा निखरा हुआ दिखेगा। अब मुझे आपके दीदार का इन्तजार है।
दुनिया भर में मोहब्बत की निशानी के तौर पर विख्यात ताजमहल इन दिनों की गुफ्तगूं कर रहा है।
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अपना अतीत याद करते हुए वह यह भी कह रहा है, मैं ताजमहल हूं, मुगलियां सल्तनत की बेमिसाल कारीगिरी का वह नमूना जिसके दीदार की तमन्ना हर किसी के दिल में रहती है। जिसके दीदार के बगैर दुनिया के तमाम मुल्कों के सरपरस्तों का सफर-ए- हिंदुस्तान अधूरा माना जाता है। सैंकड़ों बरसों में मेरे दीदार के लिए कितने आए यह बता पाना मुश्किल है लेकिन मैं यह जरूर जानता हूं कि दुनिया भर में प्रेमियों के बीच मेरा मुकाम किसी पाक इबादतगाह से कम नहीं है। इश्क करने वालों के बीच मेरी शोहरत कम नहीं है। आशिक हो या माशूका दोनों के लिए अपने पाकीजा इश्क की मैं मंजिले मकसूद हूं।
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गुजरते वक्त और दिनोदिन जहरीली होती हवा के साथ ही मेरी उम्र भी बढ़ती जा रही थी। उसकी निशानियां मुझ पर नुमाया भी होने लगी थी। मेरी हिफाजत के चाहने वाले परेशान थे कि मेरा रंग-रूप कैसे बचाया जाए। कैसे लौटाई जाए मेरी पुरानी सूरत। पूनम की रात में निखरने वाला मेरा हुस्न। हालांकि मैने अरसे से अपना अक्स नहीं देखा था, क्योंकि मेरी हमगुजर यमुना इतनी मैली हो चुकी थी कि उसमे अक्स निहारे नहीं मिलता था। जबकि मुझे यमुना किनारे इसीलिए तामीर कराया गया था ताकि मुझे सीधे देखने की जगह यमुना के दौड़ते-भागते पानी पर देखा जायेगा तो मेरा हुस्न और निखर आयेगा।
-मनीष श्रीवास्तव
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