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Mahakumbh 2021: इस बार एक साल पहले मेले का आयोजन, जानें क्या है वजह
कुंभ में स्नान करने पर पितरों का भी उद्धार हो जाता है। इस बार कुंभ में चार शाही और छह मुख्य स्नान होंगे। कुंभ मेला का आयोजन 12 साल बाद होता है, लेकिन साल 2022 में बृहस्पति कुंभ राशि में नहीं होंगे।
नई दिल्ली: इस बार महाकुंभ एक साल पहले ही लग रहा है। इसका आयोजन 12 साल की जगह 11 साल पर ही किया जा रहा है। इस वर्ष महाकुंभ का आयोजन हरिद्वार में किया जा रहा है। इस उत्सव को लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह है। हरिद्वार महाकुंभ मेले का आयोजन पिछली शताब्दी में वर्ष 1915 से शुरू किया गया था। जिसका श्रेय भारतरत्न महामना मदन मोहन मालवीय को जाता है। वहीं, श्रद्धालु पुण्य कमाने के लिए महाकुंभ में जाने की तैयारी भी शुरू कर दिये है। महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
पुरोहितों के आंदोलन का नेतृत्व मालवीय कर रहे थे
यह कहानी तब की है जब हरिद्वार में ब्रिटिश सरकार द्वारा गंगा पर बांध का निर्माण किया जा रहा था। इसके खिलाफ 1014 से पंडा समाज यह कहते हुए आंदोलन कर रहा था कि बंधे जल में अस्थि प्रवाह एवं अन्य कर्मकांड शास्त्रीय दृष्टि से वर्जित हैं। पुरोहितों के आंदोलन का नेतृत्व महामना मदन मोहन मालवीय कर रहे थे। 1915 में जब कुंभ लगा तो महामना ने कुंभ में आए राजा महाराजाओं का सहयोग लेने के लिए हरिद्वार में डेरा जमा दिया था।
आंदोलन एक वर्ष तक चला
छोटे-बड़े 25 नरेश उस कुंभ में गंगा स्नान के लिए आए थे। महामना और पुरोहितों ने तीर्थत्व की रक्षा के लिए राजाओं को बांध विरोधी आंदोलन में भाग लेने के लिए राजी कर लिया। कुंभ के बाद बांध विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ा और कई रियासतों ने बांध का कार्य रोकने के लिए अपनी सेनाएं हरिद्वार भेज दी। यह आंदोलन अगले वर्ष तक चला।
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ब्रिटिश सरकार और पुरोहितों के बीच वह ऐतिहासिक समझौता
बाद में ब्रिटिश सरकार और पुरोहितों के बीच वह ऐतिहासिक समझौता हुआ जो आज भी कायम है। अविच्छिन्न धारा छोड़ी गई और बांध अन्यत्र बना। कुंभ पर छेड़े गए आंदोलन की यह बड़ी जीत थी कि अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा । 1915 के कुंभ में महामना मालवीय ने मेला शिविर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना की।
वीर सावरकर जैसी हस्तियां हरिद्वार पहुंची
वीर सावरकर, हेडगेवार और भाई परमानंद जैसी हस्तियां उस बैठक में महामना के बुलावे पर हरिद्वार पहुंची थी। दरअसल, हिंदू सभा की स्थापना 1908 में पंजाब में हुई थी। हरिद्वार कुंभ में उसे राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू महासभा का स्वरूप प्रदान किया। कालांतर में इसी महासभा से निकलकर मनीषियों ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
वहीं दूसरी मान्यता है कि कुंभ में स्नान करने पर पितरों का भी उद्धार हो जाता है। इस बार कुंभ में चार शाही और छह मुख्य स्नान होंगे। कुंभ मेला का आयोजन 12 साल बाद होता है, लेकिन साल 2022 में बृहस्पति कुंभ राशि में नहीं होंगे। इसलिए इस बार 11वें साल यानि कि एक साल पहले ही महाकुंभ पर्व का आयोजन किया जा रहा है।
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कुंभ 2021 शाही स्नान की तिथियां
-इस बार पहला शाही स्नान 11 मार्च 2021, शिवरात्रि के दिन पड़ेगा।
-दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल 2021, सोमवती अमावस्या के दिन पड़ेगा।
-तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल 2021, मेष संक्रांति पर पड़ेगा।
-चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल 2021, को बैसाख पूर्णिमा के दिन पड़ेगा।
इस बार महाकुंभ में 13 अखाड़े
इस बार महाकुंभ के पर्व में चार शाही स्नान होंगे। इस बार महाकुंभ में 13 अखाड़े शामिल होंगे। प्रत्येक अखाड़े की ओर से कुंभ के दौरान झांकियां निकाली जाती हैं, जिसमें नागा बाबा आगे चलते हैं, और उनके पीछे महंत, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर चलते हैं।
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कुंभ का महत्व-मोक्ष की प्राप्ति होती है
पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति महाकुंभ में स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है। इस संगम स्थल पर ही अमृत की बूंदें गिरी थी, इसीलिए यहां स्नान का विशेष महत्व है। यहां स्नान करने से शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है। यहां पर लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान भी करते हैं।
महाकुंभ का आयोजन 12 साल पर किया जाता है। हिन्दू धर्म में अखाड़ों के शाही स्नान के बाद संगम में डुबकी लगाने का बड़ा धार्मिक महत्व है। कुंभ पर्व में आम श्रद्धालु एक से पांच बार डुबकी लगाता है, जबकि अखाड़ों के नागा तो एक हजार आठ बार तक नदी में डुबकी लगाते हैं।
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