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मुगल गए, अंग्रेज गए पर पुलिस आज भी ऊर्दू-फारसी में अटकी

ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जिनको समझना आम आदमी के लिए बेहद दुष्कर है। अब इसे स्थिति को बदलने का रास्ता खुला है। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि वह एफआईआर लिखने में उर्दू-फारसी के शब्दों का इस्तेमाल न करे।

SK Gautam
Published on: 5 Dec 2019 4:08 PM GMT
मुगल गए, अंग्रेज गए पर पुलिस आज भी ऊर्दू-फारसी में अटकी
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लखनऊ: आजदी के सत्तर साल बाद भी पुलिस, अदालत और राजस्व के कामकाज में उर्दू-फारसी के शब्दों का जम कर इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जिनको समझना आम आदमी के लिए बेहद दुष्कर है। अब इसे स्थिति को बदलने का रास्ता खुला है। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि वह एफआईआर लिखने में उर्दू-फारसी के शब्दों का इस्तेमाल न करे।’

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लखनऊ। भारत से मुस्लिमों, मुगलों और अंग्रेजों का शासन गए जमाना हो गया लेकिन उनका असर अब भी जबर्दस्त ढंग से कायम है। मिसाल के तौर पर पुलिस और अदालती कामकाज की भाषा तो देखें तो पाएंगे कि आज भी उर्दू-फारसी की शब्दावली का प्रचलन कायम है। आम इंसान भले न इस शब्दावली को पहचान न पाए लेकिन किसी लकीर की फकीर वाली कहावत स्थाई भाव से निभाई जा रही है।

एफआईआर यानी प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज करते समय उर्दू एवं फारसी का होता है प्रयोग

सिर्फ पुलिस की बात करें तो आज भी एफआईआर यानी प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज करते समय उर्दू एवं फारसी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया जाता है। वैसे, हाल के दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले से उम्मीद जगी है कि शायद पुलिस के कामकाज से मुगलई तडक़ा अब हट जाएगा।

वर्ष 1947 से पहले अंग्रेजी शासन के दौरान पुलिस, अदालत और राजस्व महकमे में जो भी कामकाज होता था, उसमें हिंदी की बजाए उर्दू या फारसी के शब्दों की संख्या ज्यादा रहती थी। जमीन की पैमाइश, अदालती आदेश या कर प्रणाली, इन सबके बारे में जब कोई आदेश सार्वजनिक किया जाता था तो उसमें उर्दू के साथ साथ फारसी के शब्द भी रहते थे। वजह ये रही कि अंग्रेजों के पहले मुगलों और मुस्लिमों का शासन था।

चूंकि ये विदेशों से आ कर यहां राज कर रहे थे सो इन्होंने पुलिस, अदालत और राजस्व के कामकाज को फारसी और उर्दू में कर रखा था। अंग्रेजों ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाया। लेकिन आजादी के बाद भी उर्दू-फारसी को चलने दिया गया।

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एफआईआर में उर्दू-फारसी के शब्दों की बजाए हिंदी के सामान्य शब्दों का किया जाय प्रयोग

अब ये हालात बदलने की राह खुली है। दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें मांग की गई थी कि पुलिस की एफआईआर में उर्दू-फारसी के शब्दों की बजाए हिंदी के सामान्य शब्दों का इस्तेमाल किया जाए। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है कि वह एफआईआर दर्ज करने में उर्दू और फारसी के जटिल, अबूझ शब्दों का प्रयोग करने की बजाए शिकायतकर्ता की आम भाषा का इस्तेमाल करे, ताकि उस साधारण भाषा को एक आम आदमी भी पढक़र समझ सके।

कोर्ट ने बाकायदा ऐसे शब्द छांट कर जारी किया लिस्ट

मुख्य न्यायमूर्ति डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि दिल्ली पुलिस एफआईआर दर्ज करने में उर्दू और फारसी के उन शब्दों का उपयोग बंद करे, जो बिना सोचे-समझे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। अब एफआईआर में उर्दू और फारसी के ऐसे कठिन 383 शब्दों की जगह साधारण शब्दों का प्रयोग किया जाएगा। कोर्ट ने बाकायदा ऐसे शब्द छांट कर लिस्ट जारी की है। कोर्ट ने साथ ही 10 थानों की 10-10 यानी कुल सौ एफआईआर कॉपी भी पेश करने का ऑर्डर दिया ताकि यह पता चल सके कि कोर्ट के आदेश का पालन हो रहा है या नहीं। इस मामले में अगली सुनवाई 11 दिसंबर 2019 को होगी।

