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कुछ भी स्थाई नहीं: सब कुछ किराए पर, जानें कैसे

‘तेजी से बदलते भारतीय समाज में पारंपरिक मानदंड और व्यवहार भी बदल रहे हैं। अमेरिका की तरह अब भारत में भी लीज़ पर या किराए पर सभी सामान लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। खासकर युवा किसी चीज को खरीदने के बजाए किराए पर लेना पसंद करने लगे हैं, चाहे घर के फर्नीचर हों या आईफोन।’

Shivakant Shukla
Published on: 5 Dec 2019 2:58 PM GMT
कुछ भी स्थाई नहीं: सब कुछ किराए पर, जानें कैसे
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नई दिल्ली: एक मल्टीनेशनल में काम करने वाले एक युवा एक्जीक्यूटिव का फ्लैट, कार और फर्नीचर तक भी अपनी नहीं है। उन्होंने जरूरत की ये सारी चीजें किराए पर ले रखी हैं। जब एक चीज से मन ऊब जाता है तो उसे वापस करके नया आइटम किराए पर ले लेते हैं।

दरअसल, पहले जिन चीजों को स्थिरता के रूप में देखा जाता था, अब उसे बंधन के रूप में देखा जाता है। अल्पअवधि के लिए जरूरत की किसी चीज को खरीदने के बजाए किराए पर लेना ज्यादा बेहतर माना जा रहा है। बेडरूम, लिविंग रुम, डायनिंग एरिया के लिए फर्नीचर के साथ-साथ फ्रिज और माइक्रोवेव भी किराए पर लिया जाता है। इसके लिए बस हर महीने एक तय रकम देनी पड़ती है। आज लाखों भारतीय युवक रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली चीजों को खरीदने की जगह किराए पर ले रहे हैं ताकि बिना ज्यादा झंझट के जिंदगी जी सकें।

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सिर्फ घरेलू आइटम ही नहीं, अब तो ऑफिस के लिए जरूरी फर्नीचर और अन्य सामान भी लोग किराए पर ले रहे हैं। एकमुश्त रकम सामान खरीदने पर खर्च करने की बजाए जरूरत भर के आइटम किराए पर लेकर तमाम स्टार्टअप अपना काम कर रहे हैं। पैसे का सही इस्तेमाल सैलरी या अन्य कामों में किया जाता है। इसका तर्क ये है कि यदि बिजनेस अनुमान के हिसाब से नहीं होता तो शुरुआती निवेश में ज्यादा नुकसान नहीं होता है। अपने काम को कहीं और शुरू कर सकते हैं।

बढ़ रही है शेयरिंग इकॉनमी

प्राइसवॉटर हाउस कूपर्स के अनुसार, ओला-उबर जैसे राइड-हायरिंग ऐप से लेकर ऑफिस स्पेस तक, शेयरिंग इकोनॉमी का चलन पूरी दुनिया में बढ़ा है। 2025 तक इसका कुल राजस्व 335 अरब डॉलर तक का हो सकता है। कंसलटिंग कंपनी अर्नस्ट एंड यंग के अनुसार भारत में शेयरिंग इकॉनमी पांच साल के भीतर २० बिलिन डॉलर की हो जाएगी। अमेरिका में ‘रेंट द रनवे’ और ‘नूली’ जैसी वेबसाइटें ग्राहकों को कपड़े भी किराए पर उपलब्ध करवा रही हैं। वहीं चीन में ग्राहक स्मार्टफोन पर एक क्लिक कर बीएमडब्ल्यू तक किराए पर ले सकते हैं। हाल के वर्षों में भारत में फर्नीचर, गहने और रोजमर्रा के अन्य सामान किराए पर उपलब्ध करवाने वाले ऐप्स की संख्या बढ़ी है। यह व्यवसाय भी तेजी से बढ़ रहा है।

