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सबसे बड़ा सवाल इस मंत्रिमंडल विस्तार में आखिर चली किसकी?
किसी भी मंत्रिमंडल विस्तार के बाद आम तौर पर यह सवाल पूछा जाता है कि आखिर चली किसकी? बीते तकरीबन एक साल से अटकलों में आयी विस्तार की सुर्खियों ने इस सवाल को और अहम बना दिया है। वह भी तब जबकि भारतीय जनता पार्टी में उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी आदित्यनाथ और सुनील बंसल दो ध्रुव हों।
योगेश मिश्र
लखनऊ: किसी भी मंत्रिमंडल विस्तार के बाद आम तौर पर यह सवाल पूछा जाता है कि आखिर चली किसकी? बीते तकरीबन एक साल से अटकलों में आयी विस्तार की सुर्खियों ने इस सवाल को और अहम बना दिया है। वह भी तब जबकि भारतीय जनता पार्टी में उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी आदित्यनाथ और सुनील बंसल दो ध्रुव हों। यही नहीं, हर छोटे बड़े सवाल राज्य का संगठन और सरकार केंद्र का मुंह निहारता हो।
केंद्र के किसी भी इशारे के बिना प्रदेश में कोई भी फैसला धरातल पर न उतारा जाता हो। इस हालात के बीच किसी के लिए यह कहना तो मुश्किल है कि किस मंत्री को, किस का आशीर्वाद प्राप्त था। योगी कबीना में जो 18 नए योद्धा जुड़े और पांच की प्रोन्नति हुई, इसमें साफ है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति के बिना सूची को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे अधिक अमित शाह की चली है, लेकिन जिस तरह चार मंत्रियों की छुट्टी हुई है, उससे यह संदेश जुटाना वाजिब होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी खूब चलाई है।
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योगी आदित्यनाथ कुछ मंत्रियों के भ्रष्टाचार को लेकर समय-समय पर उनकी नकेल कसते रहे हैं। बीते दिनों उन्होंने नंदगोपाल नंदी के तबादलों की सूची को खारिज कर दिया था। अनुपमा जायसवाल पर उनकी नजर बहुत दिनों से टेढ़ी थी, अनुपमा अपने विभाग के तमाम मामलों में आरोपों के जद में थीं, हालांकि उन्हें संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का आशीर्वाद प्राप्त था, बावजूद इसके अनुपमा को बाहर जाना पड़ा। स्कूली बच्चों के लिए स्वेटर और उनके ड्रेस, जूते आदि की सप्लाई देर से होने को लेकर भी योगी सरकार की अच्छी खासी किरकिरी हुई थी। इसके अलावा विद्यालयों में पुस्तकों की देर से सप्लाई और उनके प्रकाशन आदि को लेकर भी अनुपमा जायसवाल पर उंगली उठी थीं। यही नहीं 65 हजार शिक्षकों की भर्ती को लेकर कोर्ट में सरकार को मुंह की खानी पड़ी थी। मंत्री ने जाड़े में स्वेटर न पहने का नाटक भी किया था।
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सिंचाई मंत्री रहे धर्मपाल के कारनामों से भी सरकार की छवि को बट्टा लग रहा था। धर्मपाल की अपने प्रमुख सचिव से नहीं बन रही थी। साथ ही ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर भी सिंचाई विभाग पर उंगली उठ चुकी थी। टेंडर देने के मामले में भी धर्मपाल ने ई-टेंडरिंग से अलग एक रास्ता निकाल लिया था। उनके सरकारी बंगले के रखरखाव को लेकर भी सत्ता के गलियारे में खूब चर्चा हुई थी। योगी आदित्यनाथ जानते हैं कि उनकी टीआरपी का सबसे बड़ा हिस्सा ईमानदारी का है, ऐसे में धर्मपाल सरीखे मंत्रियों के कामकाज से गलत संदेश जा रहा था।
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आबकारी और खनन दोनो महकमों में अर्चना पांडे ने भी काफी बदनामी कमाई थी। तबादलों से लेकर और कई मामलों में वह आरोपों के जद में थीं। इनके पिता भी राज्य सरकार में कबीना मंत्री रहे। जब इनके पिता मंत्री थे, तब भी अर्चना पांडे का नाम विवाद में आया था। पिछले साल एक स्टिंग आपरेशन के दौरान उनके निजी सचिव को ‘डील’ करते पकड़ा गया था। जिसकी रिपोर्ट भी हजरतगंज थाने में हुई थी। हालांकि स्टिंग ऑपरेशन के सामने आने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सचिव को निलंबित कर दिया था। परन्तु जनता में इसका बहुत गलत संदेश गया और छींटे योगी सरकार पर पड़े।
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राजेश अग्रवाल की छुट्टी का आधार भले ही 75 पार की उम्र बनाई गई हो, पर हकीकत यह है कि अपने विभाग के अफसरों के तबादलों को लेकर उनकी कई शिकायतें मुख्यमंत्री तक पहुंचीं थीं। राजेश अग्रवाल की भी अपने प्रमुख सचिव से नहीं पट रही थी। जिसकी शिकायत उन्होंने मुख्यमंत्री से भी की साथ ही कई बार सार्वजनिक तौर पर भी यह बात कही, जिसके कारण सरकार की छवि पर विपरीत असर पड़ रहा था।
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इसके अलावा बरेली से विधायक राजेश अग्रवाल की स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार से मतभेद होने की बात भी चर्चा में रहती थी। गंगवार का एक पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ, जो उन्होंने बरेली की डीएम को लिखा था। इसमें उन्होंने मंत्री राजेश अग्रवाल का नाम लिए बगैर उनको निशाने पर लिया था। इससे भी राजेश अग्रवाल विवाद में आ गए थे। ये मामला लोकसभा चुनाव के दौरान एक बूथ पर संतोष गंगवार को सिर्फ पांच वोट मिलने का था। बरेली के कालीबाड़ी इलाके के बूथ संख्या 290 पर गंगवार को सिर्फ 5 वोट मिलने की जांच की मांग की गयी थी। इसी बूथ पर वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल का घर आता है।
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हालांकि मुख्यमंत्री चार और मंत्रियों की छुट्टी चाहते थे लेकिन इन चारों मंत्रियों को गंभीर चेतावनी के साथ मौका दिया गया है। अगर इनके कामकाज में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले दिनों में इनकी भी छुट्टी तय है। इस लिहाज से देखा जाए तो योगी आदित्यनाथ की भी कम नहीं चली। उन्होंने हाईकमान को यह समझाने में कामयाबी पा ली है कि उनके लिए एक पारदर्शी और ईमानदार सरकार चलाना वरीयता है। उन्हें इस मामले में हरी झंडी भी मिल गई है।