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दिल्ली पुलिस ने किया था विरोध

अदालत के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस ने अब साधारण भाषा में एफआईआर लिखने का एक सर्कुलर गत 20 नवंबर को सभी पुलिस थानों को जारी कर दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ का यह फैसला तो आदेशों पर अमल की तहकीकात करते हुए अब आया है लेकिन यह मामला अक्टूबर 2015 से ही चर्चा में है।

उस समय दिल्ली पुलिस ने थानों के दैनिक कामकाज में फारसी और उर्दू के प्राचीन तथा कठिन शब्दों के स्थान पर हिंदी या अंग्रेजी के आसान शब्दों के इस्तेमाल करने के निर्देश संबंधी याचिका का दिल्ली हाईकोर्ट में विरोध किया था।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जी.रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ के समक्ष दिल्ली पुलिस ने दलील दी थी कि पुलिस एफआईआर की भाषा को आम आदमी अच्छी तरह समझता है। दिल्ली पुलिस ने थानों में बयान दर्ज करने और अदालतों में चालान दाखिल करने जैसी कार्यवाही में फारसी और उर्दू शब्दों के खिलाफ दायर याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुए अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा था कि इन शब्दों को हटाने से बहुत परेशानी पैदा हो जाएगी। पुलिस का कहना था कि पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज में उर्दू और फारसी शब्दों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है।

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पुलिस आम आदमी के लिए है

यह महत्वपूर्ण सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि पुलिस आम आदमी का काम करने के लिए है। पुलिस सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है जिनके पास उर्दू या फारसी में डॉक्टरेट की डिग्री है। एफआईआर में ऐसे शब्दों के इस्तेमाल का कोई औचित्य नहीं बनता जिनके अर्थ शब्दकोश में ढूंढने पड़ें। एफआईआर शिकायतकर्ता के शब्दों में होनी चाहिए। भारी भरकम शब्द की जगह आसान भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए। लोगों को ये पता होना चाहिए कि उसमें आखिर लिखा क्या गया है। अब, आगे यह मसला देश के अन्य राज्यों में भी नज़ीर के तौर पर सामने आ सकता है।

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एफआईआर में जो उर्दू के शब्द लिखे जाते हैं उनके क्या होते हैं मतलबकोर्ट ने जो शब्द छांटकर लिस्ट बनाई है उनमें से कुछ के अर्थ जानिए :

  • अरसाल : प्रस्तुत
  • अफसरान बाला :उच्च अधिकारी
  • इकबाल : स्वीकार
  • इस्तगासा : शिकायत, कंप्लेंट
  • काबिल दस्त अंदाज़ी : संज्ञेय अपराध। ऐसा अपराध जिसमें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को वॉरंट की जरूरत नहीं होती
  • खाना तलाशी : तलाशी या सर्च
  • तफ्तीश : जांच, इन्वेस्टिगेशन
  • ज़ेर-ए-तफ्तीश : जांच जारी
  • सजायाफ्ता : सजा काट चुका व्यक्ति
  • तहरीर : लेख, आर्टिकल, एप्लीकेशन
  • तामील : पालन
  • दरयाफ्त : पूछताछ
  • फेहरिस्त : सूची, लिस्ट
  • मुसम्मी : नाम से पहले लगने वाला संबोधन श्री, मिस्टर
  • मुद्दई : शिकायतकर्ता
  • मजक़ूरा : घायल पुरुष
  • मजक़ूरिया : घायल स्त्री
  • मौसूल : प्राप्त, रिसीव्ड
  • नकुलात : नकल प्रतियां, डुप्लीकेट कॉपी
  • सरज़द : घटित
  • बजरिये : के माध्यम से, के द्वारा
  • जामा तलाशी : व्यक्तिगत तलाशी
  • मंजूरशुदा : स्वीकृत
  • बाहुक्म : की आज्ञा से
  • जिरह : बहस, तर्क
  • मुतल्लिक : संबंधित
  • मद्देनजर : ध्यान में रखते हुए
  • मशकूक : संदिग्ध
  • मिसल, मिस्ल : फाइल, पत्रावली
  • मुअत्तल : निलंबित
  • मुआईना : निरीक्षण समायत : सुनवाई
  • हलफन : शपथपूर्वक
  • दीगर : अन्य
  • ताजिराते हिंद : भारतीय दंड संहिता

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