बड़ी संभावनाएं

आर्थिक संकट के बावजूद किराए पर सामान देने के इस सेक्टर में संभावनाएं काफी अधिक हैं। वजह ये है कि उपभोक्ता मांग कमजोर पडऩे के कारण ऑटो क्षेत्र में बिक्री में गिरावट आई है। साथ ही उपभोक्ताओं के खर्च करने की सीमा भी कम हुई है। कंसल्टिंग फर्म रिसर्च नेस्टर के अनुसार के अनुसार 2025 तक भारत में किराए के फर्नीचर का कारोबार 1.89 अरब डॉलर होने का अनुमान है। इसी तरह लीज़ या किराए पर वाहन देने का कारोबार भी बढ़ रहा है। रेंटोमोजो के संस्थापक गीतांश बमनिया कहते हैं|

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‘हमें उम्मीद है कि 30 महीनों के भीतर मांग में करीब 10 लाख की वृद्धि होगी।’ बंगलुरू स्थित यह कंपनी फर्नीचर के साथ-साथ घरेलू उपकरण, जिम के सामान, आईफोन और स्मार्ट होम डिवाइस जैसे कि गूगल होम और अमेजन इको किराए पर देती है। किराए पर स्मार्टफोन लेने वाले युवाओं की संख्या भी बढ़ी है। युवा बिना ज्यादा पैसा खर्च किए बगैर नए अपग्रेड फोन रख पाते हैं। कई लोगों के लिए यह उसी तरह है जैसे कहीं जाने के लिए वे कम दूरी का रास्ता चुनते हैं। किराए पर सामान लेने से लोगों का पैसा तो बचता ही है, वे अपनी सारी जरूरतों को भी पूरा कर पाते हैं।

शौक पूरा करने को तरजीह

युवाओं में अब ये भी सोच पैदा हुई है कि ढेरों सामान खरीद कर उसके बोझ तले जीने से बेहतर है कि घूमने जैसे अपने शौक को पूरा करने पर खर्च किया जाए। कार या कोई भी चीज आसानी से किस्तों में मिल तो जाती है लेकिन अंतत: उसकी ईएमआई पर पैसा लागातर देना पड़ता है जो एक बहुत बड़ा बंधन है। ऐसे बंधन में बंधने से अच्छा है कि जीवन के ‘अनुभवों’ पर खर्च करके मुक्त जीवन जिया जाए।

अनिश्चितता भी एक वजह

एक युवा फाइनेंशियल एक्जीक्यूटिव बताते हैं कि जिस तरह उनका ऑफिस एक स्पेस शेयरिंग बिल्डिंग में है। उसी तरह उनकी कार, फर्नीचर, अपार्टमेंट, किचन के गैजेट्स, आदि तमाम चीजें किराए पर ली हुई हैं। इसकी वजह वो बताते हैं कि जब ये निश्चित नहीं कि नौकरी कब तक चलेगी तो फिर किसी सामान का बोझ क्यों ढोया जाए।

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किराए पर कपड़े

ब्लूश वेंचर्स की ‘स्टेज 3’ फैशनवीयर स्टार्टअप कंपनी का बिजनेस अक्टूबर 2018 से 2019 के बीच छह गुना बढ़ा है। ये कंपनी शादी के परिधान या अन्य ड्रेस किराए पर देती है। ये परिधान भी बड़े नामी गिरामी डिजाइनरों द्वारा डिजाइन किए हुए होते हैं। कंपनी का दावा है कि वो एमआरपी के मात्र 10 फीसदी पर बही किराए पर कपड़े उपलब्ध कराती है।

कुछ भी स्थाई नहीं

यूं तो शेयरिंग कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है। स्टूडेंट्स या युवाओं के लिए पीजी का सिस्टम तो दशकों से चला आ रहा है। लेकिन ये भी कैंपसों को आसपास या लोकल एरिया में ही पनपता रहा है। लेकिन इधर मोबाइल ऐप के आने के बाद से शेयरिंग का बिजनेस एकदम ही बदल गया है।

Shivakant Shukla

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