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चीन के साये में दुनिया की सबसे बड़ी डील, भारत ने लिया ये फैसला

चीन समेत एशिया प्रशांत के 15 देशों ने दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार समझौता किया है। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी नाम वाले इस समझौते की इबारत चीन ने लिखी है। भारत से भी इसमें शामिल होने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन भारत ने साफ इनकार कर दिया।

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Published on: 16 Nov 2020 6:32 AM GMT
चीन के साये में दुनिया की सबसे बड़ी डील, भारत ने लिया ये फैसला
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चीन समेत 15 देशों ने किया सबसे बड़ा व्यापार समझौता

सिंगापुर: चीन समेत एशिया प्रशांत के 15 देशों ने दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार समझौता किया है। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी नाम वाले इस समझौते की इबारत चीन ने लिखी है। भारत से भी इसमें शामिल होने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन भारत ने साफ इनकार कर दिया।

आर्थिक संकट से निपटने की कवायद

इस समझौते की कवायद कोरोना के कारण उपजे आर्थिक संकट से उबरने के लिए की गई है। दक्षिण पूर्वएशिया के देशों के नेताओं और उनके क्षेत्रीय पार्टनर्स के साथ 8 हफ्तों की बातचीत के बाद अब करार पर हस्ताक्षर किए गए हैं। सभी देशों को दो साल में इस समझौते की पुष्टि करनी होगी। जिसके बाद ये अनिवार्य रूप से प्रभावी हो जाएगा।

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दुनिया का सबसे बड़ा समझौता

इस समझौते में दुनिया की एक तिहाई अर्थव्यवस्था कवर होगी। समझौते के अनुसार आनेवाले वर्षों में व्यापार शुल्क घटते चले जायेंगे। भारत ने इस समझौते की बातचीत से अपने को अलग कर लिया था। भारत की चिंता इस बात से थी कि टैरिफ खत्म होने से देश में आयातित सामानों की बाढ़ आ जायेगी जिससे लोकल उत्पादकों को नुकसान होगा।

2012 में हुई स्थापना

आरसीईपी का प्रस्ताव 2012 में सबसे पहले आया था। इसमें इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, विएतनाम, लाओस, म्यांमार, कंबोडिया, चीन, जापान, साउथ कोरिया, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। चीन इस समझौते का मूल प्रणेता है।

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आरसीईपी में भारत की भागीदारी के बारे में मंत्रियों की घोषणा के अनुसार, 'भारत यदि आरसीईपी समझौते को स्वीकार करने के अपने इरादे का लिखित रूप में एक अनुरोध प्रस्तुत करता है, तो उसकी नवीनतम स्थिति तथा इसके बाद होने वाले किसी भी बदलाव को ध्यान में रखते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश किसी भी समय बातचीत शुरू कर सकते हैं।’' यह भी कहा गया है कि समझौते के लागू होने की तारीख से यह भारत के लिये खुला है। किसी भी समय इसमें शामिल होने से पहले भारत एक पर्यवेक्षक के नाते आरसीईपी की बैठकों में शामिल हो सकता है।

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